Weddings In India: शादियां और शादियों का आयोजन
Wedding Expenses In India: शादी विवाह का आयोजन पहले भी एक खर्चीला आयोजन हुआ करता था और आज और भी ज्यादा हो चुका है। शादी-विवाह का आयोजन अब एक इंडस्ट्री का रूप ले चुका है, जिसके लिए माना जा रहा है कि यह 10 लाख करोड़ रुपए तक वाली देश की चौथी सबसे बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है।
Weddings In India: हमारे देश में शादियां सिर्फ एक लड़की, एक लड़के की शादी मात्र नहीं होती है बल्कि यह एक पारिवारिक, सामाजिक आयोजन भी होता है। कहा जाता है कि एक शादी का अर्थ है अगले 100 साल के लिए दो परिवारों के बीच नींव डालना। यह आयोजन होता है अपने परिजनों से मिलने का। आज जब सभी रिश्तेदार देश के दूर-दराज के अलग-अलग क्षेत्रों में रहते हैं तो इस भागती -दौड़ती कम समय वाली दुनिया में शादी विवाह एक ऐसा ही अवसर होता है, एक ऐसा प्लेटफॉर्म होता है जिसके माध्यम से वर्षों तक एक दूसरे से न मिले रिश्तेदार, नए परिचित, पुराने परिचित मिलते हैं।
शादी विवाह का आयोजन पहले भी एक खर्चीला आयोजन हुआ करता था और आज और भी ज्यादा हो चुका है। पहले भी शादी विवाह में आदमी अपनी पूरी जमा पूंजी लगा देता था चाहे बेटे की शादी हो या बेटी की। अपने परिवार के मान- सम्मान, नाक की बात हुआ करते थे शादी-विवाह। पंगत बैठा करती थी जीमण में, गरिष्ठ भोजन बना करते थे, काजू-बादाम की कतली बनना बड़ी बात हुआ करती थी। देसी व्यंजनों का अपना स्वाद हुआ करता था, अपनी महक हुई करती थी शादी-विवाह के जीमण में। नाई, दरजी, गीत गाने वाली ब्राह्मणी, ढोलकी वाला, घोड़ी वाला, बैंड बाजा वाला, कुम्हार, पंडित, कनात वाला सबकी अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी शादी विवाह में।
समय बदलता गया और विवाह का आयोजन अब इवेंट में बदल गया है। इवेंट मैनेजर की टीम के हाथों में विवाह की तैयारी का सब कुछ सौंप कर दोनों पक्ष कुछ निश्चिंत हो जाते हैं। मेहमानों के आगमन से लेकर, वापस जाने तक का काम उन्हीं का हो जाता है और आप शादी में मजे कीजिए, जहां आपकी जरूरत हो उपस्थित रहिए, नाचिए , फंक्शंस को एंजॉय कीजिए, रील्स बनाएं और वर -वधु को आशीर्वाद देकर अपने घर को वापस निकल जाइए।
इंडस्ट्री का रूप ले चुका है शादी का आयोजन
अब जबकि शादियों का सीजन अपने पूरे चरम पर है क्योंकि यह नवंबर- दिसंबर का महीना एक जबरदस्त वेडिंग मंथ है। आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों महीना में कुल मिलाकर देश भर में 48 लाख शादियां होने वाली हैं, यानि दोनों महीनों के कुल जमा 16 दिन शादियों के मुहूर्त में 48 लाख शादियां परवान चढ़ेंगी। कोविड के बुरे दौर के बाद सोचा गया था कि लोग अब शादियों में कम खर्च करेंगे, सीमित संख्या में मेहमानों को आमंत्रित करेंगे, तो मेहमान जरूर अब सीमित संख्या में बुलाए जाते हैं पर शादियों का खर्चा पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। शादी-विवाह का आयोजन अब एक इंडस्ट्री का रूप ले चुका है, जिसके लिए माना जा रहा है कि यह 10 लाख करोड़ रुपए तक वाली देश की चौथी सबसे बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है।
यह हमारा देश ही है जहां हर साल शादियों में हर चीज का एक नया ट्रेंड, एक नया भूमि आता है। कुछ शहर तो अपनी चकाचौंध वाले राजसी आयोजनों के कारण डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए प्राथमिकता पर हो गए हैं। देश में हर साल होने वाले 80 लाख से एक करोड़ शादियों में अब दूल्हे- दुल्हन की एंट्री भी अलग-अलग तरीकों से होने लगी है। हाईटेक शादियों के इस दौर में सबसे ज्यादा खर्चा गहनों पर किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि गहने बुरे वक्त के साथी होते हैं। गहने पर तकरीबन 3.30 लाख करोड़ से अधिक का खर्च किया जा रहा है, वहीं कपड़ों पर भी अब अच्छा खासा खर्च किया जाने लगा है।
शादी विवाह में एक लाख करोड़ रुपए कपड़ों पर और लगभग इतना ही खर्च फोटोग्राफी और डेकोरेशन पर भी किया जाता है। जबकि इवेंट पर डेढ़ लाख करोड़ रुपये और कैटरिंग पर 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का खर्चा हो रहा है। हर तरह के पकवानों के लिए अब स्पेशलिस्ट कारीगर रखे जाते हैं। शादी के दौरान आतिशबाजी और गेम्स का भी आयोजन इनमें शामिल हो गए हैं।
शादी बना रोजगार का जरिया
पहले वर-वधु के पिता या अन्य पुरुष सदस्य विवाह के लिए जरूरत पड़ने पर कर्ज भी ले लिया करते थे, पर अब युवा खुद भी वेडिंग लोन्स ले रहे हैं। अपनी शादी के लिए खुद भी अपना खर्च उठा रहे हैं। क्योंकि शादी या कई दिनों तक चलने वाला एक भव्य और खर्चीला आयोजन है जिससे 6 लाख करोड़ रुपए के रेवेन्यू का अनुमान भी लगाया गया है। वेडिंग लोन्स की डिमांड कितनी और बढ़ेगी यह तो समय ही बताएगा पर इतना अवश्य है कि एक शादी कई सारे लोगों को रोजगार भी दे जाती है और कई सारे उत्पादों की एक साथ आवश्यकता पड़ने का अवसर भी दे जाती है जिससे कई तरह के उद्योग चलते हैं।
अब शादी- विवाह में पहले जैसा अपनापन भी नहीं है और न ही मान मनुहार तो पहले जैसा रूठना, मान-मनौव्वल भी नहीं रही। शादी में रस्में अभी भी होती हैं पर अब उन रस्मों के मायने बदल गए हैं। अब शादी की हर रस्म भी एक इवेंट हो गई है, जिसको आपको एंजॉय करना आना चाहिए। हो सकता है हम में से कुछ लोग इस तरह के खर्चों और प्री- वेडिंग्स और पूल पार्टी जैसे आयोजनों के खर्चों के खिलाफ हो पर आज का दौर तो यही चल रहा है, आप इससे सहमत हों या ना हो। लेकिन जो सबसे बड़ी जरूरत है वह यह है कि वर-वधू को आशीर्वाद जरूर दें कि वे अपने वैवाहिक जीवन में अपने संबंधों का निर्वाह खुशी-खुशी कर सकें, उसको एक बोझ न समझें।
( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)