चुनावी समर: मूल दल छोड़ कर भी पनपे हैं कई सियासी दिग्गज

इसी तरह बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने वर्ष 1973 में बामसेफ का गठन किया था। इसके बाद उन्होंने डीएस-4 की स्थापना की और फिर 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। सवर्णो के विरोध और दलितों के पक्ष में राजनीति करने वाली बहुजन समाज पार्टी के उत्तर प्रदेश में बड़ा सियासी मुकाम हासिल किया।

Update: 2019-04-14 13:51 GMT

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: राजनीति में कई बार नेताओं का कद इतना बड़ा हो जाता है कि वह पार्टी से बड़े प्रतीत होने लगते है। ऐसे में इन नेताओं को यह मुगालता हो जाता है कि पार्टी उनके भरोसे चल रही है।

कई ऐसे नेता रहे है जिन्हे यह खुशफहमी हो गयी कि पार्टी को मिल रही सफलता केवल उन्ही की वजह से हैं। इनमे से कई नेताओं ने अपनी मूल पार्टी से अलग हो कर अपनी स्वयं की पार्टी बनायी लेकिन उन्हे सफलता नहीं मिली। कांग्रेसी दिग्गज एनडी तिवारी से लेकर भाजपा के दिग्गज कल्याण सिंह तक ऐसे नेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है। इसके बावजूद ऐसे नेता भी है जिन्होंने अपने मूल दल को छोड़ कर नई पार्टी का गठन किया और सफल भी रहे।

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मुलायम सिंह

समाजवादी विचारधारा वाले मुलायम सिंह यादव ने सजपा छोड़ कर 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया । कुछ लोहियावादी नेताओं को साथ लेकर बनायी गयी समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी जो ताकत बढ़ाई वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सियासी दांवपेंचों के माहिर मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी को यूपी की न केवल एक बड़ी राजनीतिक पार्टी बनाया बल्कि खुद भी राजनीतिक क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री बने और यह उनकी बढ़ती ताकत ही थी कि उन्होंने देश का रक्षा मंत्री जैसा अहम पद भी संभाला।

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कांशीराम

इसी तरह बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने वर्ष 1973 में बामसेफ का गठन किया था। इसके बाद उन्होंने डीएस-4 की स्थापना की और फिर 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। सवर्णो के विरोध और दलितों के पक्ष में राजनीति करने वाली बहुजन समाज पार्टी के उत्तर प्रदेश में बड़ा सियासी मुकाम हासिल किया।

कांशीराम ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर वर्ष 1993 में मायावती को अपने जीवित रहते ही उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया। उसके बाद से बसपा और मायावती की राजनीतिक हैसियत देश और प्रदेश में लगातार बढ़ती चली गयी। विभिन्न दलों के साथ गठबंधन कर मायावती यूपी की तीन बार मुख्यमंत्री बनी और वर्ष 2007 में उन्होंने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी।

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सोनेलाल पटेल

इसी तरह कांशीराम के साथ बसपा के संस्थापक रहे सोनेलाल पटेल की गिनती कुर्मियों के बड़े नेता माने जाते थे। वर्ष 1995 में यूपी के मुख्यमंत्री पद पर मायावती का नाम आगे बढ़ाने पर कांशीराम से उनकी नाराजगी बढ़ गयी और 4 नवंबर 1995 में उन्होंने अपनी अलग पार्टी अपना दल बनायी। अपना दल को पहली सफलता वर्ष 2002 में इलाहाबाद में मिली जहां बाहुबली अतीक अहमद अपना दल के टिकट पर विधानसभा चुनाव में जीते। इसके बाद एक दुर्घटना में सोनेलाल पटेल की मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल पार्टी को संचालित करती रही। इसी बीच वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन के तहत सोनेलाल पटेल की पुत्री अनुप्रिया पटेल रोहनियां विधानसभा सीट से चुनाव जीती। इसके बाद वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल अपना दल ने दो लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की।

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नीतीश कुमार

इसी तरह बिहार में नीतीश कुमार जनता दल छोड़ कर अपना राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया और समाजवाद के अगुआ बन कर बिहार में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे और केंद्र सरकार में रेलमंत्री बने। बिहार में ही समता पार्टी छोड़ कर शरद यादव के साथ मिल कर जनता दल यू बनाने वाले नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा और बिहार के मुख्यमंत्री बने।

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