जन्मदिन विशेषः एक योगी का कायांतरण
अजय सिंह बिष्ट! योगी आदित्यनाथ! आदित्यनाथ योगी! योगी आदित्यनाथ! आदित्यनाथ! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जीवन यात्रा के ये पड़ाव हैं। उनके ये रूपांतरण और कायांतरण हैं। अजय सिंह बिष्ट एक बार अपना पिंड दान कर संन्यास लेते हुए योगी आदित्यनाथ बनते हैं।
योगेश मिश्र
आदमी की सफलता और उपलब्धि में योग्यता से अधिक उसकी नियति का हाथ और साथ होता है। हालांकि यह स्वीकार करना उस आदमी के लिए मुश्किल होता है जो निरंतर सफलता के सोपान चढ़ रहा होता है। वह योग्यता के आत्मविश्वास से लबरेज होता है। लेकिन उसके जीवन के काल खंडों की अलग-अलग पसरी हुई कथाओं के तंतु जोड़े जाएं तो योग्यता का उसका दावा नियति के हाथ और साथ पर भारी नहीं रह जाता है।
मुख्यमंत्री की जीवन यात्रा के ये पड़ाव
अजय सिंह बिष्ट! योगी आदित्यनाथ! आदित्यनाथ योगी! योगी आदित्यनाथ! आदित्यनाथ! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जीवन यात्रा के ये पड़ाव हैं। उनके ये रूपांतरण और कायांतरण हैं। अजय सिंह बिष्ट एक बार अपना पिंड दान कर संन्यास लेते हुए योगी आदित्यनाथ बनते हैं। लेकिन 19 मार्च, 2017 की अहम तारीख को क्षण भर के लिए वे आदित्यनाथ योगी हो जाते हैं।
सफलता के पीछे अनंत कथाएं होती हैं
यह एक संत के ‘सीकरी‘ जाने का कायांतरण है। सफलता के पीछे अनंत कथाएं होती हैं। लेकिन उन्हीं कथाओं के पीछे योग्यता और नियति के बीच के संघर्ष में योग्यता के पराजित होने का शोक गीत भी छिपा होता है। जिस भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को सबसे कम उम्र का सांसद बनने का मौका दिया, जिसने उन्हें 325 विधायकों के प्रचंड बहुमत की जमात को दरकिनार कर मुख्यमंत्री बनाया, उसी भारतीय जनता पार्टी की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से छात्रसंघ चुनाव लड़ने की अजय सिंह बिष्ट की मंशा पूरी नहीं हो पायी थी।
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जब अजय सिंह बिष्ट ने छात्रसंघ चुनाव में उम्मीदवारी जताई
एबीवीपी ने उस समय उन्हें टिकट के लायक नहीं समझा पर अपनी धुन के पक्के अजय सिंह बिष्ट ने निर्दल छात्रसंघ चुनाव में उम्मीदवारी जताई, लेकिन पराजित हो गए। अजय सिंह बिष्ट के चुनाव लड़ने की वजह से, कहा जाता है कि, विद्यार्थी परिषद् भी हार गई। छात्रसंघ चुनाव में न जीत पाने वाला यह राजनीतिक अभिलाषी, योग्यता के लिए अनिवार्य 25 साल की उम्र पूरी होने के ठीक एक साल बाद देश के युवा सांसदों में अगुवा बन कर खड़ा हो जाता है।
हिन्दू युवा वाहिनी का खुलेआम संचालन
एक ऐसे कालखंड में जब भारतीय जनता पार्टी अपने ‘हिंदुत्व’ के आवरण को किनारे रख कर अपना रणनीतिक ताना-बाना बुन रही थी तब योगी आदित्यनाथ ‘हिंदुत्व’ की उसी कट्टर राह पर चल रहे थे, जिसे उनकी पार्टी प्रासंगिकता के लिहाज़ से महत्वहीन समझ रही थी। जिस दल के साथ योगी अपनी राजनीतिक पारी खेल रहे थे, उसकी अपेक्षाओं की परवाह किये बिना वह अपनी इस कट्टर सियासत को सींचने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के अपने इलाके में हिन्दू युवा वाहिनी का खुलेआम संचालन कर रहे थे।
कई बार तो उन्होंने पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार भी खड़े किये और जिताये। कई बार उनका उम्मीदवार भी हारा और पार्टी का भी। पूर्वांचल से भाजपा के तीन प्रदेश अध्यक्ष हुए। कलराज मिश्र, रमापति राम त्रिपाठी और सूर्यप्रताप शाही। इनमें से दो के साथ योगी आदित्यनाथ के रिश्ते बहुत मधुर नहीं रहे, यह प्रसंग और कथा के रूप में जगज़ाहिर है।
हिन्दू युवा वाहिनी ने आदित्यनाथ को बड़ा मानव बल दिया
योगी समर्थक हिन्दू युवा वाहिनी के औचित्य को बनाये रखने के लिए यह कहते सुने गए कि वाहिनी नहीं होती तो इलाकाई भाजपाई नेता योगी की राजनीति में पलीता लगा देते। यह सत्य है कि हिन्दू युवा वाहिनी ने आदित्यनाथ को बड़ा मानव बल दिया। उनकी कट्टर छवि को बहुगुणित किया। सामर्थ्य और सदस्यता के लिहाज़ से कई इलाकों में हिन्दू युवा वाहिनी भाजपा पर भारी पड़ी।
वाहिनी की शक्ति के चलते ही योगी आदित्यनाथ भाजपा को अपनी बात मनवाने में सफल होते रहे हैं। योगी की शक्ति के आगे कई बार पार्टी पूर्वांचल में बौनी नज़र आयी। जो पार्टी छात्र इकाई में दाखिला न दे, जो पार्टी विरोध के सुने स्वर को अनसुना कर दे, राष्ट्रव्यापी पार्टी होने का गौरव जिसका योगी के इलाके में कम हो जाता हो, वही पार्टी उन्हें प्रचंड बहुमत की सरकार का मुखिया बना दे?
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अजय सिंह बिष्ट की पैदाइश ने दिया मां-बाप खुशी का बड़ा अवसर
पौड़ी गढ़वाल ज़िले के अधीन, यमकेश्वर विकास खंड के छोटे से गांव पंचूर में चार बहनों के बाद जन्म लेने वाले अजय सिंह बिष्ट की पैदाइश पिता आनंद सिंह बिष्ट व माता सावित्री देवी की खुशी का बड़ा अवसर था। पड़ोस के गांव ठांगर के सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में प्रवेश के साथ उनकी तालीम शुरू हुई। यह स्कूल सिर्फ पांचवीं कक्षा तक था, नतीजतन उन्हें छठवीं कक्षा में चमकोटखाल में दाखिला करा दिया।
यहां उन्होंने नौवीं तक पढ़ाई की। दसवीं में पिता आनंद सिंह बिष्ट अपने साथ टिहरी ले गए और गजा के राजकीय इंटर कॉलेज में दाखिला करा दिए।
11वीं में पढने के लिए वह ऋषिकेश के श्री भारत मंदिर इंटर कॉलेज आ गए क्योंकि ऋषिकेश स्वर्गाश्रम, लक्ष्मण झूला होते हुए उनके गांव पंचूर जाना आसान था। मोटर मार्ग से उनके गांव की दूरी ऋषिकेश से सिर्फ 40 किलोमीटर थी।
वर्ष 1988 में इंटर विज्ञान की पढ़ाई पूरी की
वर्ष 1988 में इंटर विज्ञान की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के अधीन कोटद्वार डिग्री कॉलेज में बीएससी में उनका प्रवेश हुआ। वहां उनकी एक बड़ी विवाहित बहन रहती थीं। सन् 1991 तक वे कोटद्वार में रहे। पहले शिवपुर में एक किराए का कमरा लिया। कुछ दिन बाद कालीगाड़ में भी वह रहे। यहां उनका अधिकतर संपर्क शहरी मिज़ाज में रचे बसे बच्चों की बजाय ठेठ पर्वतीय गांवों से कोटद्वार आये बच्चों से ज़्यादा था।
इस दौर में राम जन्मभूमि आंदोलन की सुगबुगाहट हो गयी थी। अजय सिंह बिष्ट शुरुआती दिनों में ही एबीवीपी के सक्रिय सदस्य बन गए थे। सन् 1990-91 के छात्रसंघ चुनाव में सचिव पद पर परिषद से चुनाव लड़ने की उन्होंने इच्छा जताई।
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जब अजय सिंह को विद्यार्थी परिषद से टिकट के लायक नहीं माना गया
अजय सिंह को जिन दो मुख्य कारणों से विद्यार्थी परिषद से टिकट के लायक नहीं माना गया, वे आज उनकी बड़ी ताकत हैं। वे सीधे शांत स्वभाव के कम बोलने वाले छात्र थे। उन्हें वाकपटुता में कमज़ोर आंका गया। आज योगी वाक्पटु भी हैं और अच्छा भाषण भी देते हैं। उनकी शान्ति और उनके मौन में भी हिंदुत्व की ठोस ठसक दिखती है जिसे पूर्वांचल में लोग ठीक से पढ़ भी लेते हैं।
निर्दल चुनाव लड़ने और उनके नाते एबीवीपी के उम्मीदवार के हार जाने की वजह से संघ और परिषद् से उनके रिश्ते मधुर नहीं रह गए। चुनाव हारने के तीन साल तक अजय सिंह द्वन्द्व से भरे थे।
मन में गंभीर ज्वाला भी दिखती थी
वे शांत और गुपचुप रहने वाले संकोची तो थे। लेकिन उनके मन में गंभीर ज्वाला भी दिखती थी जो उनके ज़िद्दी स्वभाव और हठयोग में साफ पढ़ी जा सकती थी। कोटद्वार प्रवास के दौरान उनके साथ अप्रिय घटना हुई। उनके किराए के कमरे में चोरों ने सामान गायब कर दिया। उनकी सभी मार्कशीट भी उसी में थी। उस वक्त उत्तराखण्ड राज्य नहीं बना था। पहाड़ भी उप्र का हिस्सा था।
डुप्लीकेट मार्कशीट के लिए लिखा-पढ़ी और दौड़-भाग के लिए गजा इंटर कॉलेज के बाद ऋषिकेश और इलाहाबाद स्थित माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर का चक्कर लगाने का काम सर पर आ गया।
इन झंझटों के चलते एमएससी में प्रवेश लेने की तैयारी पर पानी फिर गया। कोटद्वार से मोहभंग के बाद पिता ने एमएससी में प्रवेश के लिए ऋषिकेश महाविद्यालय जाने को कहा लेकिन बिना मूल प्रमाण पत्र के प्रवेश मुश्किल हो गया।
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गणित विषय से एमएससी करने की थी
गोरक्षपीठ के महंत और गोरखपुर के सांसद रहे अवैद्यनाथ जी का मूल गांव यमकेश्वर ब्लॉक में कांदी है, जो अजय सिंह बिष्ट के गांव पंचूर से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस कारण दोनों एक दूसरे से अपरिचित नहीं थे। अजय सिंह आगे पढ़ना चाहते थे। उनकी मंशा गोरखपुर में रहते हुए गणित विषय से एमएससी करने की थी। लेकिन अवैद्यनाथ जी की दिली इच्छा थी कि वह मठ के उत्तराधिकारी बनें।
उन्होंने अजय सिंह बिष्ट को संन्यास धारण करने को राज़ी कर लिया। इस बारे में अजय सिंह ने अपने पिता को एक पत्र लिख कर सूचित किया।
बताया कि गोरखपीठ में दीक्षा लेने और संन्यास के बाद मेरा नाम आदित्यनाथ पड़ चुका है। पुत्र के इस मार्मिक पत्र ने माता-पिता, बहनों और भाइयों को भावुक कर दिया।
जब पिता उनसे मिलने गोरक्षपीठ आये
उनके पिता उनसे मिलने गोरक्षपीठ आये। जब वे गोरखनाथ मंदिर में पहुंचे तो संयोग से कायान्तरण करके अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ जो बने थे, वे मंदिर और मुख्य द्वार के बीच खड़े थे।
उनके पिता को लोगों ने इशारा करके बताया कि वही आदित्यनाथ हैं। भगवाधारी पुत्र को देख पिता भावुक हो गये, पर योगी आदित्यनाथ ने दूर खड़े अवैद्यनाथ जी की ओर इशारा करके कहा कि अब वे मेरे पिता हैं। यही मेरा जीवन है। यहीं के लिए समर्पित है और वे अपने पिता को छोड़ महंत अवैद्यनाथ जी के पास खड़े हो गये। संन्यास के बाद उन्होंने कभी भी अपने घर में कदम नहीं रखा।
जनमानस में उनकी प्रतिष्ठा है
हालांकि भाजपा के प्रचार और चुनावी सभाओं को सम्बोधित करने इस क्षेत्र में नियमित आते-जाते हैं। जनमानस में उनकी प्रतिष्ठा है। संन्यास के बावजूद वह इस क्षेत्र के लोगों को अपनी स्मृतियों में रखते हैं। कहते हैं कि उनके इस फैसले से विचलित पिता आनंद सिंह उनसे मिलने गोरखपुर आ धमके। उन्होंने अजय सिंह के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि तुम्हारी जो इच्छा है वह करो, लेकिन तुम्हारे संन्यास के फैसले पर हम माता-पिता, भाइयों और बहनों की कोई सहमति नहीं है।
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चैनलों से पता चला कि आदित्यनाथ उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे
उनके पिता बताते थे कि उनके बीएससी की किताबें उनकी स्मृति स्वरूप घर में सहेज कर रखी गयी हैं। बीते, मार्च, 2017 में चैनलों से आनंद सिंह को पता चला कि आदित्यनाथ उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इस खुशी में पंचूर में कई दिनों तक उत्सव का माहौल रहा। मामूली खेती बाड़ी के अलावा परिवार का जीवनयापन उनके पिता की मामूली पेंशन से चलता है। एक बहन गांव से कुछ दूर एक मंदिर में पूजा सामग्री बेचकर अपने परिवार का गुजर बसर करती है।
भोजन के लिए भी उनकी कोई खास पसंद नहीं
उनके छोटे भाई महेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि बड़े भाई गोरखपुर पहुंच गए थे। जब पिता उनसे मिल कर लौट कर आये तो घर में सब रोने लगे, क्योंकि किसी को अनुमान नहीं था। महेंद्र सिंह बिष्ट के मुताबिक उनके बड़े भाई जो आज योगी आदित्यनाथ हैं, उनमें वित्तीय अनुशासन पहले से रचा बसा है। भोजन के लिए भी उनकी कोई खास पसंद नहीं थी। दूध-दही से भी काम चल जाता था।
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पढ़ना उनकी निजी आदत का हिस्सा
पढ़ना उनकी निजी आदत का हिस्सा है। यही वजह है कि संन्यास ग्रहण करने के बाद उनके गुरु अवैद्यनाथ जी ने उन्हें शास्त्र की खूब शिक्षा दिलाई। शास्त्र उनके जीवन का हिस्सा है। ‘हठयोग’ उनका संन्यास धर्म भी है।