अनेक धर्मों की सृजन भूमि है 'अयोध्या'

भगवान राम के माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लेते ही यह आलौकिक नगरी 'अयोध्या' से 'अयोध्यापुरी' हो गई। इस पवित्र अयोध्या भूमि ने अनेक महान राजाओं को जन्म दिया।

Update:2020-07-31 23:53 IST

शाश्वत तिवारी

अयोध्या जीवन है, अयोध्या सभ्यता है, संस्कृती है अयोध्या।

अयोध्या: भगवान राम के माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लेते ही यह आलौकिक नगरी 'अयोध्या' से 'अयोध्यापुरी' हो गई। इस पवित्र अयोध्या भूमि ने अनेक महान राजाओं को जन्म दिया। महाराज भागीरथ जिनके तप, त्याग व प्रण से मां 'गंगा' पृथ्वी लोक पर आई। सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र जिनके सत्य के आगे देव भी हार गए।

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इन दोनों महान पराक्रमी महाराजाओ के साथ-साथ अयोध्या जैन धर्म के 5 तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी है। जिनमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान 'ऋषभदेव' की जन्मभूमि 'अयोध्या' है।

ऐसे अनेक महान राजाओं, महाराजाओं एवं तपस्वियों की कर्मभूमि व जन्मस्थली जन्मस्थली सही है। इसी पवित्र भूमि अयोध्या में महात्मा बुद्ध ने 16 वर्ष बिताये।

'जैन' धर्म के लिए भी अतिमहत्वपूर्ण तीर्थस्थल है 'अयोध्या'। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान 'ऋषभदेव' की जन्म भूमि।

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हिंदू धर्म के साथ ही अयोध्या 'जैन' धर्म के लिए भी अतिमहत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। अयोध्या इक्षवाकु वंश की नगरी है और 'जैन' धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान 'ऋषभदेव' की जन्मभूमि भी है। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। जैन धर्म की मान्यता अनुसार 22 तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के ही थे। जिनमें 5 तीर्थंकरों की जन्मभूमि 'अयोध्या' ही है। 24 तीर्थंकरों के नाम :-

1- ऋषभदेव 'आदिनाथ'

2- अजीतनाथ जी,

3- संभवनाथ जी

4- अभिनंदन जी

5- सुमतिनाथ जी

6- पद्मप्रभु जी

7- सुपार्श्वनाथ जी

8- चंद्रप्रभु जी

9- पुष्पदंत 'सुविधिनाथ' जी

10- शीतलनाथ जी

11- श्रेयांसनाथ जी

12- वासुपूज्य जी

13- विमलनाथ जी

14- अनंतनाथ जी

15- धर्मनाथ जी

16- शांतिनाथ जी

17- कुन्थुनाथ जी

18- अरनाथ जी

19- मल्लिनाथ जी

20- मुनि सुव्रतनाथ जी

21- नमिनाथ जी

22- अरिष्टनेमी जी 'नेमिनाथ'

23- पार्श्वनाथ जी

24- वर्धमान महावीर जी

इसी पवित्र भूमि 'अयोध्या' में महात्मा 'बुद्ध' ने 16 वर्ष बिताये। जैन शब्द 'जिन' से उत्पन्न हुआ है। जिन का अर्थ है 'जेता'। जिन्होंने समस्त शारीरिक इंद्रियों, विकारों और मानसिक कुभावो पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली हो। ऐसे विज्ञ, साधु, सुजन ही जिन, जिनदेव व जिनेंद्र कहलाते हैं। इसलिए जिनके इष्टदेव 'जिन' है, वह 'जैन' कहे जाते हैं।

(स्रोत:अयोध्या शोध संस्थान)

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