लोकसभा चुनाव: महागठबंधन की रैली दलित-मुस्लिम कार्ड पर सीमित

लोकसभा चुनाव को देखते हुए गठबंधन का फोकस सहारनपुर के देवबंद की रैली में पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम कार्ड पर सीमित रहा। माया,अखिलेश और अजीत इस समीकरण में फायदा देख रहे हैं।

Update: 2019-04-07 16:09 GMT

धनंजय सिंह

लखनऊ: लोकसभा चुनाव को देखते हुए गठबंधन का फोकस सहारनपुर के देवबंद की रैली में पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम कार्ड पर सीमित रहा। माया,अखिलेश और अजीत इस समीकरण में फायदा देख रहे हैं।

चुनाव में भाजपा जहां हिन्दू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण होने पर जीत देख रही है वहीं कांग्रेस को भी गठबंधन के वोट बैंक दलित व मुस्लिम के सहारे अपना कल्याण नजर आ रहा है।

रैली के माध्यम से गठबंधन ने चंद्रशेखर रावण के दलित-मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने का प्रयास किया गया,इसके लिए सभी दल जोर अजमाइश में लग गए हैं।

देवबन्द में बसपा-सपा-रालोद की संयुक्त चुनावी जनसभा रविवार को थी। देवबन्द की यह रैली जामिया तिब्बिया मेडिकल कालेज के पास आयोजित की गई थी। रैली के मंच पर बसपा अध्यक्ष मायावती के अलावा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह भी थे।

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कांग्रेस का पिछले पांच साल का मूवमेंट दलित और मुस्लिम पर रहा

पश्चिमी पश्चिमी उ.प्र के आठ लोकसभा क्षेत्र सहानपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर में 11 अप्रैल को मतदान होने हैं, इनमें सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और गौतम बुद्ध नगर में मुस्लिम और दलित आबादी 60 फ़ीसदी के करीब है। जबकि कैराना, मुजफ्फरनगर,बागपत, गाजियाबाद में मुस्लिम-दलित और जाट की आबादी 60 फीसदी से अधिक है।

एक समय था कि इन लोकसभा क्षेत्रों में जाट और मुस्लिम गठजोड़ चलता था। उसका भरपूर फायदा अजीत सिंह उठाते थे। 2013 के मुज्जफरनगर दंगे ने इस गठजोड़ को तोड़ दिया, उसका नतीजा रहा कि अजीत सिंह कि पार्टी तीसरे और चौथे स्थान पर पहुंच गयी थी। इस आठ लोकसभा क्षेत्रों में बीजीपी ने बाजी मार ली।

यही हश्र 2017 के विधानसभा के चुनाव में हुआ। यहाँ के जाट बीजेपी के साथ हो चले। 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा के चुनाव में सहारनपुर को छोड़ मुस्लिम सपा और बसपा के इर्दगिर्द रहे। जबकि दलित बसपा के साथ थे।

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कांग्रेस के कद्दावर नेता राशिद मसूद इस क्षेत्र में काफी दबदबा था। उनके भतीजे इमरान मसूद ने मुस्लिम-दलित गठजोड़ के सहारे बसपा की लहर में सहारनपुर के मुजफराबाद से निर्दलीय चुनाव जीत कर सनसनी फैला दी थी, वह 2012 में कांग्रेस में शामिल हो गए। 2012 में चुनाव हार गए।

कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद 2014 के लोकसभा चुनाव में दलित-मुस्लिम कार्ड के मूवमेंट के भरोसे मैदान में थे, लेकिन अंतर घट जाने से उनका चुनावी आंकड़ा गड़बड़ हो गया था। ये लगभग 60 हजार वोट के अंतर से हार गए। 2014 में चुनाव हारने के बाद इमरान ने दलित मुस्लिम को एक साथ लाने का अपना मूवमेंट तेज कर दिया था। लेकिन सहारनपुर मंडल, मेरठ मंडल के कई हिस्सों में जातीय हिंसा में रावण का नाम आने के बाद इमरान मसूद अपने मंसूबे में कामयाब हो गए थे।

इस मूवमेंट में दलित नेता चंद्र शेखर रावण का उदय हुआ। चंद्रशेखर रावण का मूवमेंट सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और गौतम बुद्ध नगर समेत एक दर्जन जिलों में दलित-मुस्लिम पर ही फोकस रहा।

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कांग्रेस भी इन आठ लोकसभा क्षेत्रों में अपना ध्यान केंद्रित किये हुए है। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी अधिसूचना लगने से पहले सहारनपुर में अपना रोड शो कर चुके है। प्रियंका गाँधी वाड्रा ने चंद्रशेखर रावण से हॉस्पिटल में अकेले मिल कर गठबंधन की नीद हराम कर दी थी, इस पर मायावती को दलित समुदाय के लिए सन्देश देना पड़ा था कि दलित भाइयों को चंद्र शेखर रावण से सावधान रहने की जरूरत है।

राहुल गाँधी व प्रियंका गाँधी बाड्रा भी सहारनपुर, शामली एवं बिजनौर में कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में ८ अप्रैल को आयोजित विशाल चुनावी जनसभाओं को सम्बोधित करेंगे। कांग्रेस की इस रणनीति की गठबंधन को पहले ही भनक लग गयी थी। मायावती ने चंद्रशेखर रावण के मूवमेंट को देखते हुए देवबंद में खासकर गठबंधन की रैली की।

सहारनपुर के देवबंद में बसपा-सपा और रालेद की संयुक्त रैली में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण कोई महत्व नहीं दिया गया, किन्तु उनके समर्थक उनके पोस्टर व कट आउट खूब लहराए। इस सीट पर गठबंधन ने हाजी फजलुर्रहमान को प्रत्याशी बनाया है।

आज की इस रैली के माध्यम से एक सन्देश देने का प्रयास किया गया कि दलित-मुस्लिम वोटों का बिखराव न हो,जिसका फायदा बीजेपी उठा सके। महागठबंधन ने एक तीर से चंद्र शेखर रावण और इमरान मसूद के गठजोड़ को समाप्त करने का सन्देश देने का काम किया गया हैं। जिससे वोटों के बिखराव को रोका जा सके।

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