Chhinnamastika Devi Temple: विकराल रूप वाली मां छिन्नमस्तिका की महिमा अपार, यहां भक्तों की हर मुराद होती पूरी
Chhinnamastika Devi Temple: मां छिन्नमस्तिका के दो प्रसिद्ध मंदिर है। एक मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर में है और दूसरा मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में है।
Chhinnamastika Devi Temple: नवरात्र में मां के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है। हर शाम मंदिरों में मां के जयकारे लगाए जाते हैं और भक्त मां के नवरात्र में झूम-झूमकर नाचते हैं। नवरात्र के दौरान भक्तों के मां के शक्तिपीठ का दर्शन करने जाते हैं। ऐसे में आज हम आपको मां छिन्नमस्तिका के बारे में बताते हैं। जिनका रूप बहुत ही भयानक है। रोद्र रूप धारण किए मां छिन्नमस्तिका अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखती हैं।
मां छिन्नमस्तिका माता सती की दस महाविद्याओं में से छठवी महाविद्या है। ये हैं मां के अन्य नौ रूप- काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला।
मां छिन्नमस्तिका का रूप बहुत डराने वाला है। मां छिन्नमस्तिका अपने एक हाथ में राक्षस की मुंडी पकड़े हुए हैं जबकि दूसरे हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुए हैं। मां के गले से खून की तीन धाराएं निकलते दिखाई देती हैं।
बता दें, छिन्नमस्ता शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें एक शब्द छिन्न का अर्थ है अलग होना और दूसरा शब्द मस्ता जिसका अर्थ है मस्तक। तो इस तरह से छिन्नमस्ता यानी मस्तक अपने धड़ से अलग हो गया। ऐसे पड़ा मां छिन्नमस्तिका नाम।
मां छिन्नमस्तिका के दो प्रसिद्ध मंदिर है। एक मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर में है और दूसरा मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में है।
कानपुर में माता छिन्नमस्तिका का मंदिर
कानपुर के शिवाला में मां छिन्नमस्तिका मंदिर है। इस मंदिर के बारे में सबसे आश्चर्य की बात ये है कि मां छिन्नमस्तिका का ये मंदिर सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्र में ही खुलता है। और तो और तो चैत्र और शारदीय नवरात्र की केवल सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन ही भक्तों मां छिन्नमस्तिका के दर्शन करते हैं। बाकी साल के पूरे दिन मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
मां छिन्नमस्तिका मंदिर के गर्भग्रह में मां की सिर वाली मूर्ति, जिसमें मां एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए हैं। मां के कटे हुए स्कंध से खून की जो धाराएं निकलती हैं। उनमें से एक को मां स्वयं पीती हैं और बची हुई दो धाराओं से मां अपनी दो सहेलियों जया और विजया की भूख को शांत करती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मान्यता यह भी है कि यह कलियुग की देवी हैं। इसी वजह से मां छिन्नमस्तिका की पूजा कलियुग की देवी के रूप में भी की जाती है।
झारखंड में माता छिन्नमस्तिका का मंदिर
झारखंड (Jharkhand) की राजधानी रांची (Ranchi) से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। मां के इस मंदिर से भक्तों की अटूट श्रद्धा जुड़ी हुई है। मां के इस मंदिर को शक्तिपीठ के तौर पर माना जाता है।
असम के मां कामाख्या देवी मंदिर के बाद झारखंड की मां छिन्नमस्तिका देवी मंदिर को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। छिन्नमस्तिका माता के मंदिर में भक्त मां के बिना सिर वाले स्वरूप की पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां पर भक्तों द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
रांची में मां छिन्नमस्तिका का मंदिर रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा के नजदीक दामोदर नदी के संगम पर है। मां के इस मंदिर में पूरे साल मां के भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन अगर चैत्र और शारदीय नवरात्रों की बात करें तब तो मां छिन्नमस्तिका मंदिर में अपार भीड़ लगती है, जिसका कोई ठिकाना नहीं रहता है।
हिंदू शास्तों के अनुसार, मां छिन्नमस्तिका मंदिर के बारे में बताया जाता है कि माता का ये मंदिर लगभग 6000 साल पुराना है। इस मंदिर की उत्तरी दीवार पर शिलाखंड पर मां छिन्नमस्तिका के दिव्य रूप की अद्भुत झलक दिखाई देती है। विशेषज्ञों का मानना है कि मां छिन्नमस्तिका के इस मंदिर का निर्माण महाभारतकालीन है।
मां के मंदिर के अंदर विराजी मां छिन्नमस्तिका को मां काली का ही एक रूप कहा जाता है। जोकि बहुत विकराल रूप धारण किए हुए हैं। मां छिन्नमस्तिका मंदिर के अंदर मां के स्वरूप का वर्णन करते हुए- मां अपने दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में मां अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुए हैं। मां का गला सर्पमाला और मुंडों की माला से सजा हुआ है। मां छिन्नमस्तिका के केश खुले हुए हैं और आभूषणों से सजी मां छिन्नमस्तिका रक्तपान करती दिखाई दे रही हैं।