Pupul Jayakar Biography: सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती हैं पुपुल जयकर, नेहरू परिवार से रहा जिनका गहरा नाता
Pupul Jayakar Kaun Thi: भारतीय राजनीति का अहम हिस्सा रहीं पुपुल जयकर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता और लेखिका थीं। उन्होंने पारंपरिक कला, हस्तशिल्प और हथकरघे को बढ़ावा देने के लिए बड़ा योगदान दिया है।;
Pupul Jayakar Kaun Thi: हमारे देश में एक रोल मॉडल के तौर पर ऐसी अनगिनत महिलाओं के उदाहरण मौजूद हैं, जिन्होंने अपने हुनर और मजबूत आत्मबल के दम पर सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नाम रौशन किया है। जिनमें से एक नाम भारतीय राजनीति का अहम हिस्सा रहीं पुपुल जयकर (Pupul Jayakar) का भी है। यह एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता और लेखिका थीं। वे भारतीय कला और विरासत को संरक्षित करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने पारंपरिक कला, हस्तशिल्प और हथकरघे को बढ़ावा देने के लिए बड़ा योगदान दिया है।
इन्होंने नेहरू परिवार की पूरी तीन पीढ़ियों का साथ दिया। ये इंदिरा गांधी की बचपन की दोस्त (Indira Gandhi Friend) थीं और इतनी करीब थीं कि उन्होंने उनकी आत्मकथा भी लिखी थी। वह आजादी की लड़ाई में महिला आंदोलन (Mahila Andolan) का भी हिस्सा रही थीं। आइए जानते हैं आजादी के बाद सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने में पुपुल जयकर से जुड़े योगदान के बारे में-
पुपुल जयकर का आरंभिक जीवन (Pupul Jayakar Biography In Hindi)
उत्तर प्रदेश के इटावा में 11 सितंबर, 1915 को पुपुल जयकर का जन्म हुआ था। उनके पिता सिविल सेवा में अधिकारी थे। इसलिए उनका तबादला होता रहता था। इसकी वजह से बचपन में ही पुपुल को कई जगह घूमने का मौका मिल गया। पुपुल जयकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इटावा से ही पूरी की और 11 साल की उम्र में उनके पिता का ट्रांसफर बनारस हो गया। बनारस में एनी बेसेंट के बनाए गए स्कूल में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। जब पुपुल 15 साल की हुईं, तो उनके पिता का तबादला इलाहाबाद हो गया। इलाहाबाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
इस तरह स्थापित हुआ नेहरू परिवार से संबंध (Pupul Jayakar Relation With Nehru Family)
पुपुल जयकर के पिता जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू के अच्छे मित्र थे, इसलिए उनका कम उम्र में ही नेहरू परिवार से संपर्क हो गया। इसके बाद, उन्होंने लंदन के बेडफोर्ड कॉलेज से पत्रकारिता और बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन किया।
नौकरी में झेलनी पड़ी लिंगभेद की समस्या
जब पुपुल लंदन से पढ़ाई करके भारत लौटीं, तो उन्होंने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया ‘ में नौकरी के लिए आवेदन किया। लेकिन लिंग भेद की समस्या के चकते उन्हें वहां पर नौकरी नहीं मिल पाई। इसके बाद, वह मुंबई चली आईं और बच्चों की मैगजीन ‘टॉय कार्ट’ को लॉन्च किया। उनकी इस मैगजीन में एमएफ हुसैन और जैमीनी रॉय जैसे ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा चित्र बनाए गए थे।
हुईं थी पद्म भूषण से सम्मानित (Pupul Jayakar Padma Bhushan Award)
पुपुल जयकर को 1967 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। पुपुल जयकर ने अपने करीबी मित्र जे.कृष्णमूर्ति के जीवन पर आधारित किताब ’ए बायोग्राफी’ को 1988 में लिखा था और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित किताब ’ए एंटीमेट बायोग्राफी’ को साल 1992 में लिखा था।
बुनकर सेवा केंद्र की करी थी स्थापना
साल 1940 में पुपुल जयकर ने राजनीति में प्रवेश किया। वह कस्तूरबा ट्रस्ट में मृदुला साराभाई की सहायक और राष्ट्रीय योजना समिति की सहायक सचिव नियुक्त हुई। पुपुल जयकर जे. कृष्णमूर्ति की फ़िलॉसफ़ी से भी प्रभावित थीं, जिनसे उनकी मुलाकात 1948 में हुई। स्थानीय हस्तशिल्प और भारतीय कला की पहचान करने के लिए उन्होंने पूरे भारत भर में भ्रमण किया। इसके बाद, वह हथकरघा इंडस्ट्री में शामिल हो गईं और उन्होंने चेन्नई में बुनकर सेवा केंद्र की स्थापना की।
जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें किया था आमंत्रित
1950 में, जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें हथकरघा क्षेत्र का अध्ययन करने और इसके पुनरुद्धार की योजना बनाने के लिए आमंत्रित किया। अंततः उन्होंने अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड और हस्तशिल्प और हथकरघा निर्यात निगम की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और मधुबनी चित्रकला के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इंदिरा गांधी के सबसे करीब थी पुपुल जयकर
इसी दौरान, उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से हुई और दोनों दोस्त बन गईं। 1966 में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पुपुल को सांस्कृतिक सलाहकार नियुक्त कर लिया। इंदिरा गांधी के सबसे करीब पुपुल जयकर मानी जाती थीं, जिनसे आयरन लेडी (Iron Lady) अपने दिल की हर बात खुलकर कहती थीं। साल 1974 से लेकर 1977 तक पुपुल ने भारतीय हथकरघा और हस्तशिल्प निर्यात निगम की अध्यक्षता की।
साहित्यिक आंदोलन ’हंग्री जनरेशन’ की रहीं स्थायी समर्थक
पुपुल जयकर बंगाल में साहित्यिक आंदोलन ’हंग्री जनरेशन’ (Hungry Generation) के स्थायी समर्थकों में से एक थी। उन्होंने 1961 में हंग्रीलाइट्स की सुनवाई के दौरान उनकी मदद की थी। वह अपनी मृत्यु तक भारत में कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के साथ सक्रिय रहीं। उन्होंने भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में कृष्णमूर्ति फाउंडेशन की स्थापना में मदद की। कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सदस्य के रूप में, वह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के मदनपल्ले में ऋषि वैली स्कूल के साथ-साथ भारत में अन्य कृष्णमूर्ति फाउंडेशन स्कूलों से भी निकटता से जुड़ी रहीं।
राजीव गांधी के कार्यकाल में भी निभाई अहम भूमिका
राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान ’अपना उत्सव’ के पीछे एक सांस्कृतिक सलाहकार के तौर पर भूमिका निभाई। साल 1980 में लंदन, अमेरिका, पेरिस और जापान समेत कई जगहों पर पुपुल जयकर ने कई भारतीय कला उत्सवों का आयोजन किया। परिणामस्वरूप, पारंपरिक भारतीय कला को विदेशों में भी पहचान मिलने लगी। साल 1982 में जयकर को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) का उपाध्यक्ष बना दिया गया। अपनी मित्र इंदिरा गांधी के अनुरोध पर, उन्होंने मार्तंड सिंह (वस्त्र संरक्षक) के साथ मिलकर 1984 में कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने भारतीय शिल्पकला, टेराकोटा और ग्रामीण शिल्प पर कई किताबें भी लिखीं।
उन्हें सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त था। विरासत और सांस्कृतिक संसाधनों पर प्रधान मंत्री की सलाहकार होने के अलावा, वह इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट (1985-1989) की उपाध्यक्ष रहीं। 1990 में उन्होंने नई दिल्ली में राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की। चार्ल्स और रे ईम्स के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने राष्ट्रीय डिजाइन स्कूल (जो बाद में राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान बन गया) के विचार की अवधारणा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1997 में पुपुल जयकर का हुआ निधन (Pupul Jayakar Ka Nidhan)
यह एक गुजराती ब्राह्मण परिवार से आती थी। उनके परिवार में माता-पिता के अलावा, एक भाई और चार बहनें थीं। पुपुल जयकर के भाई का नाम कुमारिल मेहता और बहनों का नाम- पूर्णिमा, अमरगंगा, नंदिनी और प्रेमलता मेहता था। साल 1937 में उन्होंने बैरिस्टर मनमोहन जयकर से शादी की थी और कपल की एक बेटी राधिका है। जयकर के पति का निधन साल 1972 में ही हो गया था और लंबी बीमारी के चलते 1997 में पुपुल जयकर का भी निधन हो गया।
इनकी याद दिला रही ‘इमरजेंसी’ फिल्म
‘इमरजेंसी’ फिल्म हाल ही में रिलीज हुई है और जिसे देखने के बाद, दर्शक पुपुल जयकर के चरित्र को देखकर काफी उत्साहित हैं। फिल्म में 70 की सियासत के कद्दावर नेताओं में शामिल पुपुल जयकर की भूमिका फिल्म एक्ट्रेस महिमा चौधरी द्वारा निभाई गई है। इंदिरा गांधी के चरित्र से तो सभी वाकिफ हैं।लेकिन पुपुल जयकर एक समय में बड़ी हस्ती होने के बावजूद भी नई पीढ़ी के बीच लोकप्रियता की रेस में कहीं पीछे रह गईं थीं। लेकिन इस फिल्म के माध्यम से ये महान महिला व्यक्तिव एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा है।