Bhembetka Caves History in Hindi: भीमबेटका शैलाश्रय, भारत की प्राचीनतम गुफाएँ जो महाभारत के कहानी याद दिलाती हैं

Bhimbetka Ki Gufa Ka Itihas: भीमबेटका का नाम महाभारत के पात्र भीम से जुड़ा हुआ माना जाता है।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-20 13:01 IST

 Bhembetka Caves History and Mystery (Photo - Social Media)

Bhimbetka Ki Gufa Ka Itihas: भीमबेटका भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। यह स्थान प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक की सभ्यता का साक्षी है। यहाँ की गुफाएँ और शैलचित्र हमें 30,000 से अधिक वर्ष पुराने मानव जीवन और उनकी गतिविधियों की झलक प्रदान करते हैं।

भीमबेटका का ऐतिहासिक महत्व

भीमबेटका का नाम महाभारत के पात्र भीम से जुड़ा हुआ माना जाता है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यह स्थान कभी भीम की विश्रामस्थली हुआ करता था, इसलिए इसका नाम "भीमबैठका" पड़ा, जिसका अर्थ है "भीम का बैठने का स्थान"। हालांकि, यह नामकरण केवल पौराणिक संदर्भों पर आधारित है।


इस स्थल की खोज 1957-58 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी। वे जब इस क्षेत्र से गुज़र रहे थे, तब उन्होंने यहाँ की गुफाओं और शैलचित्रों को देखा और महसूस किया कि ये मानव सभ्यता के प्राचीनतम प्रमाणों में से एक हो सकते हैं। इसके बाद, पुरातात्विक अध्ययन शुरू हुए और यहाँ से अद्भुत ऐतिहासिक प्रमाण मिले।

2003 में, यूनेस्को (UNESCO) ने भीमबेटका को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी, जिससे यह स्थल वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो गया।

भीमबेटका भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित है.. ये गुफ़ाएँ भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। भीमबेटका को भीम का निवास भी कहते हैं। हिंदू ग्रंथ महाभारत के अनुसार भीम पांच पांडवों में से द्वितीय थे। भीम के निवास स्थान के कारण ही इनका नाम भीमबैठका पड़ा। यहां करीब 600 गुफाएं हैं.

भीमबेटका की गुफाओं की विशेषताएँ

भीमबेटका में लगभग 750 से अधिक गुफाएँ हैं, जिनमें से 500 में शैलचित्र पाए गए हैं।


ये गुफाएँ विंध्य पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी किनारे पर स्थित हैं और चारों ओर से घने जंगलों से घिरी हुई हैं।

यहाँ पाए जाने वाले शैलचित्रों को कई कालखंडों में विभाजित किया गया है:

  1. ऊपरी पाषाण युग (Upper Paleolithic Age) के चित्र: सबसे पुराने चित्र, जो लगभग 30,000 साल पुराने माने जाते हैं।इनमें मुख्य रूप से जानवरों और शिकार के दृश्य दिखाए गए हैं।
  2. मेसोलिथिक (Mesolithic) काल के चित्र: इन चित्रों में मानव आकृतियाँ और सामाजिक गतिविधियाँ दिखाई गई हैं।शिकार, नृत्य, संगीत, और समूह में रहने जैसी गतिविधियाँ दर्शाई गई हैं।
  3. नवपाषाण (Neolithic) काल के चित्र: इस काल में मानव जीवन कृषि और पशुपालन से जुड़ गया था।चित्रों में खेती, पशुओं का पालन और धार्मिक अनुष्ठान दिखाए गए हैं।
  4. ऐतिहासिक काल के चित्र: इन चित्रों में घोड़े, हाथी, तलवार और अन्य अस्त्र-शस्त्रों के चित्र शामिल हैं।यह चित्रण दर्शाता है कि इस काल में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ विकसित हो चुकी थीं।

शैलचित्रों की विशेषताएँ

भीमबेटका की गुफाओं में चित्र मुख्यतः लाल, सफेद, पीले और हरे रंगों में बनाए गए हैं। ये चित्र प्राकृतिक रंगों से बनाए गए थे, जो पौधों, पत्थरों और मिट्टी से निकाले गए थे। इन चित्रों में दिखाए गए कुछ प्रमुख तत्व हैं:

शिकार के दृश्य: जिनमें मानव तीर-कमान से जानवरों का शिकार करते दिखते हैं।

नृत्य और संगीत: समूह में नृत्य करते हुए मानव आकृतियाँ।


पशु चित्रण: भैंस, हिरण, हाथी, गेंडा, सांड आदि के चित्र।

युद्ध के दृश्य: घोड़ों पर सवार योद्धा और अस्त्र-शस्त्र लिए मानव चित्र।

भीमबेटका का भौगोलिक और पर्यावरणीय परिदृश्य

यह स्थल घने जंगलों और विंध्य पर्वतमाला के बीच स्थित है। भीमबेटका का प्राकृतिक परिदृश्य इसे आदिमानवों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बनाता था।

वन्य जीवन: आज भी इस क्षेत्र में बाघ, तेंदुए, हिरण, और भालू जैसे जंगली जानवर पाए जाते हैं।


भूगर्भिक संरचना: यहाँ की चट्टानें बलुआ पत्थर की बनी हैं, जो प्राकृतिक रूप से गुफाओं और आश्रय स्थलों का निर्माण करती हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भीमबेटका सिर्फ एक पुरातात्विक स्थल ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।कुछ चित्रों में ऐसे प्रतीक पाए गए हैं, जो बाद में हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले प्रतीकों से मिलते-जुलते हैं।यहाँ शिवलिंग जैसी आकृतियाँ भी मिली हैं, जो इस स्थल के धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं।

वर्तमान स्थिति और पर्यटन

आज भीमबेटका एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया है।पर्यटकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें:यहाँ घूमने के लिए ठंडी सुबह या शाम का समय सबसे उपयुक्त होता है।प्रवेश के लिए एक मामूली शुल्क लिया जाता है।गुफाओं में जाने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मार्गों का पालन करना जरूरी होता है।


ऐसा माना जाता है कि भीमबेटका का संबंध महाभारत के महान योद्धा भीम से है, और इसी वजह से इसका नाम पहले "भीमबैठका" रखा गया, जो कालांतर में "भीमबेटका" के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह प्राचीन गुफाएँ मध्य प्रदेश के विंध्याचल पर्वतमाला के दक्षिणी किनारे पर स्थित हैं। देश और विदेश से पर्यटक और शोधकर्ता इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आते हैं। हालाँकि, अभी भी यहाँ बेहतर परिवहन सुविधाओं की आवश्यकता है। यदि सरकार इस ओर ध्यान दे, तो पर्यटन में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।

भीमबेटका में पहली बार हाथी दरवाजा और आदिमानव द्वारा निर्मित शिलाचित्र खोजे गए थे। यहाँ लगभग 750 से अधिक शैलाश्रय (रॉक शेल्टर) पाए गए हैं, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इनमें से केवल 15 महत्वपूर्ण गुफाओं को चिन्हित किया है, जहाँ शोधकर्ता और पर्यटक जा सकते हैं।


इस क्षेत्र में सैकड़ों प्रजातियों के वृक्ष भी देखने को मिलते हैं। पर्यटकों के लिए यहाँ दो विशेष आकर्षण हैं—एक प्राकृतिक पत्थर, जिसकी आकृति कछुए के समान प्रतीत होती है, और एक अनोखा वृक्ष, जिसमें एक पेड़ के तने से दूसरा पेड़ उगता हुआ दिखाई देता है। यहाँ की कई गुफाएँ 25 से 40 मीटर ऊँचाई तक स्थित हैं, जो देखने में अत्यंत प्रभावशाली लगती हैं।

पर्यटन और पहुँच:

भीमबेटका लाखों वर्षों पुरानी पुरापाषाणकालीन धरोहर है। यहाँ तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है। नज़दीकी रेलवे स्टेशन ओबेदुल्लागंज और भोपाल हैं। हालाँकि, ओबेदुल्लागंज में कम ही ट्रेनें रुकती हैं। यहाँ जाने के लिए बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।

पर्यटकों की सुविधा के लिए नज़दीकी क्षेत्र में निजी होटल और भोजनालय मौजूद हैं, साथ ही मध्य प्रदेश टूरिज्म का एक रेस्टोरेंट भी यहाँ स्थित है। यदि परिवहन और बुनियादी सुविधाओं को और विकसित किया जाए, तो यह स्थल और अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल सकता है।


भीमबेटका शैलाश्रय भारत की प्राचीनतम सभ्यता का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है। यह स्थल न केवल हमारे पूर्वजों की जीवनशैली को दर्शाता है, बल्कि यह प्रमाणित करता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सभ्यता कितनी पुरानी रही है।

भीमबेटका की गुफाएँ हमें हमारे अतीत की झलक दिखाती हैं और यह भी बताती हैं कि कला, संस्कृति, और सामाजिक गतिविधियाँ कितनी पुरानी हैं। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर घोषित किए जाने के बाद इसका महत्व और भी बढ़ गया है।

यह स्थल भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है। 

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