शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की रैली-महारैली-रैला में क्या होता है इससे पटना पूरी तरह वाकिफ है, इसलिए राजधानी के लोगों ने 27 अगस्त को घर में ही बने रहना पहले से तय कर लिया था। इस दिन सडक़ों पर 90 फीसदी लोग पटना से बाहर के थे। यह सब तय था। नहीं तय था तो राजद की रैली को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का रुख। राजग के नेता घरों में थे। टीवी के सामने।
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सिर्फ एक आशंका थी कि कहीं राजद की रैली राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की एकता का बड़ा मंच न बन जाए। लेकिन, शाम होते-होते राजग के नेताओं ने चैन की सांस ली। लेकिन बिहार में विपक्ष की भूमिका निभाने वाले और विधानसभा में सर्वाधिक विधायक लाने वाली पार्टी के कार्यक्रम के बाद उसका छिद्रान्वेषण या होमवर्क तक जरूरी नहीं समझा।
कोई भी बड़ा दल रैली करता है तो सामने वाली बड़ी या समानांतर पार्टी उसके तुरंत बाद होमवर्क जरूर करती है। बिहार में अब तक यह परंपरा रही है, खासकर पटना के गांधी मैदान में हर बार हुई रैली के बाद सामने वाले दल ने होमवर्क जरूर किया। इसके तहत मंचासीन नेताओं, बयानों, जनता की प्रतिक्रिया से लेकर भीड़ और भाषण के दौरान उसके ठहराव तक की समीक्षा होती रही है। लेकिन, सरकार में रहते हुए ‘भाजपा भगाओ रैली’ की घोषणा करने वाले लालू प्रसाद की बहुप्रतीक्षित रैली उनकी पार्टी के सत्ता से बाहर होने के बाद जिस अंदाज में होनी चाहिए थी, वैसी कतई नहीं दिखी।
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जदयू को अपने बागी शरद यादव और अली अनवर के तेवर देखने थे, तो भाजपा को ममता बनर्जी समेत राष्ट्रीय स्तर पर उसके विरोधियों का मंच पर रुख देखना था, लेकिन ऐसा कुछ दिखा ही नहीं। मंच पर लालू परिवार के हावी रहने के कारण राजग ने राजद की रैली को हल्के में लेना शुरू किया और जब भीड़ दिखाने वाली तस्वीर को लेकर लालू प्रसाद का ट्वीट फर्जी निकला तो रही-सही कसर पूरी हो गई। राजग ने इसे इतने हल्के में लिया कि प्रतिक्रिया पूछने पर भी भाजपा-जदयू के नेता राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के ट्वीट पर ठहाके लगाते दिखे।
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मंच पर भाषण की बारी में परिवार पड़ा भारी
रैली राजद की थी, लेकिन अध्यक्ष लालू प्रसाद इसे विपक्षी एकता का मंच बनाना चाह रहे थे। इसी की तैयारी के तहत देश में विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं से संपर्क किया गया था। बसपा सुप्रीमो मायावती के नहीं आने की सूचना से लालू प्रसाद पहले ही खिन्न थे। कांग्रेस ने भी गुलाम नबी आजाद को भेजकर काम चला दिया। समाजवादी पार्टी के जन्मदाता मुलायम सिंह यादव का नहीं आना अखर रहा था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के रूप में मरहम था। लालू प्रसाद ने रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का लंबा इंतजार किया।
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शरद यादव शुरू से मंच पर थे। इन कुछ नेताओं को छोड़ ज्यादातर लालू परिवार ही मंच पर पहली कतार में दिखा। हालत यह रही कि जदयू में रहते हुए राजद का झंडा बुलंद कर रहे अली अनवर दूसरी कतार से झांकते नजर आए। भाषण में अधिक महत्व के लोगों को बाद में बुलाने की परंपरा रही है, लेकिन इस लिहाज से लालू परिवार के सामने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कमजोर नजर आईं। जितने उत्साह से ममता आईं, जाते समय वह जज्बा नहीं दिखा। कुल मिलाकर मंच की व्यवस्था ने राजग को राहत की सांस दी।
राजग के नेता राजद की रैली के मंच से औपचारिक भाषण से आगे की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन ऐसा कोई शंखनाद नहीं सुन भाजपा और जदयू ने राहत की सांस ली।
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कोई संदेश देने में नाकामयाब
कोसों दूर चुनाव रहते हुए भी ‘देश बचाओ, भाजपा भगाओ’ रैली के जरिए राजद जो संदेश देना चाहता था, वह अंत तक स्पष्ट नहीं होता दिखा तो राजग के नेता इत्मीनान से प्रतिक्रिया देते दिखे। रोमांच एक बार फिर लालू प्रसाद ने ही दिया, जब उन्होंने गांधी मैदान में भीड़ की एक तस्वीर ट्वीट की।
यह तस्वीर ट्वीट होने के कुछ देर बाद ही उन्हें जवाब में फोटोशॉप के करामात की अन्य तस्वीरें आने लगीं। दरअसल, भीड़ की असल तस्वीर से ज्यादा भीड़ दिखाने के चक्कर में फोटोशॉप से राजद कार्यकर्ताओं ने ऐसा खेल किया कि गांधी मैदान की मूल प्रकृति ही गायब हो गई। पेड़ और गांधी जी की पुरानी मूर्ति तक गायब हो गई और उस जगह पर लोगों की भीड़ दिखाई गई। इस तस्वीर में पूरा गांधी मैदान भरा हुआ नजर आया।
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पेड़ों के समूह, झंडोत्तोलन स्टैंड और महात्मा गांधी की प्रतिमा समेत पार्क से गायब होकर वहां भीड़ दिखाए जाने के कारण लालू प्रसाद की ट्वीट तस्वीर का मजाक बन गया। राजग नेताओं ने रैली के भाषण से ज्यादा इसी ट्वीट पर चर्चा की ताकि यह संदेश स्पष्ट रहे कि ‘देश बचाओ, भाजपा भगाओ’ रैली में लालू यादव भीड़ नहीं जुटा सके तो छिपाने के लिए गलत तस्वीर पेश कर रहे हैं। राजग के नेता इसमें कामयाब भी रहे क्योंकि सोशल मीडिया के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में भी फोटोशॉप से बनाई लालू के ट्वीटर की तस्वीर के साथ कुछ वैसी और भी तस्वीरें आईं, जिनमें इसी तरह की भीड़ आसमान से भी उतरती दिख रही है।
रैली के बाद अब, चक्कर में पड़ा है परिवार
रैली खत्म होने तक राजग लालू की पार्टी को कोई मुद्दा नहीं देना चाह रहा था। इसलिए इस दौरान छोटे-छोटे काम भी रोक दिए गए थे। रैली खत्म होते ही उप मुख्यमंत्री, मंत्री आदि के नाते राजद नेताओं के कोटे में पड़े आवासों को खाली कराने की कवायद तेज कर दी गई। लालू प्रसाद के परिवार ने भी रैली के बाद आयकर के पास पूछताछ के लिए हाजिरी बनाई। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी तक ने आयकर कार्यालय में घंटों पूछताछ का सामना किया।
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रैली के बाद बिहार की राजनीति में उठापटक-बयानबाजी की परंपरा रही है, लेकिन इस बार लालू प्रसाद का परिवार फिलहाल खुद को ही संभालने में जुटा है। आवास स्थानांतरण से लेकर आयकर रिकॉर्ड तक को संभालने-सुधारने में पूरा कुनबा लगा हुआ है। राजग के नेता इस स्थिति से काफी हद तक राहत में हैं।
बोले नेता
‘रैली अभूतपूर्व रही। इस मंच से विपक्षी एकता को दिखाने का प्रयास सफल रहा। सत्तारूढ़ दलों का अपना नजरिया जो हो, यह तय है कि आने वाली राजनीति को इस रैली ने एक दिशा जरूर दी है।’
अब्दुल बारी सिद्दीकी
बिहार के पूर्व वित्त मंत्री व राजद के वरिष्ठ नेता
‘इस रैली पर क्या चर्चा करेंगे, जब राजद के अध्यक्ष खुद फर्जी तस्वीर से भीड़ दिखाने के चक्कर में पकड़े गए हैं। कोई पार्टी क्या कहे, आम आदमी ने वह तस्वीरें और उस झूठ को पकड़ा है। बाकी, पारिवारिक सभा से ज्यादा यह कुछ नहीं था।’
डॉ. प्रेम कुमार
कृषि मंत्री व वरिष्ठ नेता भाजपा
‘लालू प्रसाद कुछ नहीं कर पा रहे हैं। कोई संदेश देने की स्थिति में नहीं हैं। एक ही संदेश इस रैली से मिला और वर्षों से यही मिलता रहा है कि इस एक परिवार ने अपने लिए ही भीड़ जुटाई, चाहे नाम जो हो।’
संजय सिंह
मुख्य प्रवक्ता, जनता दल यू
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