Famous Chini Yatri Ki Kahani: एक चीनी यात्री की अविस्मरणीय कहानी, कौन था भारत पर मोहित होने वाला ह्वेनसांग?
Famous Chini Yatri Ki Kahani: ह्वेनसांग न केवल एक महान यात्री थे, बल्कि एक उत्कृष्ट विद्वान और अन्वेषक भी थे। उन्होंने भारत को गहराई से समझा और उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को चीन तक पहुँचाया।;
Famous Chini Yatri Ki Kahani Xuanzang Travel Journey in India
Xuanzang Travel Journey: भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान और संस्कृति का अद्वितीय केंद्र रहा है। इसने अपनी समृद्ध परंपराओं, धर्म और ग्रंथों के माध्यम से न केवल भारतीयों को, बल्कि विदेशियों को भी प्रेरित और आकर्षित किया। इन्हीं प्रभावित लोगों में से एक थे महान चीनी यात्री ह्वेनसांग (Hiuen Tsang (Xuanzang), जिन्होंने सातवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की। ह्वेनसांग का भारत आगमन केवल एक तीर्थयात्रा नहीं था, बल्कि यह भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझने और अपने देश तक पहुँचाने का एक अभूतपूर्व प्रयास था। उनकी यात्रा ने भारत के तत्कालीन समाज, शिक्षा, धर्म और संस्कृति का विस्तृत चित्रण किया और इसे चीनी सभ्यता का हिस्सा बनाया। यह लेख ह्वेनसांग की ऐतिहासिक भारत यात्रा, उनके अनुभवों और उनके अतुलनीय योगदान को व्यापक रूप से प्रस्तुत करता है।
ह्वेनसांग (Hiuen Tsang (Xuanzang), जिन्हें जुआनज़ांग के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु, विद्वान और पर्यटक थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में भारत का व्यापक दौरा किया। उनके यात्रा वृतांत ने न केवल भारत के तत्कालीन समाज, राजनीति, धर्म और संस्कृति को दर्ज किया, बल्कि दो महान सभ्यताओं, भारत और चीन, के बीच संबंधों को भी मजबूत किया। ह्वेनसांग की भारत यात्रा का उद्देश्य बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों और बौद्ध शिक्षा का अध्ययन करना था। उनका जीवन और यात्रा आज भी भारतीय और चीनी इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं।
ह्वेनसांग का प्रारंभिक जीवन - Early Life of Hiuen Tsang (Xuanzang)
ह्वेनसांग (Hiuen Tsang (Xuanzang) का जन्म 602 ईस्वी में चीन(China)के लुओयंग(Luoyang) में हुआ था । वे अपने परिवार में सबसे छोटे थे। उनके पूर्वज शिक्षा और शाही महाविद्यालयों से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने भिक्षु बनने का निर्णय लिया। पिता की मृत्यु के बाद वे अपने बड़े भाई चेनसू के साथ जिंगतू मठ में रहे, जहां उन्होंने बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों का अध्ययन किया।
618 में सुई वंश के पतन के बाद, वे चांगान और फिर सिचुआन गए, जहां उन्होंने आगे की शिक्षा प्राप्त की और अभिधर्मकोष शास्त्र का अध्ययन किया। अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण वे मात्र 13 वर्ष की आयु में मठाधीश बन गए और 622 में उन्हें पूर्ण रूप से भिक्षु की दीक्षा मिली।
बौद्ध और वैदिक ग्रंथों में अंतर और भ्रम को दूर करने के लिए उन्होंने भारत जाकर मूल ग्रंथों का अध्ययन करने का निश्चय किया। इसके लिए वे चांगान लौटकर विदेशी भाषाओं, विशेष रूप से संस्कृत का अध्ययन करने लगे और 626 ईस्वी तक संस्कृत में दक्ष हो गए। इसी समय उन्होंने योग में भी रुचि ली।
भारत यात्रा का उद्देश्य - The purpose of the journey to India
उस समय चीन में बौद्ध धर्म के कई मत प्रचलित थे और अनेक ग्रंथों का अनुवाद भी हुआ था, लेकिन इनमें कई त्रुटियाँ थीं। ह्वेनसांग इन त्रुटियों को दूर करना चाहते थे और मूल बौद्ध ग्रंथों को प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत आने का निश्चय किया। हालाँकि, तत्कालीन चीनी शासक ने विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगा रखा था, फिर भी ह्वेनसांग ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर यह साहसिक यात्रा प्रारंभ की।
भारत यात्रा का मार्ग और कठिनाइयाँ - journey to India & difficulties
ह्वेनसांग ने 627 ईस्वी में चीन से भारत के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने मध्य एशिया, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया। भीषण रेगिस्तानों, ठंडे पहाड़ों और डाकुओं से भरे जंगलों को पार करते हुए वे भारत पहुँचे।
भारत में प्रवेश करने के बाद, उन्होंने सबसे पहले गांधार (वर्तमान पाकिस्तान) का दौरा किया। वहाँ से वे कश्मीर, मथुरा, कान्यकुब्ज (कन्नौज), नालंदा, और पाटलिपुत्र गए। उन्होंने अनेक बौद्ध विहारों और विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया और भारतीय विद्वानों से चर्चा की। ह्वेनसांग यह यात्रा 17 वर्षो तक चली इस यात्रा के दौरान उन्होंने मध्य एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया।
नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन - Study at Nalanda University
भारत में ह्वेनसांग का सबसे अधिक समय नालंदा विश्वविद्यालय में बीता। उस समय नालंदा विश्व का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र था। यहाँ पर उन्होंने प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य शीलभद्र से अध्ययन किया और बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान संप्रदायों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने वेद, उपनिषद, योग और अन्य हिंदू दर्शन ग्रंथों को भी पढ़ा।
हर्षवर्धन से भेंट - Meeting with Harshavardhana
ह्वेनसांग की मुलाकात भारत के महान सम्राट हर्षवर्धन(Harshavardhana) से भी हुई। हर्षवर्धन ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और एक भव्य बौद्ध महासभा का आयोजन किया, जिसमें ह्वेनसांग ने बौद्ध धर्म पर अपने विचार प्रस्तुत किए। हर्षवर्धन ने उनकी विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें अनेक उपहार भी दिए।
ह्वेनसांग द्वारा भारत का वर्णन - Huen Tsang's description of India
ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान भारत की संस्कृति, समाज, धर्म और शासन प्रणाली का विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में भारत की समृद्धि, जनता के जीवन, सामाजिक व्यवस्था, कृषि, व्यापार और विभिन्न धर्मों के सह-अस्तित्व का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भारत में बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म भी बहुत प्रभावशाली था। उन्होंने भारत की प्राचीन विश्वविद्यालयों, जैसे नालंदा और तक्षशिला, का भी उल्लेख किया।
भारत के प्रति प्रेम - Huen Tsang's Love for India
ह्वेनसांग भारत की प्राचीन संस्कृति, ज्ञान और आध्यात्मिकता से इतने प्रभावित हुए कि वे भारत के प्रति समर्पित हो गए। उन्होंने यहां के लोगों की सहिष्णुता, विद्वता और परंपराओं की प्रशंसा की। भारत के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता ने भी उन्हें प्रभावित किया।
उनकी भारत यात्रा के दौरान, उन्होंने कश्मीर, मगध, कौशांबी, अयोध्या, वाराणसी और अन्य प्रमुख स्थानों का दौरा किया। उन्होंने विभिन्न बौद्ध स्तूपों, मंदिरों और मठों का दौरा किया और अनेक विद्वानों से संवाद किया।
चीन वापसी और योगदान - Return to China and Contributions
643 ईस्वी में, ह्वेनसांग भारत से अपनी मातृभूमि लौटे। अपनी वापसी पर, वे लगभग 657 पांडुलिपियाँ और बौद्ध धर्म के ग्रंथ लेकर गए। उनकी वापसी यात्रा भी रोमांचक और चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन उन्होंने इन कठिनाइयों को पार किया और चीन पहुंचकर इन पांडुलिपियों का अनुवाद और प्रचार किया। चीन पहुँचने के बाद उन्होंने 657 ग्रंथों का अनुवाद किया और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा और अनुभवों को 'महासंग्रह' और 'सियु-की' (Records of the Western World) जैसे ग्रंथों में संकलित किया। उन्होंने अपनी यात्रा का विवरण ‘सी-यू-की’ (Records of the Western World) नामक ग्रंथ में लिखा, जो भारत के इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
उनके कार्यों ने न केवल बौद्ध धर्म को चीन में प्रचलित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी चीन तक पहुँचाया। इसके साथ ही, उन्होंने नालंदा में प्राप्त शिक्षा और ग्रंथों का अनुवाद कर चीन में बौद्ध धर्म के प्रचार में अहम भूमिका निभाई।
चीनी बौद्ध धर्म पर त्सांग का प्रभाव - Tsang's influence on Chinese Buddhism
चीन पहुंचने के बाद, सम्राट के सहयोग से उन्होंने चांगान (वर्तमान ज़ियान) में एक विशाल अनुवाद संस्थान स्थापित किया, जहां पूरे पूर्वी एशिया से छात्र अध्ययन के लिए आते थे। उन्होंने कुल 1330 बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया।
ह्वेन त्सांग का सबसे महत्वपूर्ण योगदान योगाचार (Yogācāra) दर्शन के प्रचार-प्रसार में रहा। वे भारतीय बौद्ध ग्रंथों के सटीक और प्रामाणिक चीनी अनुवादों के लिए प्रसिद्ध हुए। उनके अनुवादों के कारण कई खो चुके भारतीय बौद्ध ग्रंथों को पुनः प्राप्त किया जा सका। उनकी कृति चेंग वैशी लूं इन बौद्ध ग्रंथों की व्याख्या के लिए आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनके द्वारा अनूदित हृदय सूत्र (Heart Sutra) अब एक मानक ग्रंथ बन चुका है। इसके अलावा, उन्होंने अल्प समय के लिए चीनी फाजियान विद्यालय की स्थापना भी की।
ह्वेनसांग से जुड़े कुछ रोचक तथ्य - Some interesting facts related to Hiuen Tsang
महान अनुवादक: ह्वेनसांग केवल एक यात्री ही नहीं, बल्कि एक महान अनुवादक भी थे। उन्होंने संस्कृत से चीनी भाषा में 70 से अधिक बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया, जो 1,300 से अधिक अध्यायों में विभाजित हैं।
राजनयिक भूमिका: अपनी भारत यात्रा के दौरान, वे एक तरह से चीनी सम्राट के राजनयिक दूत के रूप में भी काम करते थे। भारत में उन्हें कई भारतीय राजाओं का आदर और सम्मान प्राप्त हुआ, विशेष रूप से सम्राट हर्षवर्धन का।
कठिन यात्राएँ: ह्वेनसांग ने भारत पहुँचने के लिए खतरनाक रेगिस्तानों, जैसे तकलामाकन रेगिस्तान, और ऊँचे पर्वतों, जैसे पामीर पर्वत, को पार किया। उनकी यात्रा बेहद चुनौतीपूर्ण थी, जिसमें उन्होंने लगभग अपनी जान गँवा दी थी, लेकिन उनके साहस और दृढ़ निश्चय ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
केवल बौद्ध धर्म तक सीमित नहीं: वे बौद्ध धर्म के विद्वान थे, लेकिन उन्होंने भारत के अन्य धर्मों, जैसे हिंदू धर्म और जैन धर्म, का भी अध्ययन किया। उनके विवरण 7वीं शताब्दी के भारतीय समाज और धर्मों को समझने के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं।
गुप्त मार्गों का उपयोग: चूँकि उन्होंने चीन सरकार की अनुमति के बिना यात्रा शुरू की थी, इस कारण उन्होंने कई गुप्त और कम ज्ञात मार्गों का उपयोग किया ताकि उन्हें पकड़ा न जा सके।
भारत के प्रति सम्मान: ह्वेनसांग भारत की सांस्कृतिक विविधता और ज्ञान की गहराई से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने भारतीय समाज की सहिष्णुता और परंपराओं की प्रशंसा की।
चीन में बौद्ध धर्म को समृद्ध किया: उनकी शिक्षाओं और अनुवादों ने महायान बौद्ध धर्म के योगाचार संप्रदाय को चीन में लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
साहित्यिक प्रेरणा: उनकी जीवन यात्रा ने 16वीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी उपन्यास जर्नी टू द वेस्ट (पश्चिम की यात्रा) को प्रेरित किया। इसमें उन्हें तांग सानज़ांग के नाम से दर्शाया गया है, जिनके साथ पौराणिक बंदर राजा सफर पर निकलते हैं।
विशिष्ट यात्रा वृत्तांत: उनके यात्रा विवरण, ग्रेट तांग रेकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन (महायात्रा का पश्चिमी विवरण), में उनके द्वारा देखे गए स्थानों और वहाँ की स्थितियों का सजीव वर्णन मिलता है।
नालंदा के प्रति लगाव: नालंदा विश्वविद्यालय में बिताया गया उनका समय उनकी भारत यात्रा का मुख्य आकर्षण था। नालंदा में उनकी विद्वता और समर्पण की आज भी सराहना की जाती है।