नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने नई दिल्ली स्थित नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय (एनएमएमएल) के स्वरूप और संरचना को ना बदलने की अपील की थी। अब इस मामले पर संस्थान के निदेशक शक्ति सिन्हा का बयान आया है। उनका कहना है कि सरकार के प्रस्तावित बदलावों के जरिए पहले प्रधानमंत्री की विरासत को कमजोर नहीं किया जाएगा।
ये है पूरा मामला
मनमोहन सिंह ने पीएम मोदी को 24 अगस्त को लिखे पत्र में कहा था, 'नेहरु केवल कांग्रेस से नहीं बल्कि पूरे देश से ताल्लुक रखते थे।' उन्होंने यह पत्र तब लिखा जब इस तरह की खबरें सामने आईं कि सरकार तीन मूर्ति परिसर को, जो 1947 से 1964 तक नेहरू का घर था और जहां एनएमएमएल स्थित है उसे सभी प्रधानमंत्रियों के नाम के म्यूजियम बनाने की योजना बना रही है। इसी वजह से कांग्रेस मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है कि यह नेहरू की विरासत को मिटाने का प्रयास है।
मोदी सरकार एजेंडे के तहत काम कर रही है- मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए कहा, अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और तीन मूर्ति परिसर में बदलाव करने का कोई प्रयास नहीं किया था। लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान सरकार एजेंडे के तहत ऐसा कर रही है।
एनएमएमएल संस्था के 6 सदस्यों ने तीन मूर्ति परिसर में सभी प्रधानमंत्रियों के म्यूजियम बनाए जाने का विरोध किया है। लेकिन इस विचार को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक ने मंजूरी दे दी है।
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एनएमएमएल जैसे संस्थानों की पहचान को बदलने की कोशिश- सिंघवी
कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सोमवार को कहा कि लगातार एनएमएमएल जैसे संस्थानों की पहचान और चरित्र को बदलने की कोशिशें की जा रही हैं। सिंघवी ने कहा, 'डॉक्टर मनमोहन सिंह एक प्रतिष्ठित शख्स हैं जो अपनी बुद्धिमत्ता और संतुलित शब्दों के उपयोग के लिए जाने जाते हैं। उनपर बहुत हल्के, बहुत नियंत्रित और बहुत सामान्य शब्दों के उपयोग करने का आरोप लगाया जा सकता है।
मुझे लगता है कि पूरी दुनिया ने देखा है और पूरे देश ने इसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर देखा है। इस देश के सम्मानजनक संस्थानों की अखंडता, चरित्र, पहचान और विषय वस्तु को बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें से एनएमएमएल एक है। यह केवल एनएमएमएल तक सीमित नहीं है और यही विडंबना है।'
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