Dussehra 2021: क्या है दशहरा का मतलब, कब से हुई थी इस पर्व की शुरुआत
Dussehra 2021: दशहरा शब्द राम से पहले भी चलन में था। वास्तव में संस्कृत का दश शब्द दस के महत्व को दर्शाता है।
Dussehra 2021: आज पूरे देश में दशहरा (Dussehra) पर्व मनाया जा रहा है। हम सब मोटे तौर पर यही जानते और समझते हैं कि यह दस सिर वाले रावण (Ravan) पर राम की विजय (Vijaydashmi) का पर्व है। राम (Ram) ने अहंकार रूपी रावण (Ravan) के दस सिरों का नाश किया था। एक दुराचारी शासक का अंत किया था। अपनी पत्नी माँ सीता को लेकर वापस लौटे थे। इसलिए इस विजय की खुशी में विजयोत्सव के रूप में विजयादशमी (Vijaydashmi) मनायी गई थी, लेकिन कभी सोचिए दशहरा शब्द का क्या अर्थ है। हमारे पौराणिक संस्कृति वाले देश में दशहरा (Dussehra) शब्द के जरिये हमें क्या सीख देने की कोशिश की गई है। हम केवल विजयादशमी (Vijaydashmi) शक्यों नहीं मनाते। रावण (Ravan) तो इसका एक पक्ष या पहलू है। दशहरा शब्द राम से पहले भी चलन में था। वास्तव में संस्कृत का दश शब्द दस के महत्व को दर्शाता है। दश हरा यानी जो दश का नाश करे। अर्थात नाश दस बुराइयों का ही होगा। दस अच्छाइयों के नाश को तो कोई पर्व के रूप में मनाएगा नहीं। आइये समझते हैं इस दशहरा का मतलब, इसमें छिपे संदेश को। इसमें दी गई शिक्षा को। हमारी ऋषि परंपरा में दी गई सीख को। क्या है इस दश हरा शब्द का मूल, इस सूत्र के जरिये समाज को क्या दिया हमारी परंपरा ने।
सबसे पहले जानते हैं दशहरा शब्द का अर्थ
दशहरा (Dussehra Today last Day) हम लोग सदियों से मनाते आ रहे हैं। लेकिन इसका मूल अर्थ दश अर्थात दस और अहन् अर्थात दिवस से लिया जाता है। या फिर कहें दशहोरा तब भी इसका अर्थ दसवीं तिथि आता है। यानी मिलाकर हुआ दस का दिन। और यह पर्व पहले भी शक्ति पूजा के रूप में मनाया जाता था। राम की शक्ति पूजा भी प्रसिद्ध है। कालान्तर में जब राम रावण युद्ध दस दिन चला और दसवें दिन रावण (Ravan) का वध हुआ तब यह राम से जुड़ गया। लेकिन कहने का आशय यह है कि दशहरा शब्द अति प्राचीन है।
हमारे यहां दश महाविद्याएं हैं। नवरात्रि (Navratri) में देवी पूजक नौ दिन देवी की पूजा करते हैं, देवी विभिन्न रूपों में असुरों का वध करती हैं। दसवें दिन सबको अभय रहने का वरदान देती हैं। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि कुछ लोग नवमी में व्रत का पारण करते हैं तो कुछ लोग दसमी में। इसी तरह दस दिशाओं के देवताओं का भी ये सम्मिलित दिन है। इसी तरह दस दिशा के दस दिग्पाल बनाये गए हैं जिनमें उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। ये देवता (Devta) भी दस दिशाओं से आने वाले संकट से रक्षा करते हैं।
किसी भी विवाद, लड़ाई झगड़े या युद्ध के मूल में दस प्रकार की बुराइयां किसी न किसी रूप में मौजूद रहती हैं। यही बुराइयां अंततः हमें एक बड़े विवाद या झगड़े की ओर ले जाती हैं। दशहरा का पहला संदेश यह है कि ऐसी दस बुराइयां हमारे अंदर से दूर हों ऐसा संकल्प लेने का दिन।
क्या हैं दस बुराइयां
अब चाहे देवी पूजक के रूप में नौ दिन के बाद का हमारा संकल्प हो या त्रेता युग के भगवान राम या द्वापर के भगवान कृष्ण दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की भावना का जनमानस में प्रचार प्रसार करने की प्रेरणा देने के लिए मनाया जाता है। इसके मूल में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निहित है। जब हम दस प्रकार के पापों से दूर होते हैं, तभी हम कहते हैं सर्वे भवन्तु सुखिनः। पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार देने के लिए दशहरा अपनी खुद की शुद्धि और परिवार की शुद्धि और समाज की शुद्धि का दिन है। वास्तव में दहन दस प्रकार के संतापों का, दस प्रकार की बुराइयों का, दस प्रकार के कष्टों का होता है। जिसे दस महाविद्याओं के ज्ञाता प्रकाण्ड विद्वान रावण में मौजूद बुराइयों के दहन से जोड़ दिया गया। लेकिन वास्तविकता हम सबके अंदर छिपे बैठे रावण या दस बुराइयों का दहन करने से है।