Major Dhyanchand Life Story: हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले "मेजर ध्यानचंद" के जीवन की कहानी यहां पढ़े, ,

Major Dhyanchand Life Story: हॉकी के जादूगर माने जाने वाले व्यक्ति ने अपने करियर में लगभग 1000 गोल किए थे जो एक रिकॉर्ड उपलब्धि है।

Update:2023-08-29 16:26 IST
Major Dhyanchand (Pic Credit-Social Media)

Major Dhyanchand Life Story: मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ियों में से एक थे। उन्हें 'हॉकी के जादूगर' के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी करियर के दौरान भारत को हॉकी में कई महत्वपूर्ण जीत दिलाई। जिसमे भारत को तीन बार ओलंपिक गोल्ड मेडल जिताने का भी रिकॉर्ड है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हॉकी विजार्ड कहे जाने वाले ध्यानचंद जी का खेल में पहली पसंद कुश्ती थी। लेकिन फिर समय के प्रभाव से हॉकी के तरफ न रुचि जागृत हुई। बल्की विश्व भर में हॉकी के क्षेत्र में भारत का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा।

जन्म और परिवार

29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद का पालन-पोषण एक सैन्य परिवार में हुआ था। सेना और खेल के प्रति प्रेम उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला। भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ियों में से एक बने। उनके पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम शारदा सिंह था। उनके पिता सेना में सूबेदार थे। ध्यानचंद तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके दो भाई और थे जिनका नाम मूल सिंह और रूप सिंह था।

हॉकी का जादूगर

उन्हें 'हॉकी का जादूगर' भी कहा जाता है। उन्होंने अपने हॉकी कौशल से भारत को तीन बार ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलाया और इसके साथ ही कई अन्य महत्वपूर्ण टूर्नामेंट्स में भी प्रदर्शन किया। ध्यानचंद को भारतीय हॉकी के उत्कृष्ट खिलाड़ियों में से एक रूप में माना जाता है और उनका योगदान भारतीय खेल के इतिहास में अमूल्य है। हॉकी के जादूगर माने जाने वाले व्यक्ति ने अपने करियर में लगभग 1000 गोल किए थे जो एक रिकॉर्ड उपलब्धि है।

हॉकी ने बनाया पहचान

ध्यानचंद छठी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके पिता सेना में थे और तबादलों के कारण परिवार को बार-बार घर बदलना पड़ता था। एक बार जब ध्यानचंद 14 साल के थे, तब वह अपने पिता के साथ हॉकी मैच देखने गए थे। एक टीम को 2 गोल से हारते हुए देखकर, चंद ने अपने पिता से पूछा कि क्या वह हारने वाली टीम से खेल सकते हैं। उनके पिता सहमत हो गये और ध्यानचंद ने उस मैच में चार गोल किये। उनके प्रदर्शन को देखकर सेना के अधिकारी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें सेना में शामिल होने की पेशकश की गई।

वह 1921 में 16 साल की उम्र में एक सिपाही के रूप में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय मैच 1925 में खेला और उस मैच में उनके प्रदर्शन से उन्हें भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए चुना गया। उन्होंने अपने इंटरनेशनल डेब्यू मैच में हैट्रिक बनाई। 1928 के एम्स्टर्डम ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में, वह 5 मैचों में 14 गोल करके टूर्नामेंट के सर्वोच्च गोल स्कोरर थे। तभी से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा। 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भारत ने फिर से टूर्नामेंट और स्वर्ण पदक जीता। भारत ने अपना खर्चा वसूलने के लिए ओलंपिक के बाद हुए विश्व दौरे में 37 मैच खेले। उन्होंने 34 जीते, 2 ड्रा रहे और एक मैच रद्द हो गया। ध्यानचंद ने अकेले भारत के 338 में से 133 गोल किये। दिसंबर 1934 में ध्यानचंद को टीम का कप्तान नियुक्त किया गया। साल 1948 में ध्यानचंद ने अपना आखिरी इंटरनेशनल मैच खेला था। उसी साल प्रथम श्रेणी के खेल से संन्यास ले लिया।

51 साल में रिटायर

51 साल की उम्र में वर्ष 1956 में भारतीय सेना से " मेजर " के रूप में सेवानिवृत्ति भी ले ली और भारत में फील्ड हॉकी के खेल के उत्थान में उनके ईमानदार प्रयासों के लिए भारत सरकार द्वारा तीसरे भारतीय नागरिक पुरस्कार " पद्म भूषण" से भी सम्मानित किया गया। दरअसल, ध्यानचंद को हॉकी जगत का चमकता सितारा माना जाता है, जिनका अनुसरण कई दिग्गज लोगों और उभरते सितारों ने भी किया है।

भारत को हॉकी में बनाया गोल्ड विनर

ध्यानचंद का हॉकी के प्रति अद्भुत प्यार था और उन्होंने भारत को 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने हॉकी के क्षेत्र में अनगिनत महत्वपूर्ण योगदान किए, जिसका परिणाम स्वतंत्रता संग्राम के समय में भारतीयों के मनोबल को बढ़ाने में आया। ध्यानचंद सिंह की महत्वपूर्ण जीतों में से एक 1936 बर्लिन ओलंपिक में है, जहां भारत ने हॉकी में गोल्ड मेडल जीता। इसके अलावा, उन्होंने 1928 और 1932 के ओलंपिक भी भारत के लिए गोल्ड मेडल जीते थे। एडोल्फ हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात की थी और उन्हें अपनी सेना में फील्ड मार्शल का पद देने की पेशकश की थी। चंद ने यह कहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया था कि वह केवल अपने जन्मस्थान की सेवा करना चाहेंगे।

उनके समर्पण और कौशल के कारण ही भारतीय हॉकी टीम को गोल्ड मेडल मिला और ध्यानचंद को भारतीय खेल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मेजर ध्यानचंद सिंह का अद्वितीय योगदान और खेल क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण उन्हें भारतीय खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है।

मेजर ध्यानचंद की 3 दिसंबर 1979 (74 वर्ष की आयु) को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में लीवर कैंसर से मृत्यु हो गई।

राष्ट्र के गोल्ड विनर की उपाधि

ध्यानचंद के जन्मदिन (29 अगस्त) को राष्ट्र अपना राष्ट्रीय खेल दिवस मनाता है, और वह एकमात्र हॉकी खिलाड़ी हैं जिनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट और फर्स्ट-डे कवर है। खेल में आजीवन उपलब्धि के लिए ध्यानचंद पुरस्कार हॉकी के दिग्गज के नाम पर एक राष्ट्रीय खेल सम्मान दिया जाता है। नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है और ध्यानचंद की जीवन यात्रा कई हॉकी खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का काम करती है।

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