कोरोना-जीवन का युद्ध

ऐसी मौत किसी को ना मिले, जहां छाती से लिपटकर रोने के लिए अपने भी ना हो और उस श्मशान तक पहुंचाने के लिए चार कंधे भी ना हो.

Written By :  Chitra Singh
Update: 2021-05-06 09:44 GMT

कोरोना संक्रमण से मौत (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

ऐसी मौत किसी को ना मिले,

जहां छाती से लिपटकर रोने के लिए अपने भी ना हो,

और उस श्मशान तक पहुंचाने के लिए चार कंधे भी ना हो,

ऐसी मौत किसी को ना मिले,

चंद मिनट पहले ही हम सब ठीक थे,

थोड़ा बुखार जुकाम और सांस लेने में तकलीफ हुई,

चेकअप कराया तो पता चला रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव है,

सांसे थम सी गई, क्योंकि अपनी नहीं अपनों की चिंता होने लगी.

चिंता इस बात की कि कहीं मेरी लापरवाही के कारण अपने भी संक्रमित ना हो जाए.

फिर मैं कोविड हॉस्पिटल में भर्ती होने के लिए गया,

मेरे साथ परिवार के कुछ सदस्य भी थे,

हॉस्पिटल के स्टाफ ने उनसे बोला कि बेड खाली नहीं है,

मैं वहीं हॉस्पिटल के बाहर तड़प रहा था,

तेज बुखार ने पूरे शरीर को जकड़ रखा था,

फिर परिवार वालों नें जैसे-तैसे एडमिड कराया दिया,

मरीज (फाइल फोटो- न्यूज ट्रैक)

कुछ दिनों के बाद बेहतर महसूस होने लगा था,

लगा कि मैनें कोरोना को मात दे दिया कि अचानक सांसे थमने लगी,

ऑक्सीजन चाहिए था मुझे, मगर मिला नहीं,

डॉक्टर ने कहा कि हॉस्पिटल में ऑक्सीजन नहीं है,

अगर कहीं से बदोबस्त कर सकते है तो आप करिए,

ये तो मुझे भी पता था कि बाहर ऑक्सीजन का मारामारी चल रही है,

शायद ही मुझे ऑक्सीजन मिल पाए,

मेरा परिवार मुझे बचाने से लिए पूरी ताकत झोक दी,

मेरी पत्नी मुझे बचाने के लिए लगातार मुंह से सांसे देती रही,

मरीज और परिजन (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

बेटी हॉस्पिटल में लगातार डॉक्टरों से मदद मांगती रही,

उधर बेटा और बापूजी ऑक्सीजन प्लांट पर ऑक्सीजन के लिए अपनी एड़ियां रगड़ रहे थे,

अंतिम वक्त तक मेरा परिवार कोशिश करताा रहा,

लेकिन वहीं हुआ जो आखिरी मौके पर सबको महसूस हो जाता है,

अफसोस इस जंग में कोरोना ने बाजी मारी और मेरी हार हुई,

थम गई मेरी सांस, हमेशा-हमेशा के लिए,

जिंदगी का सफर खत्म हो गया मेरा.

फिर कोविड मृतक कहकर,

हॉस्पिटल वालों ने मुझे अपनो से अलग कर दिया गया,

श्मशान पर कूड़े की तरह मेरे शरीर को फेंक दिया गया,

दाह संस्कार भी अच्छे से नहीं हुआ और लावारिस की तरह ही जला दिया गया,

इसलिए कह रहा हूं,

ऐसी मौत किसी को ना मिले

जहां छाती से लिपटकर रोने के लिए अपने भी ना हो,

और उस श्मशान तक पहुंचाने के लिए चार कंधे भी ना हो,

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