Jeen Mata Mandir History: जब औरंगजेब को टेकने पड़े घुटने, वह सिद्ध पीठ जिसे मिटा न सका मुगलिया आतंक
Jeen Mata Mandir Or Aurangzeb: यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है और इसकी अखंड ज्योति, अटूट आस्था की प्रतीक है जिसकी दिव्यता और शक्तिशाली आभा ने औरंगजेब जैसे अत्याचारी को भी विवश कर दिया।;

Jeen Mata Mandir Or Aurangzeb
Rajasthan Jeen Mata Mandir History: इतिहास केवल तलवारों की खनक और तख्त-ताज की कहानियां नहीं सुनाता, वह उन दिव्य स्थलों की भी गवाही देता है जहां आस्था के सामने अत्याचार ने हार मानी है। यह कहानी एक ऐसे मंदिर की है, जिसे मुगल सम्राट औरंगजेब ने मिटाने की ठानी थी। परंतु वह भूल गया था कि मंदिर केवल ईंट और पत्थर नहीं होते, वे श्रद्धा, शक्ति और सनातन संस्कृति के प्रतीक होते हैं। जब उसने इस सिद्ध पीठ को तोड़ने का प्रयास किया, तब कुछ ऐसा चमत्कार घटा कि उसे स्वयं उसी मंदिर की सीढ़ियों पर घुटने टेकने पड़े। भारतवर्ष की भूमि पर ऐसे असंख्य शक्ति पीठों का वास है, पर कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जो न केवल आस्था का केंद्र हैं बल्कि जिन्होंने समय-समय पर विदेशी आक्रमणकारियों को भी परास्त किया है। इन्हीं में से एक है सीकर जिले की अरावली की पहाड़ियों में स्थित जीण माता यह मंदिर।
ये मंदिर राजपूतों और शेखावत वंश की कुलदेवी के रूप में पूजित है। जीण माता को भक्त "भंवरों की देवी" कहते हैं, क्योंकि एक बार उन्होंने आक्रमण से मंदिर की रक्षा भंवरों (मधुमक्खियों) के झुंड के ज़रिए की थी। यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है और इसकी अखंड ज्योति, अटूट आस्था की प्रतीक है जिसकी दिव्यता और शक्तिशाली आभा ने औरंगजेब जैसे अत्याचारी को भी विवश कर दिया। आइए जानते हैं इस प्राचीन मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से -
औरंगजेब का मंसूबा
17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब ने भारत पर शासन किया, तब उसका उद्देश्य केवल राजनीतिक नियंत्रण नहीं था, वह सनातन धर्म की जड़ों को भी समाप्त करना चाहता था। उसने अनेक मंदिरों को ध्वस्त करवाया, तीर्थ स्थलों को अपवित्र किया और हिंदू धर्म के अनुयायियों पर अत्याचार किए।
इसी क्रम में उसने जब उस विशेष सिद्ध पीठ अरावली की पहाड़ियों में स्थित जीण माता मंदिर को मिटाने की ठानी, तो उसे लगा कि यह भी अन्य मंदिरों की भांति ध्वस्त हो जाएगा लेकिन उसका ये मंसूबा पूरा न हो सका।
जब औरंगजेब को टेकने पड़े घुटने
औरंगजेब, मुग़ल वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक, केवल एक शासक नहीं था। वह एक कट्टरपंथी विचारधारा का प्रतीक बन गया था। उसने न केवल हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया, बल्कि सनातन संस्कृति को मिटाने का भी प्रयास किया। जिसमें काशी विश्वनाथ, मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान जैसे अनगिनत मंदिरों को ज़मींदोज़ कर दिया गया।
माना जाता है कि यह देवी शक्ति का वह केंद्र था, जहां स्वयं आदि शक्ति की ऊर्जा प्रवाहित होती थी। कथाओं और ताम्रपत्रों में ऐसा वर्णन है कि औरंगजेब को जब यह सूचना मिली कि इस सिद्ध पीठ में असंख्य श्रद्धालु एकत्र होते हैं और वहां की महिमा बढ़ती जा रही है, तो वह चिढ़ गया। उसे यह गवारा नहीं था कि उसके शासन में किसी "काफ़िर" देवी की इतनी मान्यता हो। उसने अपने सेना प्रमुख को बुलाकर आदेश दिया कि,
"उस मंदिर को नेस्तनाबूद कर दो। कोई निशानी भी बाकी न रहे।"
सैनिकों की पहली हार से हुई चमत्कार की शुरुआत
किंवदंतियों के अनुसार, जब औरंगजेब के सैनिक मंदिर में तोड़फोड़ करने पहुंचे, तो उन्हें मंदिर परिसर में असामान्य शक्तियों का अनुभव हुआ। जैसे ही मुग़ल सैनिक मंदिर की ओर आगे बढ़े, अजीब घटनाएं घटने लगीं। रास्ते में उनके घोड़े रुक गए। कुछ सैनिकों को भ्रम होने लगा, कुछ के हाथ-पांव सुन पड़ गए। जबरन मंदिर पहुंचने पर जैसे ही उन्होंने हथौड़े उठाए, बिजली कड़कने लगी, आकाश में असामान्य गर्जना हुई कुछ सैनिक वहीं मूर्छित होकर गिर पड़े। माता ने मधुमक्खियों का भयंकर झुंड उनको भगाने के लिए भेजा, जिसने सैनिकों को ऐसा सबक सिखाया कि वे वहां से भयभीत हो भाग निकले।
इस घटना के बाद जीण माता को "भंवरों वाली देवी" कहा जाने लगा। औरंगजेब को जब यह समाचार मिला, तो उसने स्वयं मंदिर आकर इसे नष्ट करने का निर्णय लिया। पर जैसे ही वह मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचा, उसके घोड़े ने वहां पैर जमाने से इंकार कर दिया। कहते हैं, उसके शरीर में कंपन होने लगा, वह खड़ा भी नहीं रह सका और मजबूर होकर घुटनों के बल बैठ गया।
अखंड ज्योति और चांदी का छत्र
इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने दरबार में एक घोषणा की "यह मंदिर कोई साधारण स्थान नहीं, यहां अलौकिक शक्तियां हैं।" औरंगजेब ने मंदिर के महंत से क्षमा माँगी और उस स्थल को न छूने का आदेश दिया।
उसने वहां एक फारसी ताम्रपट्ट भी लगवाया जिसमें लिखा था कि "यह स्थल दैवीय शक्ति से ओतप्रोत है, इसे कोई हानि न पहुंचाए।" यह वह विरला क्षण था, जब अत्याचार के सामने आस्था की विजय हुई।
कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठा
जीण माता को विशेष रूप से राजपूतों, खासकर शेखावत वंश की कुलदेवी माना जाता है। हर नवविवाहित जोड़ा और प्रत्येक शुभ कार्य से पहले, परिवारजन माता के दर्शन करने ज़रूर आते हैं। आज भी यह शक्तिपीठ हैंड हजारों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां आकर शक्ति प्रत्यक्ष अनुभव की जा सकती है।
कोई भी साधक जब सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी पुकार देवी तक अवश्य पहुंचती है। नवरात्रों में यहां विशेष उत्सव होता है। यह सिद्ध पीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह प्रतीक है उस शक्ति का जो अधर्म के विरुद्ध सदा अडिग रही है।
कैसे पहुंचे
जीण माता मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक प्राचीन शक्तिपीठ है, जो सीकर शहर से लगभग 29 किलोमीटर दक्षिण में अरावली की पहाड़ियों के बीच
स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के मार्गः
1. वायु मार्गः निकटतम हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 108 किलोमीटर दूर है। वहां से सड़क मार्ग द्वारा सीकर होते हुए जीण माता मंदिर पहुंचा जा सकता है.
2. रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन सीकर जंक्शन है, जो मंदिर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। सीकर से टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
3. सड़क मार्गः जयपुर-बीकानेर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-11) पर स्थित गोरियां रेलवे स्टेशन से लगभग 15 किलोमीटर पश्चिम में खोस गांव के पास यह मंदिर स्थित या टैक्सी द्वारा मिं सकता है. 'गीकर या जयपुर से बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
मंदिर के निकट भक्तों के ठहरने के लिए कई धर्मशालाएं उपलब्ध हैं, जो विभिन्न सुविधाएं प्रदान करती हैं।