बजेगा अब अदालत का घंटा !

हैदराबाद पुलिस की राष्ट्रव्यापी प्रशस्ति से माथा ठनकता है| मुठभेड़ की वारदात पर विधायकों (सांसदों) की उद्दीप्ति और न्याय प्रक्रिया की निरुद्देश्यता से सभ्य समाज का सहज संतुलन अस्थिर हो गया है|

Update:2019-12-08 16:12 IST

के. विक्रम राव

हैदराबाद पुलिस की राष्ट्रव्यापी प्रशस्ति से माथा ठनकता है| मुठभेड़ की वारदात पर विधायकों (सांसदों) की उद्दीप्ति और न्याय प्रक्रिया की निरुद्देश्यता से सभ्य समाज का सहज संतुलन अस्थिर हो गया है| तारीख पर तारीख का दस्तूर ही मूलभूत कारण है| उन्नाव के पांच बलात्कारियों को जमानत न मिलती तो शायद वह जलाई गई पीड़िता दिल्ली अस्पताल में मरने से बच जाती| जांच होनी चाहिए कि इतनी सुगमता से रिहाई उन बलात्कारियों को क्यों मिली? किसने जमानत दी ? उन्नाव की यह दूसरी घटना है| विधायक कुलदीप सिंह सेंगर वाली पहली थी|

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अब यूपी तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्री फास्टट्रैक कोर्ट बनाने की बात करते हैं | पर वस्तुतः प्रश्न यह है कि जब सीमा पर तैनात सैनिक, पुलिस, फायर ब्रिगेड, श्रमजीवी पत्रकार, डॉक्टर आदि सात दिन में 24 घंटे कार्यरत रहते हैं, शिवालय सदा खुले रहते हैं, तो फिर न्यायालय सप्ताह में पांच दिन और वह भी दस से चार बजे तक ही क्यों? ग्रीष्मावकाश अलग| आखिर न्यायार्थी तो आराधक है, जिसकी घंटी सदैव सुनी जानी चाहिए| केवल अदले जहाँगीर के काल में ही नहीं|

अख़बारों में पढ़ते और संसद में प्रश्नोत्तर सुनते आँखे पथरा जाती हैं कि लाखों की संख्या में मुकदमें लंबित पड़े हैं| जेलों में मियाद पूरी होने पर भी कैदी सड़ते रहते हैं| भारत के पांच राज्यों की जेलों में तेरह माह बिता कर मैं निजी अनुभव से कह सकता हूँ कि न्यायप्रक्रिया का मखौल इन जेलों में घृणित रूप से उड़ता है| बिना न्यायिक आदेश के रिहाई नहीं होती| जेलर महोदय के पास फाइल जाँचने की फुर्सत नहीं| तिहाड़ जेल में परिचारक के तौर पर डाकू सुन्दर का बेटा हमें मिला था| संजय गाँधी के आदेश पर दिल्ली पुलिस आयुक्त प्रीतम सिंह भिंडर ने हौज में डुबो डुबो कर सुन्दर को मारा था | फिर यमुना में उसका शव मिला था| उसका तरुण बेटा न्यायालय से नाराज था| उसे वहाँ (इमरजेंसी 1975 में ) इंसाफ नहीं मिला| स्वाभाविक है कि प्रतिरोध के लिए वह हिंसक अपराधी बनेगा ही|

शायद ऎसी ही न्यायिक उदासीनता के कारण तुर्की में उक्ति है कि न वकील को पारिश्रमिक दो, न जज को नजराना दो और न पुलिस को रिश्वत| सीधे माफिया को पेशगी दे दो| जमीन का कब्ज़ा, शत्रु को ठिकाने लगाना, उधार की धनराशि की वसूली, जेल से रिहाई आदि सरलता से संपन्न हो जायेंगे| चीन का अनुभव भारत से एकसां है| चीन में कहावत है कि अदालत गाय लेकर जाओ, तो वकील को खर्चा देने के बाद, बिल्ली लेकर लौटो| जमीन-जायदाद का परिमाण भी सिकुड़ जाता है|

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इसीलिय जब तक भारतीय न्यायालय गतिशील नहीं होंगे, हैदराबाद पुलिस की तारीफ होती रहेगी| न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल क्षमता और अर्हता के आधार पर ही हो, वंशानुगत प्रभाव वर्जित हों| वर्ना कोर्ट भी अन्य सामाजिक संस्थानों की भांति कुंठित रहेंगे| हाल ही में लखनऊ हाईकोर्ट के जज की रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ़्तारी एक उदाहरण है और चेतावनी भी|

मगर प्रश्न तो हैदराबाद, उन्नाव आदि से आया है| आरोपी को दण्ड कब ? इंग्लॅण्ड के बादशाह जॉन ने जून 1215 में मैग्नाकार्टा (जनाधिकार घोषणापत्र) में लिखा था कि न्याय की बिक्री तथा उसकी प्राप्ति में वंचना और विलम्ब निषिद्ध है| भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक न्याय प्रणाली अभी भी चालू है| तो फिर मैग्नाकार्टा की धारा लागू क्यों नहीं हो?

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इसी परिवेश में एक अपील बार काउन्सिल के सदस्यों से भी| यदि वकीलजन आतंकियों और बलात्कारियों की पैरवी से इनकार कर दें तो न्याय पाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी| एक फिल्म में अनुपम खेर बलात्कारियों के वकील थे| अभियुक्तों को मुक्त करा दिया| मगर वे रेपिस्ट लोग बाद में वकील खेर की पुत्री को ही उठा ले गये| तब उन्होंने फिल्म में प्रण किया कि ऐसे जघन्य आपराधियों की वकालत कभी भी नहीं करेंगे| अतः वकीलों की बहने, माताएं, बेटियाँ, पत्नी आदि उनपर दबाव बनायें| नारी शक्ति का जौहर दिखाएँ|

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