Rana Sanga Ki Kahani: आखिर हैं किसके हैं वो योद्धा
Rana Sanga Ke Bare Mein Jankari: राणा सांगा एक महान योद्धा थे, लेकिन जब उनके बारे में किसी राजनेता ने विवादित टिप्पणी की तो केवल एक ही जाति वर्ग में गुस्सा देखा गया, बाकी जाति वालों में कोई सुगबुगाहट तक नहीं?;
Rana Sanga Ki Kahani
Rana Sanga Ka Itihas: इन दिनों राणा सांगा चर्चा में हैं। स्कूली किताबों और इतिहास के पीले पड़ गए पन्नों से निकाल कर भीड़ के बीच ला दिए गए हैं। सैकड़ों साल बाद अचानक राणा याद आये हैं। बात जान देने और लेने तक जा पहुंची है। माहौल गर्म है।
राणा सांगा महान योद्धा थे, हमने यही पढ़ा है। सही पढ़ा या गलत, कभी पूछा नहीं, जो पढ़ाया गया, वही सही मान लिया। अब अचानक से राणा के बारे में कोई बात उछाल दी गई, किसी इतिहासकार की तरफ से नहीं, बल्कि किसी नेता की तरफ से। पता नहीं किसने ध्यान दिया कि नहीं, या कितना ध्यान देना उचित समझा। लेकिन एक ग्रुप ने पूरा ध्यान दिया। क्योंकि यहां मसला जाति विशेष से जुड़ गया था। गुस्सा यहीं से फूट पड़ा।
राणा तो भारत के योद्धा थे। बड़ी लड़ाइयां लड़ीं थीं। वे राष्ट्र के योद्धा थे। उनके बारे में कोई कुछ ऐसा कहे जो हमें नापसंद हो तो आक्रोश सभी में भड़कना लाजिमी होना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। गुस्सा हुए केवल राणा की जाति वाले, वो भी ऐसे लोग जो अपनी एक प्राइवेट आर्मी चलाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कभी बिहार के जंगल राज के दौर में जातियों की सेनाएं हुआ करती थीं।
क्या राणा अब एक जाति विशेष तक सिमट गए हैं?
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
एक राष्ट्र के योद्धा के अपमान पर उनकी जाति वालों का आक्रोश? बाकी जाति वालों में कोई सुगबुगाहट तक नहीं? जैसे किसी और को राणा सांगा से कोई मतलब ही न हो। ये कैसी अजीब सी बात है? क्या राणा अब एक जाति विशेष तक सिमट गए हैं? हम तो उन्हें राष्ट्र का योद्धा मानते थे। राणा की वीरता का यशोगान करते थे। यह बताते हुए गर्वित होते थे कि बायाँ हाथ कट जाने के बाद भी तलवारबाज़ी का उनका हुनर दुश्मनों के बीच भी चर्चा का सबब रहता रहा। उन्होंने बाबर को हराया। इब्राहिम लोदी को हराया। भारत को एक सूत्र में पिरोने को काम किया। पर यह सब हम सब भूल गये। केवल राणा को जाति की जमात में बांध कर रह गये।
यह एक नई शुरुआत है। जाति का मामला है। रानी पद्मावती पर बनी फ़िल्म पद्मावत पर गुस्सा था। लेकिन राष्ट्र का नहीं, सिर्फ उन्हीं जातिगत सेना वालों का। अब तो इतिहास के पन्नों में दर्ज सभी नायकों, योद्धाओं, खलनायकों, सम्राटों, सेनापतियों की जातियों की बात की जाएगी, वे जाति विशेष के होकर सिमट जाएंगे। सिमट गये हैं।
औरंगजेब की बात कर लेते हैं। अब तो खैर उनका मामला कहाँ और कैसे चुपके से गुम हो गया, पता ही नहीं चला। लेकिन उस मामले में भी पक्ष विपक्ष वाले मुट्ठी भर ही लोग थे। वो भी किसी न किसी ग्रुप से जुड़े हुए, आम जन या राष्ट्र तो अपनी दाल रोटी के जुगाड़ में मसरूफ था।
जाति तक सिमट कर रह गई हैं चीजें
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
ऐसा दुनिया में न कहीं देखा न सुना। लेकिन हमने कर दिखाया है। यही हमारी उपलब्धि है। जाति गौरव। जान जाए पर जाति न जाए। वैसे, ये सब नए जमाने की चीज हैं, ऐसा कहना भी गलत होगा। क्योंकि इनके बीज बहुत पहले से हमने बो रखे हैं। तमाम जयंतियों पर छुट्टी इसीलिए चालू कर दी गईं क्योंकि उन हस्तियों की जातिवालों की डिमांड थी। किसी भी चुनाव में जातिवाद का दिगंबर स्वरुप आप देख सकते हैं। इतना ही क्यों, हमारे भगवान भी जातिगत सम्मान से जोड़े जा चुके हैं। कृष्ण और परशुराम इसके उदाहरण हैं। जब ईश्वर भी जाति के हो गए तो फिर बलिहारी ही है।
खैर, फिलवक्त राणा सांगा हैं। उनकी असलियत क्या है, इसके बारे में जाति वाले या चंद नेता सोशल मीडिया, टीवी और प्रेस नोट वाली बयानबाजी में लगे पड़े हैं लेकिन इतिहासकार चुप हैं। सरकार चुप है। क्या हम देशवासियों को नायकों या खलनायकों के बारे में सही सही और प्रामाणिक जानकारी पाने का हक नहीं है? चलिए, माना कि इतिहासकार पक्षपाती हो सकते हैं, तो फिर सरकार ही क्यों नहीं पद्मावतियों, औरंगजेबों और राणाओं के बारे में श्वेत पत्र जारी कर हमेशा के लिए चीजें स्पष्ट और समाप्त कर देती? नहीं, ऐसा न कोई करता है और न कोई डिमांड करता है। न, कभी नहीं ऐसा हुआ।
यहां दुनिया एआई, ग्लोबल ट्रेड, इनोवेशन में जुटी हुई है और हम हैं कि सैकड़ों बरस पहले मर खप गए लोगों के राष्ट्र सम्मान की नहीं, जाति सम्मान की लड़ाई में लगे पड़े हैं। सच्चाई यह है कि कोई तो चाहता है कि हम इन्हीं सबमें उलझे रहें। आज इसमें तो कल उसमें। इनसे निकल न पाएं। ऐसा जो चाहता है वो कोई एक इंसान या एक दल या एक ग्रुप नहीं है। बल्कि खुले में छिपा हुआ दानव है, एक पैरासाइट है, जो हमारी इन्हीं उलझनों से पोषित होता है, फलता फूलता है, ताकत पाता है। हम उसे देख नहीं पाते। लेकिन वो हमारे बीच में है। यही दानव आज राणा पर पोषित है, कल किसी और पर होगा। इसका कोई अंत नहीं है। क्योंकि हमारे पास इतिहास नायकों- देवी देवताओं की कमी नहीं है। सबकी जातियां ढूंढी जाएंगी सबकी लड़ाई होगी। यही है हमारा बौद्धिक स्तर जो वाकई कृत्रिम ही है, ऐसे में हमें भला मशीनी एआई की क्या दरकार?
( लेखक पत्रकार हैं।)