Howrah Bridge History: जानिए कोलकाता की अमूल्य धरोहर हावड़ा ब्रिज का गौरवशाली इतिहास

Howrah Bridge Ka Itihas: हावड़ा ब्रिज दुनिया का छठा ऐसा पुल है जिसमें एक भी खंभा या स्तंभ नहीं है और जो बिना किसी सहायक स्तंभ के अपने दोनों किनारों से संतुलित रहता है।;

Update:2025-03-20 18:47 IST
Howrah Bridge Ka Itihas:

Howrah Bridge Ka Itihas (Photo - Social Media)

  • whatsapp icon

History Of Howrah Bridge: हावड़ा ब्रिज (Howrah Bridge Ka Itihas), जिसे आधिकारिक तौर पर रवींद्र सेतु के नाम से भी जाना जाता है, कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह ब्रिज कोलकाता को हावड़ा से जोड़ता है और हुगली नदी पर बना भारत के सबसे व्यस्त पुलों में से एक है। वर्ष 1943 में निर्मित, यह पुल बिना किसी पिलर के नदी के ऊपर टिका हुआ है, जो इसकी अद्भुत इंजीनियरिंग को दर्शाता है। प्रतिदिन लाखों लोग और वाहन इस पुल से गुजरते हैं, जिससे यह न केवल एक महत्वपूर्ण परिवहन मार्ग बनता है, बल्कि कोलकाता की पहचान का अभिन्न हिस्सा भी है। हावड़ा ब्रिज न केवल एक परिवहन माध्यम है, बल्कि यह शहर की पहचान, इतिहास और संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। इस लेख में, हम हावड़ा ब्रिज के इतिहास, निर्माण, महत्व और कुछ अनसुनी कहानियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पुराने हावड़ा ब्रिज (पोंटून ब्रिज) का निर्माण - Construction of a pontoon bridge

19वीं शताब्दी में जब कोलकाता (Kolkata) ब्रिटिश भारत की राजधानी थी, तब शहर का तेजी से विकास हो रहा था और व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि हो रही थी। इस कारण हावड़ा और कोलकाता के बीच यातायात बढ़ने लगा, जिससे एक मजबूत पुल की आवश्यकता महसूस की गई। उस समय यातायात का मुख्य साधन नावें और फेरी सेवाएँ थीं, जो समय और संसाधनों की बर्बादी का कारण बनती थीं।

1862 में ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र में एक पुल के निर्माण की संभावना पर विचार किया। इसके बाद, 1871 में कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट की स्थापना की गई और उसे इस पुल के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। शुरुआती योजना के तहत एक सस्पेंशन ब्रिज (लटकता हुआ पुल) बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन बाद में इंजीनियरों ने पोंटून ब्रिज बनाने का निर्णय लिया।

1874 में हुगली नदी पर यातायात बढ़ने के कारण पोंटून ब्रिज(Pontoon Bridge )का निर्माण किया गया। इसे सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली ने डिजाइन किया था। यह पुल 1,528 फीट लंबा और 62 फीट चौड़ा था, जिसमें 7 फीट चौड़े फुटपाथ भी बनाए गए थे। हालांकि, यह पुल समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं और तकनीकी समस्याओं से प्रभावित होता रहा। 1874 के चक्रवात और जहाज ‘एजेरिया’ की टक्कर से इसे काफी नुकसान हुआ था।

नए हावड़ा ब्रिज की योजना - Plan for the new Howrah Bridge

1905 में, बढ़ते यातायात के दबाव को देखते हुए एक नए और मजबूत पुल की आवश्यकता महसूस हुई। 1921 में "मुखर्जी कमेटी" ने पुल के निर्माण की सिफारिश की। इसके बाद, 1926 में न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पारित किया गया। ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म रेंडल, पामर और ट्रिटन ने इस नए पुल का डिज़ाइन तैयार किया। इसे कैंटिलीवर ब्रिज के रूप में डिजाइन किया गया, जो न तो सस्पेंशन ब्रिज था और न ही पारंपरिक प्रकार का।

निर्माण की प्रक्रिया - Process Of Construction

हावड़ा ब्रिज(Howrah Bridge) का निर्माण कार्य 1936 में शुरू हुआ और इसे 1942 तक पूरा कर लिया गया। इस भव्य परियोजना की जिम्मेदारी बीबीजे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को सौंपी गई थी तथा रेंडल, पामर और ट्रिटन ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म ने इस पुल को डिजाइन किया था । पुल के निर्माण में इस्तेमाल किया गया स्टील टाटा स्टील (TISCO) द्वारा प्रदान किया गया था, जिससे इसकी मजबूती और टिकाऊपन सुनिश्चित हुआ। इस पुल को बनाने में कुल ₹25 मिलियन की लागत आई थी। अंततः 3 फरवरी 1943 को इसे आम जनता के उपयोग के लिए खोल दिया गया। उस समय, यह पुल दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कैंटिलीवर ब्रिज था, जो इसकी शानदार इंजीनियरिंग और संरचनात्मक उत्कृष्टता को दर्शाता है।

डिज़ाइन और संरचना - Design and Structure

कैंटीलीवर ब्रिज:- हावड़ा ब्रिज एक कैंटिलीवर पुल है, जिसका अर्थ है कि यह पुल दो मुख्य पिलरों पर टिका हुआ है और बीच में कोई सहारा नहीं है। यह डिज़ाइन जहाजों की आवाजाही को बाधित नहीं करता है, जो उस समय एक महत्वपूर्ण विचार था जब हुगली नदी में कई जहाज आते-जाते थे

दो पिलरों पर टिका हुआ:- 280 फीट ऊंचे दो पिलरों पर टिका हावड़ा ब्रिज 705 मीटर (2,313 फीट) लंबा, 97 फीट चौड़ा और 457 मीटर (1,500 फीट) के मुख्य स्पैन के साथ एक अनूठी इंजीनियरिंग संरचना है।

स्टील का व्यापक उपयोग:- हावड़ा ब्रिज के निर्माण में लगभग 26,500 टन स्टील का उपयोग किया गया था, जिसमें से अधिकांश टाटा स्टील द्वारा प्रदान किया गया था।

नट बोल्ट की अनुपस्थिति:- इस पुल की एक और अनोखी बात यह है कि इसके निर्माण में कहीं भी नट बोल्ट का उपयोग नहीं किया गया है। इसके बजाय धातु की बनी कीलों का इस्तेमाल किया गया था।

विशाल यातायात भार:- हावड़ा ब्रिज प्रतिदिन लगभग 100,000 वाहनों और 150,000 पैदल यात्रियों को संभालता है, जो इसे दुनिया के सबसे व्यस्त कैंटिलीवर पुलों में से एक बनाता है।

हावड़ा ब्रिज का नाम परिवर्तन - Renaming of Howrah Bridge

1965 में हावड़ा ब्रिज का आधिकारिक नाम "रवींद्र सेतु"(Ravindra Setu) रखा गया था, जो प्रसिद्ध बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के सम्मान में दिया गया। लेकिन इसे अभी भी आमतौर पर हावड़ा ब्रिज ही कहा जाता है।

हावड़ा ब्रिज की अटूट मजबूती - The unbreakable strength of Howrah Bridge

हावड़ा ब्रिज को बने 80 से अधिक वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी यह अपनी मजबूती और स्थिरता के साथ खड़ा है। यहां तक कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, दिसंबर 1942 में जापान द्वारा गिराया गया एक बम इस पुल के पास आकर गिरा, लेकिन इसके बावजूद पुल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा, जिससे इसकी अद्वितीय संरचनात्मक मजबूती साबित होती है। हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी हमलों के डर से इसका औपचारिक उद्घाटन नहीं किया गया था।

यातायात और विद्यासागर सेतु का निर्माण(traffic and the construction of Vidyasagar Setu)

हावड़ा ब्रिज कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है, जो हर दिन लाखों पैदल यात्रियों और हजारों वाहनों के आवागमन का केंद्र बना रहता है। कभी यह पुल ट्राम सेवा का भी हिस्सा था, लेकिन बढ़ते यातायात दबाव के कारण 1993 में ट्राम संचालन बंद कर दिया गया। समय के साथ, इस पुल पर वाहन भार उसकी अधिकतम क्षमता से भी अधिक हो गया।

2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 90,000 वाहन प्रतिदिन इस पुल से गुजरते थे, जबकि इसकी भार सहन क्षमता 60,000 वाहनों की ही थी। बढ़ते ट्रैफिक लोड को देखते हुए, 31 मई 2007 से भारी ट्रकों के हावड़ा ब्रिज से गुजरने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उन्हें विद्यासागर सेतु की ओर मोड़ दिया गया। यातायात दबाव को कम करने के लिए 1992 में विद्यासागर सेतु का निर्माण किया गया, ताकि हावड़ा ब्रिज पर अत्यधिक भार को संतुलित किया जा सके। इसके बावजूद, यह पुल आज भी कोलकाता के सबसे व्यस्त पुलों में से एक बना हुआ है, जहां दोनों ओर बने चौड़े फुटपाथों पर हजारों पैदल यात्री हर दिन सफर करते हैं।

रखरखाव की चुनौतियाँ और सुरक्षा उपाय - Maintenance and security measures

हावड़ा ब्रिज का रखरखाव कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट (KoPT) द्वारा किया जाता है, लेकिन यह वाहनों की टक्कर, प्रदूषण और मानवजनित क्षरण से लगातार प्रभावित होता रहा है। पुल की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए 2008 में निगरानी कैमरे लगाए गए। पक्षियों की बीट और पान-गुटखा की थूक के कारण पुल को भारी क्षति हुई, जिसके चलते KoPT ने नियमित सफाई और फाइबरग्लास कवरिंग का निर्णय लिया।

2005 में, एक जहाज पुल के नीचे फंसने से गंभीर क्षति हुई, जिसकी मरम्मत के लिए 8 टन स्टील का उपयोग किया गया और यह कार्य रु. 50 लाख की लागत से 2006 की शुरुआत में पूरा किया गया। 2011 की एक रिपोर्ट में यह सामने आया कि तंबाकू और गुटखा की थूक से पुल के स्टील के पायों की मोटाई लगातार घट रही थी। पुल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्टील के पायों को फाइबरग्लास से ढंकने का कार्य किया गया, जिस पर करीब रु. 20 लाख खर्च हुए।

व्यापार और वाणिज्य का केंद्र - Center of Trade and Commerce

कोलकाता भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक है, और हावड़ा ब्रिज इस आर्थिक गतिविधि का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। यह पुल रोजाना हजारों व्यापारियों, श्रमिकों और यात्रियों को जोड़ता है, जिससे यह न केवल एक संरचना बल्कि एक जीवनरेखा भी बन जाता है।

कोलकाता की पहचान और संस्कृति(Kolkata's Identity and Cultural Heritage)

हावड़ा ब्रिज न केवल कोलकाता की पहचान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का एक अद्भुत प्रतीक भी है। हुगली नदी पर स्थित यह पुल कोलकाता को हावड़ा से जोड़ता है और अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के कारण सिर्फ एक संरचना नहीं, बल्कि एक जीवंत विरासत बन चुका है।

यह पुल सत्यजीत रे की क्लासिक फिल्मों से लेकर बॉलीवुड और टॉलीवुड की कई प्रसिद्ध फिल्मों में नजर आ चुका है, जिससे इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई है। बांग्ला और हिंदी साहित्य में इसे कोलकाता की आत्मा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जब भी कोलकाता का नाम लिया जाता है, हावड़ा ब्रिज की छवि स्वतः ही मन में उभर आती है।

यह पुल कोलकाता के पोस्टकार्ड की तरह है, जो इसे दुनियाभर में पहचान दिलाता है। हावड़ा ब्रिज केवल एक पुल नहीं, बल्कि कोलकाता की संस्कृति, इतिहास और भावनाओं से जुड़ा एक अनमोल प्रतीक है।

Tags:    

Similar News