Lok sabha election 2019: विरासत की एक जंग में मां -बेटियां और दामाद

लोकसभा के अंतिम दो चरणों मे वैसे तो सबकी निगाह वाराणसी और आज़मगढ़ के संसदीय क्षेत्रो पर टिकी है, पर इन 27 सीटों के चुनाव में एक जंग ऐसी भी है जो मां-बेटी के बीच सियासत में विरासत के लिए हो रही है।

Update: 2019-05-11 09:06 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: लोकसभा के अंतिम दो चरणों मे वैसे तो सबकी निगाह वाराणसी और आज़मगढ़ के संसदीय क्षेत्रों पर टिकी है, पर इन 27 सीटों के चुनाव में एक जंग ऐसी भी है जो मां-बेटी के बीच सियासत में विरासत के लिए हो रही है। यह चुनाव इस परिवार के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा। जंग की खास बात यह है कि जहां बेटी प्रधानमंत्री पद के एक दावेदार नरेंद्र मोदी के साथ है तो माँ इसी पद के दूसरे दावेदार राहुल गांधी के साथ में हैं।

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हम बात कर रहे हैं अपना दल के संस्थापक स्व डॉ सोनेलाल पटेल के अपना दल की, जो टूट चुका है और जिसके एक हिस्से पर उनकी पत्नी कृष्णा पटेल कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव मैदान में है। वहीं दूसरे हिस्से अपना दल (एस), जिसकी अध्यक्ष स्व सोनेलाल पटेल की दूसरी पुत्री अनुप्रिया पटेल पहले ही भाजपा से गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में दो सीटे लेकर चुनाव मैदान में हैं। यह दोनों गुट एक ही परिवार के दो हिस्से हैं। 2014 के चुनाव में यह दोनों दल अविभाजित थे। कांग्रेस ने कृष्णा पटेल को गोंडा और पीलीभीत सीट दी है जबकि अनुप्रिया पटेल को भाजपा ने मिर्ज़ापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट दी है।

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जहां एक तरफ मां कृष्णा पटेल गोंडा से कांग्रेस-अपना दल के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं तो बेटी अनुप्रिया पटेल मिर्ज़ापुर से भाजपा- अपना (एस) के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही हैं। इस जंग की खास बात यह है कि अनुप्रिया के पति आशीष सिंह, जो अपना दल (एस) कोटे से एमएलसी बनकर अब पार्टी के मुखिया है, वहीं कृष्णा पटेल के दूसरे दामाद पंकज निरंजन कांग्रेस के टिकट पर फूलपुर से चुनाव लड़ रहे है, पहले वह इस दल के राष्ट्रीय महासचिव थें।

पर लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और टिकट पाकर फूलपुर से प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं जबकि उनकी पत्नी पल्लवी पटेल अपना दल की महासचिव हैं। इस दिलचस्प जंग की खास बात यह है कि इन दोनों गुटों में खुद को स्व सोने लाल पटेल की विरासत का असली हकदार साबित करना है।

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2014 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल एक ही थे तब कृष्णा पटेल के हाथ में पूरी पार्टी की कमान थी। लोगों की सहानुभूति थी। जिसका लाभ 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में अपना दल को मिला था। कुर्मी समाज ने एकजुटता दिखाकर बेटी अनुप्रिया को रोहनिया (वाराणसी)सीट से विधायक बनाया और फिर 2014 में नरेंद्र मोदी के वाराणसी में प्रत्याशी बनने के बाद मजबूरी के चलते भाजपा ने अपना दल से गठबंधन किया। जिसका भरपूर लाभ अपनादल को मिला।

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अनुप्रिया ने मिर्जापुर से चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री बनी। लेकिन 2017 के विधान सभा चुनाव आते- आते में अपना दल दो हिस्सों में बंट गया। जहां एक तररफ मां कृष्णा पटेल ने 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे वहीं अनुप्रिया पटेल ने भाजपा से गठबंधन कर 11 प्रत्याशी उतार दिए जिनमें 9 को विजय मिली। अनुप्रिया के अपना दल को एक प्रतिशत वोट मिले और कृष्णा पटेल वाले अपना दल को 1,02 प्रतिशत मत मिले।

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अब देखना है कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में, जहां 29 सीटे पर कुर्मी मतों का बोलबाला है। इस चुनाव में मां-बेटी और दो दामादों की जंग में कौन जीतकर स्व सोनेलाल पटेल की विरासत का असली हकदार साबित करता है ?

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