जब इंदिरा, संजय मुर्दाबाद बोलने पर घर तक पहुंच गई पुलिस
उनको ये बात खराब लगने की वजह यह थी कि देश के विभाजन के बाद आए शरणार्थियों को उनहोंने पं. जवाहर लाल नेहरू के विरोध को दरकिनार कर हरिद्वार में बसाया था। देश की आजादी से पहले क्रांति की अलख जगाने में जुटे रहने के कारण घर की तमाम बार कुर्की हुई। अनगिनत बार जेल गए।
रामकृष्ण वाजपेयी
25 जून 1975 वह तारीख है जब इस देश में आपातकाल लागू हुआ। मैं उस समय लगभग नौ साल का था। पिताजी स्व. मधुसूदन वाजपेयी दैनिक जागरण कानपुर में उप संपादक थे। वैसे तो हम लोग यानी अम्मा पिताजी, भैया और दो छोटी बहनें कानपुर में पी रोड के पास गांधीनगर में मिश्राजी के मकान में रहा करते थे। लेकिन 10 जून 1974 को मेरी दादी के कैंसर से निधन के बाद बाबा (स्व. आचार्य किशोरीदास वाजपेयी) अम्मा व दो छोटी बहनों के साथ मुझे लेकर कनखल हरिद्वार चले गए।
बाबा पहले से ही गांधी और नेहरू की नीतियों के कटु आलोचक रहे थे। सो इंदिरा गांधी की नीतियों से भी सहमत नहीं थे वह सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक थे। जब इमरजेंसी लगी तो व्यापक विरोध हुआ दैनिक जागरण के मालिक नरेंद्र मोहन को भी विरोध के कारण जेल पड़ा।
कतराने लगे लोग
दमन चक्र शुरू हो चुका था लेकिन बाबा पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वह चौराहों और नुक्कड़ पर खड़े होकर इंदिरा गांधी की मुखर आलोचना कर रहे थे। धीरे धीरे लोग उनसे कतराने लगे। उन्होंने ये बात घर में आकर कही कि बहू पता नहीं क्या हो गया है मै जब कुछ बोलता हूं तो लोग दांयें बाएं हो लेते हैं।
उनको ये बात खराब लगने की वजह यह थी कि देश के विभाजन के बाद आए शरणार्थियों को उनहोंने पं. जवाहर लाल नेहरू के विरोध को दरकिनार कर हरिद्वार में बसाया था। देश की आजादी से पहले क्रांति की अलख जगाने में जुटे रहने के कारण घर की तमाम बार कुर्की हुई। अनगिनत बार जेल गए।
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बावजूद इसके जब पेंशन और मुआवजा लेने का समय आया तो पं. नेहरू से विरोध हो गया। इसलिए उन्हें न तो जीते जी और न मरने के बाद आज तक सरकार से स्वतंत्रता सेनानी का तमगा मिल पाया। खैर ये फिर कभी...।
मैं कहीं नहीं जाऊंगी
दो तीन दिन बाद बाबा को किसी ने बताया कि पंडित जी इमरजेंसी लगी है और आप इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे हो। लोग जेल भेजे जा रहे हैं आपके पीछे भी सीआईडी लगी है। इस पर बाबा ने घर आकर अम्मा से कहा बहू देश के हालात बहुत खराब हैं। मै तो खुद को बदल नहीं सकता। अगर मैं गिरफ्तार हो जाऊं तो तू बच्चों को लेकर कानपुर चली जाना।
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इस पर अम्मा ने कहा दादा अगर मै यहां न आयी होती तब तो कोई बात नहीं थी लेकिन इस स्थिति में जो होगा देखा जाएगा मै कहीं नहीं जाऊंगी। मां के इस जवाब के बाद मेरे अख्खड़ मिजाज बाबा बेधड़क हो गए और खुलकर इमरजेंसी का विरोध करने लगे। हालांकि उनको किन्हीं कारणों से उस समय गिरफ्तार नहीं किया गया।
लगा दिया नारा
इस बीच 1976 में में मेरा कनखल हरिद्वार के सनातन धर्म हायर सेकंड्री स्कूल में कक्षा 6 में दाखिला हो गया। स्कूल में बच्चों के बीच बात चलती थी कि इस समय कोई इंदिरा गांधी, संजय गांधी के खिलाफ नहीं बोल सकता जो बोलेगा जेल जाएगा। मुझे ये बात समझ में नहीं आई।
दोस्तों में शर्त लग गई। छुट्टी के समय हम चार पांच लड़के दौड़ते हुए कनखल में चौक में लगे झंडे के नीचे खड़े हुए मैने नारा लगाया इंदिरा गांधी मुर्दाबाद, संजय गांधी मुर्दाबाद, नसबंदी के तीन दलाल इंदिरा संजय बंसीलाल साथियों ने दोहराया।
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शाम को थाना इंचार्ज पिताजी से मिला कहा पंडित जी बच्चे को समझा दीजिए हम लोगों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। इसके बाद पिताजी ने समझाया कि तुम्हें नेतागिरी करने स्कूल भेजा जाता है या पढ़ने के लिए।
उन्होंने समझाया कि पुलिस ले जाकर जेल में डाल देगी और पिटाई भी होगी। खैर 21 मार्च 1977 को आपातकाल हट गया और देश ने सुकून की सांस ली।