Bharat Ki Veer Maharaniyan: साहस, सुंदरता और स्वतंत्र विचारधारा से प्रेरित थीं भारत देश की ये महारानियां, इतिहास में दर्ज हैं जिनके किस्से
Indian Beautiful Queens History: आइए जानते हैं भारत की बोल्ड और खूबसूरत महारानियों के बारे में...;
Bharat Ki Veer Maharaniyan (Image Credit-Social Media)
Bharat Ki Veer Maharaniyan: "ब्यूटी विद ब्रेन" की कहावत तो आपने आमतौर पर जरूर सुनी होगी लेकिन क्या आपने कभी फीयरलेस ब्यूटी की कहावत सुनी है। हालांकि इस कहावत को चरितार्थ करती हमारे देश में आकाश से लेकर अंतरिक्ष तक और देश की सरहदों तक हर जगह अब महिलाओं ने हिम्मत और जज्बे से अपनी दावेदारी तय की है, लेकिन हमारे इतिहास में कई ऐसी महारानियां भी रहीं हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी से न केवल दुश्मनों के दांत खट्टे किए बल्कि इनकी सुंदरता और बोल्डनेस के भी चर्चे दूर दूर तक मशहूर थे। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक इस बात का इतिहास गवाह है कि महिलाएं हर चुनौतियों पर अपना पूर्ण योगदान देती आई हैं। आइए जानते हैं भारत की बोल्ड और खूबसूरत महारानियों के बारे में-
महारानी सीता देवी
Queens Of India (Image Credit-Social Media)
बात जब शाही नाजों नखरों और शौक की होती है तो महारानी सीता देवी का नाम खास तौर पर लिया जाता है। सीता देवी बड़ौदा के महाराज पीठापुरम की बेटी थीं। उनका जन्म मद्रास में 1917 में हुआ था और आगे जाकर ये दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला बनीं महारानी सीता देवी की शादी वुय्युरू के जमींदार अप्पाराव बहादुर से हुई थी, लेकिन बाद में इन्हें बड़ौदा के महाराज प्रताप सिंह से प्यार हो गया था। कहा जाता है कि उनकी पर्सनालिटी की ही तरह उनके साड़ियों के कलेक्शन, ज्वेलरी के कलेक्शन भी बहुत प्यारा था, जो आज तक फैशन ट्रेंड का हिस्सा हैं।1943 में, सीता देवी की मुलाकात मद्रास घुड़दौड़ में बड़ौदा के अपने दूसरे पति प्रतापसिंहराव गायकवाड़ से हुई। उस समय, प्रतापसिंहराव को दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक और दूसरे सबसे अमीर भारतीय राजकुमार माना जाता था। सीता देवी से मोहित होकर, प्रतापसिंहराव ने उनसे शादी करने की संभावना के बारे में अपनी कानूनी टीम से सलाह ली। भारतीय कानून के तहत अपनी मौजूदा शादी को खत्म करने के लिए, उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया, लेकिन बाद में हिंदू धर्म अपना लिया। इस जोड़े ने 31 दिसंबर, 1943 को शादी की और 1945 में उनका एक बेटा सयाजी राव गाय पैदा हुआ, जिसे सीता देवी प्यार से “प्रिंसी“ उपनाम से बुलाती थीं। इस राजसी जोड़े ने बड़ौदा के खजाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मोनाको को हस्तांतरित कर दिया, जिसमें चार मोती कालीन, बड़ौदा मोती, पिंक ब्राजीलियन स्टार ऑफ़ द साउथ डायमंड और इंग्लिश ड्रेसडेन डायमंड जैसे प्रसिद्ध आभूषण शामिल थे। महारानी यूजनी डायमंड जैसी कुछ वस्तुएँ बाद में जिनेवा वॉल्ट और एम्स्टर्डम ज्वैलर्स सहित विभिन्न स्थानों पर पाई गईं। 1994 में, मोती कालीनों में से एक को एक अरब राजकुमार को $31 मिलियन में बेचा गया था और अब दस्से कतर के दोहा में इस्लामिक कला संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया।
असाधारण जीवनशैली
सीता देवी अपनी असाधारण जीवनशैली के लिए जानी जाती थीं। कुछ सबसे खास वैश्विक कार्यक्रमों में भाग लेती थीं। 1969 के एस्कॉट गोल्ड कप में, उन्होंने मेहमानों को सौभाग्य के लिए अपने हाथ पर 30 कैरेट का नीलम छूने के लिए आमंत्रित किया। एस्क्वायर मैगज़ीन ने उन्हें और प्रिंसी को 1969 के “मज़ेदार जोड़ों“ में से एक रूप में भी चित्रित किया। 1953 में, उन्होंने हैरी विंस्टन को एक जोड़ी रत्नजड़ित पायल बेची, जिसे बाद में डचेस ऑफ़ विंडसर के लिए एक हार में बदल दिया गया। डचेस ने न्यूयॉर्क बॉल में इसे पहनने के बाद सीता देवी की टिप्पणी के बाद इसे वापस कर दिया कि कि ये रत्न जड़ित पायल उनके अपने पैरों पर बेहतर लग रही थी।
सीता देवी को सिगरेट पीने का भी शौक़ था। वह दुनिया के सबसे महंगे सिगरेट और सिगार पीती थीं। हवाना के सिगार उनके सबसे पसंदीदा सिगारों में से थे। उनका सिगरेट केस वान क्लीफ़ ऐंड आर्पल्स ने डिज़ाइन किया था और उसमें क़ीमती पत्थर भी जुड़े हुए थे। किताब ‘वान क्लीफ़ ऐंड आर्पल्सः ट्रेज़र्स ऐंड लीजेंड्स’ में लिखा गया है कि एक अफ़वाह यह भी थी कि उनकी ख़ूबसूरती का राज़ भारतीय शराब में छिपा हुआ था। यह अफ़वाह थी कि यह शराब मोर और हिरन के ख़ून, सच्चे मोतियों के पाउडर, केसर और शहद को मिलाकर तैयार की जाती थी। महारानी को 1985 में व्यक्तिगत त्रासदी का सामना करना पड़ा, जब उनके पति से तलाक के बाद बेटे प्रिंसी ने 40 साल उम्र में आत्महत्या कर ली, कथित तौर पर शराब और नशीली दवाओं की लत के कारण। जिसके उपरांत सीता देवी का खुद चार साल बाद निधन हो गया, अटकलें लगाई जा रही हैं कि उनकी मौत दिल टूटने के कारण हुई थी।
रानी पद्मिनी
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पद्मिनी चित्तौड़ की रानी थी। पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है। वह 13वीं-14वीं सदी की महान भारतीय रानी (रानी) है। इतिहास में रानी पद्मावती की सुंदरता के साथ शौर्य और बलिदान के भी विस्तृत वर्णन मिलते हैं। रानी पद्मिनी का नाम भी इतिहास की सबसे खूबसूरत महिलाओं में आता है। रानी पद्मिनी के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आंच नहीं आने दी। यही घटना इतिहास में रानी के जौहर के रूप में मौजूद है।
रानी लक्ष्मीबाई
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बुंदेले हरबोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झांसी वाली रानी थी’ जैसी कविताओं को पढ़ते और वीरांगनाओं की गाथाएं सुनते हुए भारत देश के नौनिहाल देश की रक्षा और देश प्रेम की भावना से आज भी भर उठते हैं। ऐसे में आज हम बात करेंगे असाधारण व्यक्तित्व की धनी और अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति रहीं झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की। जिन्होंने अंतिम क्षण तक अंग्रेजों के खिलाफ कभी न हार मानने वाला युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुईं। जीते जी उन्होंने अंग्रेजों को अपने गढ़ पर कब्जा नहीं करने दिया था। इतिहास की हसीन और बहादुर महिलाओं में रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। रानी लक्ष्मीबाईका जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, लोग उन्हें इसी नाम से पुकारा करते थे। लक्ष्मीबाई जब 4 साल की थीं तब उनकी मां का देहांत हो गया था। इसके बाद वह अपने पिता मोरोपंत के साथ बिठूर आ गई थीं। मणिकर्णिका की परवरिश भी पेशवाओं के बीच हुई। इसलिए बचपन से ही मणिकर्णिका बेहद निडर, साहसी और तेज दिमाग की थीं। 1842 में उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलेकर से हुआ था। शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेज़ों से लड़ते हुए ग्वालियर में शहादत मिली.
वह 1857 की राज्यक्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं।
महारानी लक्ष्मीबाई से जुड़ा झांसी एक ऐतिहासिक शहर है। इस शहर से जुड़ा है भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम जिसने महिला वीरता की एक अमर गाथा लिखी।
झांसी में रानी के साथ-साथ आज से लगभग 400 साल से भी अधिक पहले बना किला भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां रानी लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन के अहम वर्ष गुजारे। इस किले के चप्पे चप्पे पर रानी लक्ष्मीबाई की छाप देखी जा सकती है।
महारानी गायत्री देवी
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गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को कूच बिहार राजघराने में हुआ था। उनकी मां का नाम इंदिरा राजे था, जो बड़ौदा की राजकुमारी थीं। गायत्री देवी के जन्म के वक्त राइडर हैगर्ड की लिखी किताब, शीः अ हिस्ट्री ऑफ एडवेंचर काफी प्रसिद्ध थीं। इसकी कहानी में आयशा नाम की एक जादुई रानी है। इसी रानी के नाम पर महारानी इंदिरा राजे ने उनका नाम आयशा रखा था।
बताया जाता है कि केवल 12 साल की उम्र में आयशा जयपुर राजघराने के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय से मिलीं तो उनको दिल दे बैठीं। तब सवाई मान सिंह 21 साल के थे। साल 1940 में दोनों का विवाह हुआ और आयशा से वह महारानी गायत्री देवी बन गईं। वह राजा मान सिंह की तीसरी पत्नी थीं।उस वक्त महारानी गायत्री देवी को विश्व की सबसे सुंदर महिलाओं में गिना जाता था। वोग मैगजीन ने दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं की सूची में भी उनको स्थान दिया था। इतिहास की हसीन महिलाओं महारानी गायत्री देवी का नाम आता है। हालांकि, भारत में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनाने के लिए महारानी गायत्री देवी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। इंदिरा गांधी और गायत्री देवी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बंगाल में स्थापित शांतिनिकेतन के स्कूल पाठ भवन में एक साथ पढ़ी थीं। दोनों तभी से एक-दूसरे को जानती थीं। महारानी गायत्री देवी शाही परिवार से थीं। शादी के बाद उन्होंने न केवल परिवार बल्कि अपने राज्य को भी संभाला। बता दें कि गायत्री देवी जयपुर की महारानी थीं। गायत्री देवी अपनी स्ट्रांग पर्सनालिटी के साथ-साथ खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं। कहा जाता था कि उन्हें मेकअप की भी जरूरत नहीं होती थी। पंडित नेहरू के समय में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी का गठन किया तो गायत्री देवी ने इसी पार्टी के टिकट पर जयपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा। साल 1962 के इस चुनाव में वह केवल जीती ही नहीं, बल्कि रिकॉर्ड बना दिया। तब वह 1.92 लाख वोटों से जीती थीं और मीडिया में तब आईं रिपोर्ट्स के मुताबिक यह दुनिया भर में जीत का रिकॉर्ड था। साल 1965 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने महारानी गायत्री देवी को कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव रखा पर उन्होंने इनकार कर दिया और साल 1967 का चुनाव फिर कांग्रेस के खिलाफ लड़ा और जीत हासिल की थी। गायत्री देवी तो पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस के विरोध में खड़ी थीं। यहां तक कि संसद में चीन के मुद्दे पर पंडित नेहरू के बोलते समय गायत्री देवी ने उन्हें टोक भी दिया था। कहा था कि अगर आपको (पंडित नेहरू) को कुछ पता होता तो आज हम मुसीबत में नहीं पड़ते। इस पर पंडित नेहरू का जवाब था कि मैं एक महिला के साथ जबान नहीं लड़ाना चाहता। साल 1975 में देश में आपातकाल लग चुका था और महारानी गायत्री देवी इलाज कराने बंबई (अब मुंबई) गई थीं। वहीं पर उन्हें बताया गया था कि इलाज पूरा होते ही उनको गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके बावजूद गायत्री देवी दिल्ली लौटीं और लोकसभा गईं। वहां विपक्ष का कोई सदस्य मौजूद ही नहीं था। विपक्ष की सारी बेंच खाली पड़ी थीं। वहां से वह औरंगजेब रोड स्थित घर पर पहुंचीं तो थोड़ी देर में आयकर विभाग के अफसर भी वहां पहुंच गए। अफसरों ने उनको अघोषित सोना और संपत्ति छिपाने के आरोप में विदेशी एक्सचेंज व तस्करी से जुड़े एक्ट के तहत गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया। गायत्री देवी की तबीयत जेल में लगातार बिगड़ती जा रही थी। इसलिए उनको छह महीने बाद रिहा कर दिया गया। घर पहुंचने पर महारानी गायत्री देवी को बताया गया था कि उन पर और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों पर नजर रखी जा रही है। ऐसे में आपातकाल के बाद महारानी गायत्री देवी ने राजनीति को अलविदा कह दिया। उनका कहना था कि जिस देश में एक तानाशाह के हाथ में लोकतंत्र है, वहां राजनीति से मेरा कोई सरोकार नहीं है।