National Girl Child Day 2025: 24 जनवरी का प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से क्या संबंध हैं , क्यों देश में बालिका दिवस मनाया जाता है
National Girl Child Day 2025 History: राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत 2008 में भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी। इस दिन को 24 जनवरी को मनाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि 1966 में इसी दिन इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।;
National Girl Child Day 2025 History: राष्ट्रीय बालिका दिवस भारत में हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना, समाज में उनके प्रति व्याप्त भेदभाव को समाप्त करना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना है। इस तिथि का चुनाव एक ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने के लिए किया गया था। 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनकी यह उपलब्धि भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण और नेतृत्व में उनकी भागीदारी का प्रतीक मानी जाती है।
इस दिवस को मनाने के पीछे भारत में बालिकाओं की स्थिति को बेहतर बनाने और उनके सामने आने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करने का उद्देश्य है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास
राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत 2008 में भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी। इस दिन को 24 जनवरी को मनाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि 1966 में इसी दिन इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
इंदिरा गांधी की यह ऐतिहासिक उपलब्धि देश में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी और इसे स्मरणीय बनाने के लिए यह दिवस निर्धारित किया गया।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व
राष्ट्रीय बालिका दिवस भारत में लड़कियों को सशक्त बनाने और उनके सामने आने वाली सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। यह दिवस लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें समान अवसर प्रदान करने का संदेश देता है। इसके मुख्य उद्देश्य हैं:
- लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के प्रति जागरूक करना।
- कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और लिंग आधारित भेदभाव जैसे मुद्दों पर समाधान ढूंढना।बालिकाओं को उनकी पूरी क्षमता का एहसास कराने के लिए सशक्त बनाना।
आधुनिक भारत में बदलाव
- 19वीं और 20वीं सदी में समाज सुधारकों ने बालिकाओं और महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, महात्मा गांधी और अन्य समाज सुधारकों ने बाल विवाह, सती प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाई।
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बालिकाओं और महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और राजनीति में समान अधिकार दिलाने के लिए कई प्रयास किए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान में महिलाओं और बालिकाओं को समानता का अधिकार प्रदान किया गया।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य
- राष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना है। इसके तहत प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- लैंगिक असमानता को कम करना: लड़कियों और लड़कों के बीच व्याप्त असमानता को समाप्त करना।
- लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करना: बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा और कुपोषण जैसी समस्याओं का समाधान करना।
- लड़कियों को सशक्त बनाना: उन्हें शिक्षा और अन्य अवसर प्रदान करके भविष्य के लिए सक्षम बनाना।
राष्ट्रीय बालिका दिवस और इंदिरा गांधी
24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की तिथि का एक ऐतिहासिक महत्व है।
यह दिन भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शपथ ग्रहण का प्रतीक है। उनकी उपलब्धि भारतीय महिलाओं के लिए सशक्तिकरण और प्रेरणा का प्रतीक है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम
हर साल महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस दिवस के लिए एक विशेष थीम निर्धारित करता है। 2024 में बालिका दिवस की थीम ‘भविष्य के लिए लड़कियों का दृष्टिकोण’ थी। 2025 के लिए थीम है, ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों का सशक्तीकरण।’
बालिकाओं से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- कन्या भ्रूण हत्या और लिंग अनुपात-भारत में कन्या भ्रूण हत्या की समस्या प्रमुख सामाजिक मुद्दा है।पुत्र को वरीयता देने की मानसिकता और दहेज प्रथा इसके मुख्य कारण हैं।2011 की जनगणना के अनुसार, 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में लिंगानुपात केवल 914 था।
- बाल विवाह- भारत में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, बाल विवाह में गिरावट देखी गई है। लेकिन यह अभी भी 23 प्रतिशत के करीब है।
- शिक्षा में बाधा- लड़कियां अक्सर घरेलू कामों और आर्थिक समस्याओं के कारण स्कूल छोड़ देती हैं।स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की शादी होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है।
- स्वास्थ्य और मृत्यु दर- पाँच वर्ष से कम आयु की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 प्रतिशत अधिक है।स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच और कुपोषण लड़कियों के लिए प्रमुख समस्याएँ हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (2015):+यह योजना कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य घटते लिंग अनुपात को संतुलित करना और समाज में बालिकाओं की स्थिति को सुधारना है।
- सुकन्या समृद्धि योजना (2015):-यह योजना बालिकाओं के भविष्य के लिए बचत को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इसके तहत माता-पिता अपनी बेटियों की उच्च शिक्षा और विवाह के लिए धन एकत्रित कर सकते हैं।
- सीबीएसई उड़ान योजना:-इस योजना के तहत हर साल असाधारण उपलब्धियाँ हासिल करने वाली बालिकाओं को सम्मानित किया जाता है। इसके माध्यम से उन्हें प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है।
- राष्ट्रीय योजना (NSIGSE):यह योजना 14-18 वर्ष की लड़कियों को माध्यमिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती है।नई शिक्षा नीति के तहत बालिकाओं की शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। यह नीति उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और उनकी प्रतिभा को विकसित करने पर केंद्रित है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस के आयोजन
- राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम और आयोजन किए जाते हैं, जैसे:
- वेबिनार और सेमिनार: लड़कियों के अधिकारों और उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की जाती है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम: लड़कियों को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल प्रदान किए जाते हैं।
- सामाजिक जागरूकता अभियान: स्कूल, कॉलेज और समुदाय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार
असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाली लड़कियों को सम्मानित किया जाता है।
बालिकाओं के सशक्तीकरण के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं:
- शिक्षा का विस्तार: सभी लड़कियों के लिए शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- कौशल विकास: स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
- जागरूकता अभियान: बाल विवाह और लैंगिक भेदभाव जैसी प्रथाओं को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
- सामाजिक स्वीकृति: नए कानून और नीतियाँ तब तक प्रभावी नहीं होंगी, जब तक समाज में उनकी स्वीकृति न हो।
राष्ट्रीय बालिका दिवस केवल एक दिवस नहीं, बल्कि लड़कियों के प्रति समाज की सोच और व्यवहार में बदलाव लाने का एक अभियान है। यह भारत को एक ऐसा भविष्य प्रदान करने का वादा करता है, जहाँ हर लड़की समान अवसरों का आनंद ले सके और अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सके।
प्राचीन भारत में महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति काफी सशक्त थी। उन्हें शिक्षा, राजनीति, कला और संस्कृति में समान अधिकार प्राप्त थे। वैदिक काल में महिलाएँ वेदों का अध्ययन करती थीं और सामाजिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाती थीं। हालांकि, समय के साथ बालिकाओं और महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। मध्यकालीन भारत में बालिकाओं को शिक्षा से वंचित किया गया और बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी प्रथाओं का उदय हुआ।राष्ट्रीय बालिका दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि समाज में बालिकाओं के लिए समान अवसर और सम्मान सुनिश्चित करने का एक आंदोलन है। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि समाज का सशक्तिकरण तभी संभव है जब हर लड़की को अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने का अवसर मिले।