Motivation: उचित मूल्यांकन की आवश्यकता है

Motivation Story: क्या हम लोग महिलाओं की उपलब्धियों को, उनके करियर को महत्व नहीं देते हैं और अगर महत्ता देते भी हैं तो उससे क्या रिटर्न मिल रहा है, उस पर विशेष ध्यान रखते हैं।;

Update:2025-03-22 20:32 IST
Motivation Story Women Career

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Motivation Story: क्या किसी के कमाने की क्षमता से ही उसका सही मूल्यांकन संभव है? आपको इसके तरह-तरह के उत्तर मिलेंगे। एक मंदिर के सामने फुटपाथ पर चाट का एक खोमचा लगाने वाला प्रतिदिन अपना सारा खर्चा निकालकर ₹ 500 से ₹800 नेट की रोज बचा लेता है, यानी लगभग ₹ 15,000/- से ₹ 24,000/- तक कि वह महीने में कमाई कर लेता है। जबकि एक दुकान या ऑफिस में काम करने वाला सामान्य स्टाफ 15,000/- से ₹20000/- महीना कमाता है।घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली महिलाएं 10,000 से ₹25,000 तक कमा लेती हैं हर महीने। जबकि आज भी हमारे देश में एक औसत पढ़ा लिखा व्यक्ति विशेषकर महिलाओं के लिए एक अच्छा काम ढूंढ पाना बड़ी ही टेढ़ी खीर है

एक तरफ जहां अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की धरती पर वापसी की खबरें राहत देने वाली है और गौरव का विषय भी है वहीं दूसरी ओर इसके प्रति तटस्थता का, उदासीनता का भाव विशेषकर महिलाओं में भी बड़ा ही आश्चर्यजनक लगता है। क्या हम लोग महिलाओं की उपलब्धियों को, उनके करियर को महत्व नहीं देते हैं और अगर महत्ता देते भी हैं तो उससे क्या रिटर्न मिल रहा है, उस पर विशेष ध्यान रखते हैं।


पद, पैसा, प्रतिष्ठा में पैसा सर्वोपरि है इसका महत्व, इसकी भूमिका आवश्यक है प्रत्येक के जीवन में। पर साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पद और प्रतिष्ठा भी वर्षों की मेहनत, वर्षों की दृढ़ इच्छाशक्ति और काम से ही प्राप्त की जाती है। जैसे पैसा कमाने में बहुत सारे आसान विकल्पों को छोड़कर मुश्किल विकल्पों को अपनाया जाता है, वैसे ही पद, प्रतिष्ठा या कोई भी एक मुकाम हासिल करने में कई आसान विकल्पों को त्यागकर बहुत से कठिउ त्याग भी किए जाते हैं।

यह ठीक है कि हमारे समाज में या हमारे देश में भी महिलाओं की उपलब्धियां को उनके परिवार से जोड़कर ही देखा जाता है। पर क्यों महिलाओं से हमेशा त्याग की भावना की उम्मीद की जाती रहनी चाहिए? क्यों आज भी हर क्षेत्र में उत्कृष्टता का अपना एक मापदंड, अपना एक पैमाना, अपना एक जेंडर होता है? अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल है तो वह अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर है। उसने अपेक्षाओं को चुनौती दी है, उपेक्षाओं को नजरअंदाज किया है। लेकिन पता नहीं आज भी लोग किसी भी व्यक्ति को विशेषकर महिलाओं की उपलब्धियां को अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर ही जज करते हैं।


यह भले ही बड़ी ही साधारण सी बात दिखाई देती हो पर यह हमारे आसपास हमेशा घटित होता है। हम आज भी उस समय की सोच में जी रहे हैं जब महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं को इगोइस्टिक सोच या करियर ओरिएंटेड सोच के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है। हम अक्सर उन्हें जज करते समय अपने पिता- दादाओ के समय की प्रचलित उक्तियों से जोड़ते हैं, उसी के चश्मे से उन्हें देखते हैं। यह तक सोच लिया जाता है कि वे महिलाएं जो कुछ कर रहीं हैं , वे जरूर असामान्य है, समाज से बुरे रूप से अलग है, पथभ्रष्ट हैं। सबसे ज्यादा दुख तो इस बात का है कि महिलाएं ही महिलाओं के लिए विभीषण का रोल अदाकर जाती हैं।

हम क्यों अभी तक सामाजिक पूर्वाग्रहों की रस्सी के सहारे अपने भविष्य को बांधते रहेंगे? हमारे देश में अनेक पुरुष, अनेक ऐसी महिलाएं हैं जिनकी व्यापार या वाणिज्य से इतर भी सफलता की कहानी दूसरों के लिए एक सबक बन सकती है, एक नजीर बन सकती है। आखिर कब तक सिर्फ कमाने की क्षमता के आधार पर ही आलोचनाएं और निरर्थक सोच चलती रहेगी। आज नई पीढ़ी अलग तरह से सोचती है। उसे अपने अनुभव, अपने काम पर विश्वास है। उसे रूढ़ियों पर नहीं, पुरखों की सोच पर नहीं बल्कि खुद पर अधिक भरोसा है। उस सोच के घेरे से बाहर निकालने की जरूरत है जो यह कहता है कि 'कितना कमाया, कितना कमा रहे हो, इतने समय में कितना कमा लेते हो' ही महत्वपूर्ण है उसके आगे कुछ नहीं।बहुत से क्षेत्र आज भी ऐसे हैं जहां कमाई इतनी महत्वपूर्ण या आवश्यक नहीं होती वरना लोग और विशेष कर महिलाएं क्या हासिल किया यह महत्वपूर्ण होता है। भविष्य उन लोगों को ही याद रखता है जिन्होंने अपनी शर्तों पर, अपने संघर्षों से कुछ हासिल किया है, अपने क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण हासिल किया है, न‌ कि एकसार जिंदगी जीने वाले लोगों को।

अंत में अपने समय के महत्वपूर्ण और हिंदी भाषा के प्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा हुई ।आज तक विभिन्न भाषाओं के 60 से अधिक लेखकों को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जा चुका है, इसमें से मात्र चार या पांच महिलाओं को अभी तक ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। ढूंढने चाहिए कि आखिर इसका क्या कारण है? क्या महिलाएं साहित्य के क्षेत्र में उतने मुखर रूप से या उतने लोकप्रिय तरीके से नहीं लिखती हैं कि वे किसी बड़े पुरस्कार के लिए अपने आप को प्रस्तुत कर सकें।

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