loksabha election 2019: पश्चिमी उप्र में उलट-फेर को तैयार बसपा

देश में हो रहे लोकसभा चुनाव में सबकी निगाह जहां एक तरफ यूपी मे लगी है वहीं इस प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर भाजपा को केन्द्र की सत्ता में आने से रोकने के लिए मायावती और अखिलेश और अजित सिंह के एक साथ आने के बाद पूरे देश की निगाहें इस गठबन्धन पर टिकी है।

Update:2019-04-02 20:48 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: लोकसभा चुनाव में सबकी निगाह यूपी पर लगी है। खासकर सपा, रालोद व बसपा के गठबंधन पर। भाजपा विरोधी खेमे को उम्मीद है कि सूबे की 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा महागठबंधन भाजपा को रोकने में कामयाब हो जाएगा। लेकिन सारा दारोमदार गठबन्धन में अहम भूमिका निभाने वाली मायावती की बहुजन समाज पार्टी पर है जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत स्थिति से कोई बड़ा उलट फेर कर सकती हैं।

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इन सीटों पर भाजपा का बसपा से हो सकता है सीधा मुकाबला

प्रदेश के सहारनपुर, बिजनौर, नगीना (सुरक्षित), अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर (सुरक्षित), अलीगढ़, आगरा (सुरक्षित), फतेहपुर सीकरी, आंवला, शाहजहांपुर (सुरक्षित) सीटों पर भाजपा का सीधा मुकाबला बसपा से होने की पूरी संभावना बताई जा रही है। इनमें से कुछ सीटों पर कांग्रेस की ताकत से त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है।

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पिछले साल दिसम्बर महीने में तीन हिन्दी भाषी राज्यों के चुनाव में मिली सफलता से बहुजन समाज पार्टी एक नई स्फूर्ति के साथ चुनाव मैदान में है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बढ़े मत प्रतिशत से जहां उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने के संकट से निजात मिली। वहीं चुनावी नतीजों से बसपा सुप्रीमो मायावती को मानों संजीवनी मिल गई है।

एक ओर बसपा भाजपा और कांग्रेस को अपने तेवर दिखा रही है, तो दूसरी ओर सपा को अपने रंग में रंग लिया है।

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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी संकट में आ गया था

मालूम हो कि 2009 से हुए लोकसभा और कई राज्यों के विधान सभा चुनाव में बसपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। 2012 में यूपी से सत्ता हाथ से चली गई तो 2014 में बसपा का लोकसभा के चुनाव में एक भी सदस्य जीत नहीं पाया।

2017 में पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में बसपा चुनाव में उतरी थी। लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके साथ ही बसपा को मिला राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी संकट में आ गया।

मायावती ने पार्टी जनाधार को बढ़ाने के लिए रणनीति में किया बदलाव

हार के थपेड़ों के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के लिए रणनीति में जबरदस्त बदलाव किया। राज्यों के विधान सभा चुनाव में बसपा ने क्षेत्रीय दलों से गठबंधन शुरू किया।

सबसे पहले कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन किया। जिसमें एक सीट जिताने में कामयाब हुई।

हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन किया

इससे पूर्व यूपी में तीन लोकसभा सीट पर सपा को समर्थन देकर भाजपा की गणित बिगाडऩे का प्रयास किया ।

इसके बाद हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन किया। छत्तीसगढ़ के विधान सभा चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन किया।

अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन करना ज्यादा उचित समझा

बसपा ने छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव में 3.8 फीसदी मतों के आधार पर दो सीटें जीतने में सफलता मिली। मध्य प्रदेश में बसपा को 4.8 प्रतिशत वोट मिला और मात्र दो सीटें ही मिल पाईं। जबकि पिछले चुनाव में बसपा को यहां चार सीटें मिली थी।

राजस्थान में जहां बसपा ने अपना मत प्रतिशत चार फीसदी तक पहुंचाया, वहीं पिछली बार की अपेक्षा तीन सीटों के मुकाबले छह सीटें जीतीं।

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मायावती ने एक रणनीति के तहत इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में न तो मध्य प्रदेश में गठबंधन किया और न ही छत्तीसगढ़ में।

छत्तीसगढ़ में बसपा मुखिया ने कांग्रेस की जगह नई पार्टी बनाने वाले अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन करना ज्यादा उचित समझा।

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2014 में कुल 80 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे। जिसमें भाजपा ने 71 और गठबंधन में शामिल अपना दल ने दो सीटें जीतीं।

इस प्रकार भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को रिकॉर्ड तोड़ 73 सीटें मिलीं। जबकि दो सीटें कांग्रेस और पांच सीटें समाजवादी पार्टी को मिलीं लेकिन बसपा का खाता तक नहीं खुला।

वहीं, 2009 के लोकसभा चुनाव में 23.26 प्रतिशत वोट शेयर के साथ समाजवादी पार्टी को 23, कांग्रेस को 18.25 प्रतिशत वोट बैंक के साथ 21 और भाजपा को 17.50 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दस सीटें मिलीं थीं। जबकि रालोद के खाते में पांच लोकसभा सीटें आईं थीं।

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1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद बसपा भी यह चीज भुगत चुकी है। उस वक्त बसपा को महसूस हुआ था कि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर कोई फायदा नहीं हुआ। जबकि 2017 में समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस फायदेमंद नहीं साबित हुई।

मुस्लिमों पर सपा बसपा रालोद और कांग्रेस का दावा आमतौर पर माना जाता है

बहुजन समाज पार्टी को पश्चिमी उप्र में चुनावी लाभ मिलता रहा है।

दलितों पर बसपा, पिछड़ों (जाटों) पर रालोद और भाजपा, मुस्लिमों पर सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस का दावा आमतौर पर माना जाता है।

 

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वेस्ट यूपी की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक है

बसपा के एक पदाधिकारी का कहना है कि वेस्ट यूपी की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक है।

जनसंख्या में मुस्लिम की आबादी करीब 19 फीसदी है। शहरी इलाकों में करीब 32 और ग्रामीण इलाकों में 16 फीसद है।

यूपी में 13 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम की आबादी 30 फीसदी या उससे ज्यादा है। मुजफ्फरनगर सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर में 40 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं।

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बसपा की इस बेल्ट पर पैनी नजर है

रामपुर में 50 फीसदी से ऊपर मुस्लिम की तादाद है। कैराना में 35 फीसदी से ज्यादा, मेरठ में 30 से ज्यादा, बागपत, गाजियाबाद में 25 से ज्यादा, नगीना और बरेली ऐसे जिले है जहां एक तिहाई मुस्लिम हैं।

संभल में 70 फीसदी हैं। सिर्फ गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में 20 फीसदी से कम मुस्लिम हैं। इसलिए बसपा की इस बेल्ट पर पैनी नजर है।

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