कैसा है भारत की आर्थिक वृद्धि और मानव विकास में सम्बंध?

अर्थव्यवस्था के सबसे प्रमुख घटक यानी कि मानव का विकास इसकी तुलना में बेहद धीमी गति से हुआ है।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2021-05-03 05:17 GMT

  सांकेतिक तस्वीर (साभार-सोशल मीडिया)

विक्रांत निर्मला सिंह

कोविड-19 के प्रभाव में पूरी दुनिया को एक बार पुनः मानव विकास और आर्थिक वृद्धि के मध्य संबंध पर चिंतन करने को मजबूर किया है। सवाल यह है कि क्या मानव विकास का वर्तमान स्वरुप मौजूदा आर्थिक वृद्धि की तुलना में न्यायोचित है? यह सवाल इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि पिछले पांच दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था कई गुना से बड़ी है लेकिन अर्थव्यवस्था के सबसे प्रमुख घटक यानी कि मानव का विकास इसकी तुलना में बेहद धीमी गति से हुआ है।

आर्थिक वृद्धि और मानव विकास के संदर्भ में सबसे पहले डॉ अमृत्य सेन और डॉ महबूब उल हक ने बताया था। आज पूरी दुनिया में आर्थिक विकास की गुणवत्ता को वहां के मानव विकास के आधार पर देखा जाने लगा है। आज दुनिया के देशों की तुलना में जीडीपी के आधार पर नहीं बल्कि भुखमरी, गरीबी, मानव विकास, नागरिक स्वतंत्रता, लैंगिक समानता आदि जैसे पैमानों पर की जाने लगी है। भारत के संदर्भ में तो यह बहस काफी विस्तृत और चिंतनीय हो जाती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की कहानी 

वर्तमान में भारत 132 करोड़ आबादी का देश है और संख्या की दृष्टि से दुनिया में मानव पूंजी का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की कहानी ने काफी प्रभावित किया है। 90 के दशक के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था उन चुनिंदा अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही है, जिसने दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान किया है। लेकिन भारत के संदर्भ में व्याप्त आर्थिक असमानता, गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा जैसे ढेरों सवाल इसके आर्थिक विकास पर प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं।

1947 में आजादी के उपरांत तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गरीबी, अवसरों की समानता, व्याप्त बीमारियों के समाप्त करने को सबसे बड़ी आजादी के रूप में रखा था। पहली पंचवर्षीय योजना में तो इसके संदर्भ में बहुत विस्तृत रूपरेखा नहीं मिलती है, परंतु द्वितीय पंचवर्षीय योजना में तेज औद्योगिकरण के जरिए राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी कर लोगों के जीवन स्तर को बढ़ाने की वकालत की गई थी। आगे चलकर आठवीं पंचवर्षीय योजना में मानव विकास को केंद्रित लक्ष्य मानकर रोजगार, जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ जल एवं बुनियादी ढांचे पर अधिक काम करने की बात कही गई थी। लेकिन इन सभी पंचवर्षीय योजना के अध्ययन के उपरांत यह बहस आज भी बरकरार है कि भारतीय आर्थिक विकास का इसके मानव विकास पर क्या प्रभाव रहा है?

भारत की स्थिति अभी भी दयनीय

मानव विकास के कुछ पैमानों पर भारत को देखें तो हम आते हैं कि भारत की स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 94 वें स्थान पर है। हैप्पीनेस इंडेक्स में 139 वें स्थान पर है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जाना जाने वाला भारत, डेमोक्रेसी इंडेक्स में 53 वें स्थान पर है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में 112 वें स्थान पर है। गरीबी सूचकांक में 62 वें स्थान पर है। भारत की सबसे बुरी स्तिथि आर्थिक असमानता के क्षेत्र में है। महज 1 फीसदी आबादी के पास कुल 70 फीसदी से अधिक की संपत्ति मौजूद है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में भारत की स्थिति सुधरी भी है। भारत की प्रति व्यक्ति आय दर में काफी सुधार हुआ है। वर्ष 1950 में भारत की सालाना प्रति व्यक्ति आय दर 5708 रुपए थी जो वर्तमान में 1.08 लाख के पास है। जीवन प्रत्याशा दर में भी बड़ा सुधार हुआ है। सन 1950 में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा दर 37.2 वर्ष और महिलाओं की 36.2 वर्ष थी, जो वर्तमान में दोनों वर्गों के लिए 70 वर्ष के पार पहुंच रही है।




 


भारत की साक्षरता दर में भी काफी इजाफा हुआ है। वर्ष 1950-51 में भारत की साक्षरता दर 16.67 फ़ीसदी थी, जो वर्तमान में बढ़कर 77 फीसदी हो चुकी है। भारत की व्यवसायिक संरचना में भी काफी बदलाव आया है। वर्ष 1950-51 में कृषि क्षेत्र 72.1 फ़ीसदी, निर्माण क्षेत्र 10.7 फीसदी और सेवा क्षेत्र 17.2 फीसदी रोजगार उपलब्ध कराता था, आज यह बदलकर 41.49 फ़ीसदी, 26.18 फीसदी और 32.33 फीसदी क्रमशः हो चुका है। साथ ही साथ इनका कुल जीडीपी में योगदान का प्रतिशत भी बदल चुका है। सन 1950-51 में कृषि क्षेत्र 59%, निर्माण क्षेत्र 13 % और सेवा क्षेत्र 28 % का जीडीपी में योगदान रहता था। लेकिन वर्तमान में यह क्रमशः 17.76%, 27.48% और 54.7 % का आकड़ा हो गया है। यह महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी भी 50 फ़ीसदी आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, लेकिन जीडीपी में उसका कुल योगदान घटकर महज 17 फ़ीसदी हो चुका है।

इसलिए भारतीय मानव विकास और आर्थिक वृद्धि में कुछ सकारात्मक और नकारात्मक संबंध देखने को मिलते हैं। लेकिन निष्कर्ष की बात करें तो यही कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास ने मानव विकास में उतना योगदान नहीं किया है, जितना उम्मीद किया गया था। इसके पीछे कुछ बुनियादी कारण है। भारत का डाटा इन्फ्राएस्ट्रक्चर यानी कि आंकड़ों को एकत्रित करने का तरीका इतना मजबूत नहीं है कि असली लाभार्थी तक पहुंच कर मानव विकास को सुनिश्चित किया जा सके। इसलिए आजादी के बाद से बनी हजारों नीतियों का लाभ कभी भी उतना नहीं मिल सका। एक और बड़ी समस्या आबादी के चिन्हित करने की भी रही है। जिस आबादी को चिन्हित करके उसके मानव विकास को सुनिश्चित किया जाना था, वह कभी भी ठीक ढंग से नहीं हो सका। एक सामान्यीकरण तरीके से योजना का निर्माण और उनका क्रियान्वयन होता रहा लेकिन यह व्यक्तिगत रूप में किया जाना चाहिए था। मानव विकास के मायने व्यक्ति दर व्यक्ति व्यक्ति बदलते रहते हैं इसलिए सामान्य नजरिया बहुत लाभान्वित करता नहीं दिखता है। वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी जरूरत है कि वह अपने आर्थिक वृद्धि को पुनः ठीक कर मानव विकास को सुनिश्चित करें। कोविड-19 की महामारी ना सिर्फ आर्थिक विकास बल्कि मानव विकास को भी बहुत बुरे तरीके से प्रभावित कर रही है। 


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