आखिर दविंदर सिंह कौन सा गेम खेल रहा था जो यह बात उसने दक्षिण कश्मीर के डीआईजी अतुल गोयल से गिरफ्तारी के समय कहा था। जब उसे जम्मू-श्रीनगर हाई वे पर दक्षिण कश्मीर के मीर बाजार (कुलगाम)में पकड़ा गया तब उसके साथ कार में हिजबुल का दक्षिण कश्मीर का ऑपरेशनल डिविजनल कमांडर नवीद बाबू और पुलिस का एक भगोड़ा भी था जो 2017 में हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था। ऐसे में यह मामला हथियारों की खरीद फरोख्त से भी जुड़ा हो सकता है। इस डीएसपी के बारे में पुलिस सूत्र बताते हैं कि उसने कई आतंकियों को मार गिराने में अहम भूमिका निभाई है। उसे बहादुरी के कई इनाम भी मिल चुके हैं। डीएसपी दविंदर श्रीनगर एयरपोर्ट पर एन्टी हाई-जैक विंग में तैनात था। उसने संसद हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरु को पकडऩे में अहम भूमिका भी अदा की थी।
पुलिस द्वारा जिस फिल्मी अंदाज में गिरफ्तारी की गई वह कई अनुत्तरित सवाल छोड़ती है। वहां की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाती है तथा इंटेलिजेंस, काउंटर इंटेलिजेंस और काउंटर सिक्योरिटी को संदेह के घेरे में ले आती है। कैसे यह व्यक्ति पूरे 25 साल तक पुलिस और सुरक्षा तंत्र को बेवकूफ बनाता रहा और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि इतने बड़े पुलिस तंत्र में कभी कभी चूक हो जाती है। लेकिन यह बात गले के नीचे नहीं उतरती। कहीं ऐसा तो नहीं कि दविंदर सिंह सिर्फ एक मोहरा है और इसकी आड़ में कोई बड़ा खेल खेला जा रहा था। इसकी त्वरित जांच ज़रूरी है। फिलहाल एनआईए (नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी) इसकी जांच कर रही है। लेकिन एनआईए का अभी तक का ट्रैक रिकार्ड संतोषजनक नहीं रहा है। कई ऐसे मामले हैं जिसमें पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। सब शंकाओं पर विराम लगाते हुए केंद्र सरकार को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग या रिटायर्ड जज की अगुवाई में एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन कर जांच करानी चाहिए जिसमें पूरी पारदर्शिता हो।
दविंदर सिंह के बारे में कई सवाल और भी हैं - किसके निर्देश पर वह आतंकवादियों को चंडीगड़ और फिर वहां से दिल्ली ले जा रहा था। अपनी रवानगी की क्या उसने सूचना दी थी? क्यों इसने गिरफ्तारी के समय कहा, यह गेम है?
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जब इसे 2018 में शेरे-कश्मीर पुलिस मेडल दिया गया तब प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था। इंटेलिजेंस एजेंसी ने जरूर उसके रिकार्ड की स्क्रूटिनी की होगी तभी उसके बारे में जानकारी हासिल क्यों नहीं हो सकी? 90 के दशक में एक तस्कर को भारी मात्रा में अफीम के साथ पकड़ा तथा पैसा लेकर छोड़ दिया तथा अफीम को खुले बाजार में बेच दिया। जांच में दोषी पाए जाने पर निलंबित किया जाता है फिर वरिष्ठ अधिकारियों की मेहरबानी से नई नियुक्ति पाने में सफल होता है। क्यों नहीं इस घोर अपराध के लिए बर्खास्त किया गया? क्या कोई एफआईआर दर्ज हुई? इन सबको स्क्रूटिनी का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया? ड्रग तस्करी,जबरन वसूली, कार चोरी,चरमपंथियों की मदद के आरोपों के बीच कैसे यह संवेदनशील पोस्टिंग पाता रहा? बहुत जल्दी वह इंस्पेक्टर से डीएसपी बन गया। 57 साल के दविंदर की फाइल कैसे एसपी पद पर प्रमोशन के लिए शासन में अनुमोदन के लिए भेजी गई, इंटेलिजेंस विंग किसके इशारे पर बार बार अनदेखी कर रहा था? पुलिस सूत्र बताते हैं कि दविंदर सिंह लालची था और बिक सकता था तो फिर उसे क्यों यूनाइटेड नेशंस पीस कीपिंग फोर्स के साथ पूर्वी यूरोप 2003 में भेजा गया? अफजल गुरु ने दविंदर सिंह पर संसद हमले के आरोपी की मदद का आरोप लगाया था। इस आरोप की क्यों नहीं जांच हुई? क्या दविंदर के तार पार्लियामेंट अटैक से भी जुड़े हैं?
इन सब का सार यही है इस मामले की जड़ तक जाना और जो बड़े खिलाड़ी हैं उन तक पहुंचना एवरेस्ट की चढ़ाई की तरह है। इस पर अगर किसी तरह की राजनीति होती है तो इसका मतलब होगा जांच को भटकाना। यह देश की सुरक्षा के साथ एक भारी चूक होगी और इसका परिणाम भी घातक होगा।
प्राय: आतंकवाद को मजहब की निगाह से ही देखा जाता है। लेकिन अगर आप आतंकवाद को ईरान, इराक, सीरिया जैसे देशों की राजनीति में समझने का प्रयास करेंगे तो यहां आतंकवाद बाहर से मजहब का रूप लिए दिखेगा मगर भीतर से उसके संबंध सरकारों से नजर आते हैं। कई देशों में यह राज्य की सत्ता का हिस्सा भी है जिसे डीप स्टेट कहते हैं। जो लोग आतंकवाद को इस नजर और समझ से देखते हैं तो सिर्फ डीएसपी दविंदर की गिरफ्तारी से हैरान नहीं होंगे। सामान्य लोगों की नजर पर राजनीति और मीडिया की बनाई हुई छवि का पर्दा होता है और बहुत से लोग उसी नजर से आतंकवाद को देखते हैं। लेकिन सिर्फ ऊपर से नहीं बल्कि गहराई से देखने और समझने की जरूरत है।
(लेखका स्वतंत्र पत्रकार हैं)