बुलंद हौसले से शार्दूल विहान को मिली बुलंदी, डबल ट्रैप शूटिंग में माहिर

Update:2017-12-02 15:53 IST

सुशील कुमार

मेरठ : मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। मेरठ के 14 वर्षीय शार्दूल विहान पर ये पक्तियां सटीक बैठती हैं। कठोर श्रम और लगन के कारण शार्दूल आसमान में सितारे की मानिन्द चमक रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में 61वीं नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में शार्दूल विहान ने एक ही दिन में चार गोल्ड मेडल जीतकर एक नई पहचान हासिल कर ली है।

शार्दूल अपनी निशानेबाजी से सभी का दिल जीतने में कामयाब रहा। एक ही दिन में चार गोल्ड मेडल जीतने के बाद शार्दूल से भविष्य में और बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। शार्दूल इस साल मास्को में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में छठे स्थान पर रहा था। उसने डा. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में निशानेबाज अंकुर मित्तल को 78-76 से हराया है। अंकुर मित्तल इस समय दुनिया का नंबर एक डबल ट्रैप निशानेबाज हैं। ऐसे में उसे हराना शार्दूल के लिए कतई आसान नहीं था। एशियाई चौंपियनशिप डबल स्वर्ण पदक विजेता अनवर सुल्तान शार्दूल के कोच हैं। वह शार्दूल की निशानेबाजी कला में और माहिर बनाने में जुटे हैं।

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डबल ट्रैप शूटिंग में है माहिर

मेरठ के मोदीपुरम के दयावती मोदी अकादमी में 9वीं के छात्र शार्दूल मेरठ के ही सिवाया गांव का रहने वाला है। शार्दूल डबल ट्रैप शूटिंग में हिस्सा लेता है। शार्दूल के पिता दीपक विहान बताते हैं कि कम उम्र के कारण उसके पास सीनियर और जूनियर दोनों इवेंट में हिस्सा लेने का मौका था। मुश्किल यह थी कि ये दोनों इवेंट एक ही दिन थे मगर शार्दूल ने व्यस्त शेड्यूल को नजरअंदाज करते हुए दोनों वर्गों में हिस्सा लिया। शाम तक वह दोनों ही वर्गों के चैंपियन बन चुका था। खास बात यह रही कि सिर्फ इंडिविजुअल इवेंट ही नहीं बल्कि टीम इवेंट के गोल्ड भी उसके ही नाम रहे। वह चैंपियनशिप में सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी रहा।

क्रिकेट-बैडमिन्टन के बाद शूटिंग में हिस्सा

शार्दूल को यह कामयाबी ऐसे ही नहीं मिली। बचपन में शार्दूल को क्रिकेट खेलने का शौक था। बेटे के शौक को पूरा करने के लिए पिता दीपक विहान ने छह साल के शार्दूल को विक्टोरिया पार्क में क्रिकेट सीखने के लिए भेजना शुरू किया, लेकिन एक साल बाद ही शार्दूल का मन क्रिकेट से उचट गया। कारण यह था कि शार्दूल को फील्डिंग के लिए सबसे पीछे खड़ा किया जाता था।

बैंटिंग-बॉलिंग में भी उसका नम्बर सबसे आखिर में रखा जाता था। बकौल दीपक विहान शार्दूल ने जब यह बात मुझे बताई तो मैंने उसे क्रिकेट से हटाकर बैडमिन्टन कोच के पास भेजना शुरू कर दिया, लेकिन बैडमिन्टन में भी बात नहीं बनी। इसके बाद दीपक विहान अपने बेटे को लेकर राइफल एसोसिएशन के कोच वेदपाल सिंह के पास पहुंचे। लेकिन यहां शार्दूल की कम उम्र आड़े आ गई, लेकिन उनके अनुरोध पर वेदपाल सिंह ने शार्दूल को राइफल उठाकर निशाना लगाने के लिए कहा। शार्दूल का निशाना देख वेदपाल सिंह सिखाने के लिए राजी हो गए।

पहली बड़ी जीत

शार्दूल विहान को पहली बड़ी जीत नौ साल की उम्र में नॉर्थ जोन शूटिंग चौंपियनशिप में मिली थी। उसने 2012 में अपनी पहली ही चौंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता। वह उसी साल नेशनल जूनियर में खेलना चाहते था पर 12 साल से कम उम्र होने के कारण उसे मौका नहीं मिल सका। तीन साल के इंतजार के बाद 2015 में उसका चयन नेशनल जूनियर टूर्नामेंट के लिए हुआ।

शार्दूल के मुताबिक उसका टारगेट कॉमनवेल्थ गेम में देश के लिए मेडल लाना है। उसे रोज दिल्ली प्रैक्टिस के लिए आने-जाने में 150 किमी का सफर करना पड़ता है। इससे थकान होती है, लेकिन उसका हौसला नहीं टूटता। कोच उसे मोटिवेटेड रखते हैं।

स्कूल को शार्दूल पर गर्व

डीएमए प्रथम स्कूल की प्रधानाचार्य डा.रीतू दीवान शार्दूल की उपलब्धियों पर गर्व करते हुए कहती हैं कि शार्दूल विहान ने डीएमए प्रथम का नाम देश में रोशन किया है। विद्यालय के अन्य छात्रों को भी शार्दूल से प्रेरणा लेकर खेलकूद में विद्यालय व देश नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करना चाहिए। शार्दूल के पिता दीपक विहान ने बताया कि वह देश में सबसे कम आयु का शूटिंग चैंपियन है। ओलंपियाड व अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अनवर सुल्तान उसके कोच हैं।

अगला निशाना कॉमनवेल्थ गेम्स पर

शार्दूल का अगला निशाना कॉमनवेल्थ गेम्स हैं। अपने शिष्य पर गर्व करते हुए कोच अनवर ने बताया कि सीनियर और जूनियर में गोल्ड मेडल जीतना बड़ी बात है। शूटर ने मेरठ का ही नहीं देश का नाम रोशन किया है। अब उसने अगली प्रतियोगिता के लिए तैयारी भी शुरू कर दी है।

दिल्ली में ले रहा है कोचिंग

दीपक विहान के अनुसार वेदपाल से चार साल कोचिंग लेने के बाद शार्दूल दिल्ली में कोचिंग लेने लगा। अभी उसे अर्जुन अवॉर्डी अनवर सुल्तान कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में कोचिंग देते हैं। शार्दूल को सोमवार छोड़ रोज दिल्ली जाना होता है। घर पर भी वो अपनी गन की मूवमेंटस पर फोकस करता रहता है।

शार्दूल सुबह चार बजे उठकर प्रैक्टिस के लिए दिल्ली जाता है। रोज करीब 150 किलोमीटर का सफर करता है। प्रैक्टिस से लौटकर स्कूल जाता है। हालांकि कई बार देर होने या किसी इवेंट में हिस्सा लेने के कारण स्कूल नहीं भी जा पाता है। इसलिए उसकी पढ़ाई के लिए ट्यूटर रखा गया है। टीचर भी होमवर्क के लिए दबाव नहीं बनाते। कड़ी मेहनत करने वाले शार्दूल अपनी कामयाबी का श्रेय पिता और चाचा को देता है।

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