How to Build Pull in River: आख़िर समुंदर और गहरी नदी में कैसे होता है पुल का निर्माण, वीडियो में देखें ये खास जानकारी
How to Build Pull in River: जैसे जैसे दुनिया मे जनसंख्या बढ़ती जा रही है वैसे वैसे दुनिया मे पुलों की भी इम्पोर्टेंस बढ़ती जा रही है और यह महत्व उस समय ज्यादा बढ़ जाती है जब पुल जमीन के ऊपर नही बल्कि पानी के ऊपर बने हो।
How to Build Pull in River: आप हर दिन कुछ ना कुछ ऐसा अपनी दिनचर्या में ज़रूर देखते हो , जिसको देखकर आपके मन में सवाल आते हैं आख़िर क्यों , आख़िर कैसे आदि ।सवालों का मन में आना ज़रूरी है तब ही आप उसके जवाब जानते हैं तब ही आपके ज्ञान में वृद्धि होती है ।एक ऐसा ही सवाल है कि आख़िर गहरे से गहरे समुंदर और नदियों के बीच बड़े से बड़े पुल कैसे निर्मित होते होंगे।इसका जवाब खोजने की कोशिश आज के इस अंश में करते हैं ।पानी के ऊपर बने बड़े बड़े ब्रिजिस की कंट्रक्शन के दौरान इंजीनियर्स के लिये सबसे मुश्किल चैलेंज खुद पानी होता है।ब्रिज को हर वक्त लाखों करोडो टन वजन बर्दाश करना पड़ता है और वो भी ऐसा वजन जो एक जगह से दूसरी जगह मूव कर रहा हो। जैसे जैसे दुनिया मे जनसंख्या बढ़ती जा रही है वैसे वैसे दुनिया मे पुलों की भी इम्पोर्टेंस बढ़ती जा रही है और यह महत्व उस समय ज्यादा बढ़ जाती है जब पुल जमीन के ऊपर नही बल्कि पानी के ऊपर बने हो।
वैसे नदी पर बनने वाले पुल कई तरीके के होते हैं। नदी पर बीम ब्रिज, सस्पेंशन ब्रिज ,आर्क ब्रिज बनाए जाते हैं। पिलर वाले पुल बनाने के लिए पहले पानी की गहराई, पानी की बहने की स्पीड, पानी के नीचे की मिट्टी की क्वालिटी, ब्रिज बनाने पर पड़ने वाला भार और ब्रिज बनने के बाद गाड़ियों के भार आदि पर गहरा रिसर्च किया जाता है।इस रिसर्च के बाद ही पुल बनाने के काम शुरू होता है।
ऐसे डलती है नींव
पुल में भी नींव बनाई जाती है और पूरे प्रोजेक्ट के आधार पर नींव को लेकर भी पहले प्लान बना लिया जाता है। वैसे पानी के बीच में रखी जाने वाली नींव को कोफेरडम कहते है। ये कोफर डैम एक तरीके से ड्रम के जैसे होते हैं, जिन्हें क्रेन आदि के माध्यम से पानी के एक दम बीच में स्थापित किया जाता है।यह कोफर डैम स्टील की बड़ी-बड़ी प्लेट्स के जरिए बनाया जाता है। यह कोफर डैम गोल या स्कवायर हो सकता है और यह पुल बनाने, नदी आदि पर निर्भर करता है।
कोफरडैम का होता है इस्तेमाल
अगर सीधे शब्दों में कहें तो यह ड्रम की तरह होता है। या फिर आपने मेलों में जो मौत का कुआं देखा होगा ये उसी की तरह होता है, जो काफी मजबूत और स्टील से बनाया जाता है।इसे पानी के बीच में रख दिया जाता है, जिससे पानी आस-पास से बह जाता है। लेकिन इसके अंदर नहीं आता है।जैसे किसी गिलास में एक स्ट्रॉ को रख दिया हो।इसके बाद जब इसमें पानीभर जाता है तो उसे बाहर निकाल दिया जाता है और इस कोफरडैम में नीचे की मिट्टी दिखाई देने लगती है और वहां पिलर बनाने का काम शुरू होता है।इसके अंदर जाकर इंजीनियर काम करते हैं और मजबूत पिलर बनाया जाता है।फिर पिलर बनने के बाद ब्रिज का काम शुरू होता है।
पुल कैसे होता है तैयार?
पुल बनाते वक्त आधे से ज्यादा काम दूसरी साइट पर चलता है, जहां पुल के ब्लॉक्स वगैहरा बना दिए जाते हैं। सिविल इंजीनियरिंग की लैंग्वेज में इन्हें प्री-कास्ट स्लैब कहते हैं।ऐसे करने के बाद एक से दूसरे पिलर के बीच ब्लॉक्स को सेट करते हुए एक पुल बनाया जाता है। वैसे कई बिना पिलर वाले पुल भी बनते हैं, जिनका निर्माण अलग तरीके से किया जाता है।सबसे पहले हम आपको बता दें कि गहरी नदी या समुद्र पर पिलर्स के ऊपर पुल बनाने के लिए पानी के बहाव की रफ्तार, गहराई, पानी के नीचे की मिट्टी कौन सी है, पुल का कुल भार और उस पर चलने वाले वाहनों समेत भार का बारीकी से अध्ययन किया जाता है।इसमें कई बार महीनों का वक्त लग जाता है।
कैसे बनाए जाते हैं गहरे पानी पर पुल
नदियों और समंदर पर बनाए जाने वाले पुलों का काफी काम दूसरी साइट पर होता है। यहां पिलर्स के ऊपर सेट किए जाने वाले पुलों को तैयार किया जाता है।।पिलर्स पर इन्हीं प्री-कास्ट स्लैब्स को जोड़कर पुल बना लिया जाता है। वहीं, पिलर्स बनाने का काम ऑनसाइट होता है. इसमें सबसे पहले किसी भी मकान या बड़ी इमारत की तरह सबसे पहले नींव डालने का काम किया जाता है।पूरे प्रोजेक्ट के साइज आधार पर नींव का प्लान भी पहले ही बना लिया जाता है।
पानी ज्यादा गहरा तो कैसे बनते हैं पिलर्स
पानी अगर बहुत ज्यादा गहरा होता है तो कॉफरडैम काम नहीं आते हैं। इसके लिए गहरे पानी में तल तक जाकर रिसर्च करके कुछ प्वाइंट्स तय किए जाते हैं। इसके बाद उन प्वाइंटस की मिट्टी की जांच की जाती है कि वो पिलर्स को बनाने लायक ठोस हैं भी या नहीं।मिट्टी जरूरत के मुताबिक ठीक पाए जाने पर तय प्वाइंट्स की जगह पर गहरे गड्ढे किए जाते हैं।इसके बाद गड्ढों में पाइप डाले जाते हैं। इन्हें समुद्रतल या नदी के तल के ऊपर तक लाया जाता है। इसके बाद इनका पानी निकालकर पाइप्स में सीमेंट कंक्रीट और स्टील बार्स का जाल डालकर पिलर्स बनाए जाते हैं। पिलर्स बनने के बाद प्री-कास्ट स्लैब्स को लाकर फिक्स कर दिया जाता है।
तीन तरीक़ों से नींव डाली जाती है-
केशंस
इस तरीके में फॉउंडेशन की नीव पहले जमीन पर बनायी जाती है फिर उसे किसी शिप की सहायता से उस जगह पहुंचाया जाता है जहां निर्माण का काम होना होता है।लेकिन अब इंजीनियर्स के लिये सबसे बड़ा चैलेंज होता है इसे पानी के नीचे डालना क्योंकि ये ऊपर से तो खुली होती है। लेकिन नीचे बंद होती है । जिससे अगर इसे ऐसे ही नॉर्मल तरीके से डाला गया तो ये पानी के ऊपर ही तैरती रहेगी।
शिप
ये फॉउंडेशन पानी मे ना तैरे इसके लिये इंजीनियर्स के पास एक बेहतरीन तरीका होता है। यदि पानी अधिक गहरा होता है तो शिप की सहायता से पानी के नीचे बड़े बड़े पत्थर डाले जाते हैं। जिससे जमीन की भरायी की जा सके।फिर इसे आसानी से उस बड़े बड़े पत्थरों के ऊपर सिफ्ट कर दिया जाता है।
बेट्टेर्ड पाइल्ज़
इस मेथड्स में लोहे के बड़े बड़े पाइपों को शिप के मदद से कन्ट्रशन की जगह पर ले जाया जाता है जिसके बाद उन पाइपों को सबसे पहले मशीनों के द्वारा पानी के नीचे धसाया जाता है जिसके ऊपर अब ब्रिज के कांस्ट्रक्शन का काम शुरू किया जा सकता है।
इस पूरे प्रोसेस मे वर्षो की मेहनत और कई वर्कस का साथ होता है।इस तरह समुद्र में ब्रिज का निर्माण किया जाता है।