Kalawati Ka Gatta: सिर्फ इत्र के लिए ही नहीं गट्टों के लिए भी प्रसिद्ध है कन्नोज, आइये इस दुकान पर
Kalawati Ka Gatta: भारत के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी मीठी विशेषताएँ हैं, जो विविध पाक परंपराओं को प्रदर्शित करती हैं। उदाहरण के लिए, बंगाल में रसगुल्ला, उत्तर भारत में जलेबी, दक्षिण में मैसूर पाक और महाराष्ट्र में मोदक प्रसिद्ध क्षेत्रीय मिठाइयाँ हैं।
Kalawati Ka Gatta: भारत में मिठाइयों का इतिहास समृद्ध और विविध है, जो सदियों से चला आ रहा है और देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है। मिठाइयाँ भारतीय व्यंजनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और विभिन्न उत्सवों, त्योहारों और अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग हैं। वर्तमान में तो हर शहर में आपको मिठाई की एक-दो नहीं बल्कि तमाम शानदार दुकानें मिल जाएँगी, जो तरह-तरह की मिठाइयां बनाते और बेचते हैं।
भारत के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी मीठी विशेषताएँ हैं, जो विविध पाक परंपराओं को प्रदर्शित करती हैं। उदाहरण के लिए, बंगाल में रसगुल्ला, उत्तर भारत में जलेबी, दक्षिण में मैसूर पाक और महाराष्ट्र में मोदक प्रसिद्ध क्षेत्रीय मिठाइयाँ हैं।
आज से तीन दशक पहले बाजार की मिठाइयों का इतना चलन नहीं था। तब मिठाई शादी-व्याह या किसी उत्सव के मौकों पर ही बनते थे। उनमे भी लड्डू, बालूशाही जैसी मिठाइयां जो घर में असानी से बन सकें उनका ही चलन ज्यादा था। इसी क्रम में एक और मिठाई है जिसका चलन दिवाली के समय ज्यादा होता था वो है गट्टा। आज की पीढ़ी तो शायद ही इस मिठाई से परिचित हो। लेकिन अभी भी उत्तर प्रदेश में कन्नोज एक ऐसा शहर है जो इस मिठाई के लिए बहुत फेमस है।
कैसे बनता है गट्टा
गट्टा मुख्यतः चीनी से ही बनता है। इसको बनाने के लिए चीनी के अलावा दूध एक और प्रमुख सामग्री है। दूध को चीनी की चाशनी में मिलाकर गट्टा बनाया जाता है। पहले तो अधिकतर सादा गट्टा ही मिलता है। आजकल इसमें ऊपर से काजू, किशमिश, बादाम, पिश्ता, इलायची, गरी आदि दाल कर इसे और भी स्वादिष्ट बनाया जाता है। खुशबु के लिए ऊपर से केवड़ा भी मिलाया जाता है। कन्नोज में तो कई जगह पर चॉकलेट भी दाल कर गट्टा बनाया जाता है। गट्टे की खासियत यह होती है कि यह मुंह में डालते ही एकदम घुल जाता है। गट्टे अन्य मिठाइयों की तुलना में काफी सस्ते भी होते हैं।
कलावती का गट्टा
कन्नोज में सबसे फेमस गट्टा कलावती का गट्टा है। यह दुकान बीते 100 सालों से कन्नोज के लोगों का मुंह मीठा करा रहा है। जानकारी के अनुसार 1923 में एक महिला कलावती ने अपने पति के बीमार हो जाने के बाद इस दुकान को खोला था। उस समय बहुत मिठाइयों का चलन नहीं था। धीरे-धीरे कलावती का गट्टा प्रसिद्ध हो गया। कलावती तो अब इस दुनिया में नहीं उनकी तस्वीर दुकान पर लटकी मिल जाएगी। आज यह दूकान कलावती के पोते चला रहे हैं। यहाँ पर 80 रुपये किलो से लेकर 250 रुपये किलो तक का गट्टा मिलता है। 80 रुपये किलो वाला सादा गट्टा होता है वहीँ 250 रुपये किलो वाला गट्टा काजू. किशमिश, बादाम, पिश्ता से भरा होता है। यहाँ का गट्टा मुंह में डाले ही एकदम घुल जाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि कलावती का गट्टा विदेशों तक जाता है। यह दुकान कन्नोज के महात्मा गाँधी रोड पर स्थित है। दुकान सोमवार से शनिवार तक सुबह 8.30 बजे से रात के 9 बजे तक खुली रहती है।
इत्र के लिए भी प्रसिद्ध है कन्नौज
कन्नौज में इत्र निर्माण का एक लंबा इतिहास है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। इसे भारत में इत्र उत्पादन के सबसे पुराने केंद्रों में से एक माना जाता है। इत्र बनाने की प्रक्रिया में पारंपरिक शिल्प कौशल शामिल है, जहां कुशल कारीगर पीढ़ियों से चली आ रही विधियों का उपयोग करते हैं। इत्र बनाने की कला में आसवन और प्राकृतिक स्रोतों से सुगंध निकालना शामिल है। इत्र विभिन्न प्राकृतिक सामग्रियों जैसे फूल, जड़ी-बूटियों, मसालों और लकड़ियों का उपयोग करके बनाया जाता है। सुगंध के सामान्य स्रोतों में गुलाब, चमेली, चंदन और केसर शामिल हैं। उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे माल का चयन सुगंधों की समृद्धि और जटिलता में योगदान देता है।