टीनएज बच्चों को सिखाएं फैमिली वैल्यूज़, बना रहेगा रिश्तों में प्यार
बच्चे के लिए तो सारी दुनिया उसके पेरेंट्स के इर्द-गिर्द ही होती है, लेकिन इस बात की अहमियत समझने की भी ज़रूरत है कि हर रिश्ते का अपना महत्व होता है। सो अपने बच्चे को पहले खुद समझें और फिर उसे परिवार का महत्व समझाएं।कभी भी अपने टीनएज किड, यानी किशोर होते बच्चे की तुलना किसी भी दूसरे बच्चे से न करें।
लखनऊ : बच्चे के लिए तो सारी दुनिया उसके पेरेंट्स के इर्द-गिर्द ही होती है, लेकिन इस बात की अहमियत समझने की भी ज़रूरत है कि हर रिश्ते का अपना महत्व होता है। सो अपने बच्चे को पहले खुद समझें और फिर उसे परिवार का महत्व समझाएं।कभी भी अपने टीनएज किड, यानी किशोर होते बच्चे की तुलना किसी भी दूसरे बच्चे से न करें। आमतौर पर होता यही ही कि ज्यादातर परिवारों में बड़े इन बच्चों से सामान्य बातचीत की बजाय हर समय कोई न कोई टोका-टोकी करते हैं इससे बचें। अगर वे अपने दोस्तों के साथ कोई ट्रिप या गैदरिंग प्लान कर रहे हैं तो उन्हें हमेशा मना मत कीजिए। यहां तक कि अगर कभी-कभी वे अकेले ही रहना पसंद करते हैं, तब भी समय-समय पर उनकी इस भावना का आदर कीजिए। कभी-कभी नज़दीकियां दूरियों में भी छिपी होती हैं। बच्चों का मन समझ पाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। बेहद मुश्किल काम है एक अच्छी पेरेंटिग। ऐसे में जब बात हो बच्चों को परिवार का महत्त्व बताने की तो जाने उनके लिए बेहतर और क्या हो सकता है। फैमिली औऱ बच्चे के रिलेशनशिप–
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*अपने बच्चे की सुरक्षा जरूर सुनिश्चित कीजिए, लेकिन उसके लिए उसे हर वक्त घेरे रखने की जरूरत नहीं है। बच्चे को सही-गलत का फर्क जरूर समझाइए, लेकिन उसकी हर बात को इसी सही-गलत के तराजू में मत तौलिए। बच्चे को गलती करने का अधिकार भी दीजिए। साथ ही उसे ये विश्वास भी दीजिए कि अगर वह कहीं कोई गलती करता है या लड़खड़ाता है, फेल साबित होता है, तब भी आप उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
*बच्चे को थोड़ा समय ऐसा भी दें, जब वह आपकी नहीं, बल्कि पूरी तरह से सिर्फ अपने मन की सुनें और करे। बच्चे की शरारत और जिद को समझिए और कभी भी इसे बढ़ावा देने का काम मत कीजिए।परिवार में अनुशासन जरूरी है, इसलिए कोशिश करें कि कभी भी परिवार के एक सदस्य द्वारा की जा रही बात का विरोध बच्चे के सामने ही परिवार के दूसरे सदस्य करने लगें।
*बच्चे को ये जरूर महसूस कराएं कि आप उसकी हर जरूरत तो पूरा करेंगे, लेकिन उसके जिद कर लेने भर से हर गलत बात नहीं मानी जाएगी। साथ ही बच्चे को भी ये एहसास होना चाहिए कि आप उसके लिए कितनी कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि वह श्रम का मूल्य समझ सके।बच्चे में बचत करने की आदत विकसित करें। साथ ही उसे अपने पैसों का सही उपयोग करने की शिक्षा भी दें।
*बच्चों को संयुक्त परिवार के बारे में बताएं। उन्हें अपने बचपन के क़िस्से सुनाएं, उन्हें बताएं कि घर-परिवार में कैसे खाने से लेकर कपड़ों तक को साझा किया जाता था। इन बातों को इतने मज़ेदार तरीक़ों से बताएं कि बच्चे को संयुक्त परिवार की बातें बेकार ना लगें, बल्कि जब कभी वो आपके साथ आपके परिवार के बीच जाएं, तो उसे वह परिवार भी अपना ही लगे
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*बच्चों को बड़ों की इज़्ज़त करना सिखाएं। ये बात केवल बच्चों पर ही लागू नहीं होती, ख़ुद भी इस बात पर अमल करना चाहिए। अपने बच्चों को घर मे आए किसी रिश्तेदार को प्रणाम करना या शिष्टाचार से नमस्ते करना ज़रूर सीखना चाहिए।बुज़ुर्गों और बच्चों का सम्मान करना हमारे अच्छे शिष्टाचार को दिखाता है। इसलिए अपने बच्चों को सदैव बुज़ुर्गों के प्रति विनम्र और छोटे बच्चों के प्रति संवेदनशील होना सिखाएं।
*बच्चे को सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रखिए, बल्कि उसे और रिश्तों की नजदीकी भी महसूस होने दीजिए।बच्चे की छोटी-छोटी कोशिशों और कामों को भी सराहिए। इससे उसके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी। कभी भी अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से मत कीजिए। बच्चे के दोस्तों को भी अपना दोस्त बना लीजिए।बेहतर होगा कि आप बच्चे को हर समय कुछ न कुछ सिखाते रहने के अलावा कभी-कभी उसके साथ ऐसा समय भी बिताएं, जब उसी पल में जीकर, जो हो रहा है, होने दें।बच्चे में शुरू से ही अपने आस-पास के वातावरण, परिवेश और चीजों के पास संतुलन और संवेदनशीलता पैदा कीजिए।