Bharat Mein Sanskrit Bolne Wale Gaon: भारत के वे गांव जहां आज भी बोली जाती है संस्कृत, आइए जानते हैं इनके बारे में

Bharat Mein Sanskrit Bolne Wale Gaon: भारत में आज भी ऐसे कई गांव है, जहां पर संस्कृत भाषा को संरक्षित रखा गया है। यानी यहां पर लोग मौजूदा समय में भी संस्कृत में बातचीत करते हैं।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-01-29 07:00 IST

Bharat Mein Sanskrit Bolne Wale Gaon Ka Itihas (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Bharat Mein Sanskrit Bolne Wale Gaon Ka Itihas: परिचय संस्कृत, जो प्राचीन भारत की प्रमुख भाषा रही है, आज भी भारत के कुछ गाँवों में जीवित है। जहाँ एक ओर यह भाषा विश्वभर में अध्ययन और अनुसंधान का विषय बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर इन गाँवों के लोग इसे अपनी दैनिक बातचीत और जीवनशैली का हिस्सा बनाए हुए हैं। संस्कृत भाषा का जनक महर्षि पाणिनी थे. माना जाता है भारत में पुरात्व में संस्कृत ही बोलचाल की भाषा हुआ करती थी. फिर धीरे-धीरे इसी भाषा से निकली हिंदी भाषा ने अपनी जगह कब बना ली किसी को पता भी नहीं चला।

भारत में संस्कृत बोलने वाले प्रमुख गांव (Major Sanskrit Speaking Villages In India List In Hindi)

1. मत्तूर (कर्नाटक)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मत्तूर गांव, जो कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित है, संस्कृत भाषा के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यहाँ लगभग सभी निवासी संस्कृत में बातचीत करते हैं। कहा जाता है कि 16वीं सदी में राजा कृष्ण देव राय ने होसा हल्ली और मट्टूर को संस्कृत को समृद्ध बनाए रखने और इसके प्रचार, प्रसार का केंद्र बनाया था। मत्तुर का पूरा गाँव एक वर्ग के रूप में बनाया गया है। यहाँ एक केंद्रीय मंदिर और एक पाठशाला है जहाँ पारंपरिक तरीके से वेदों का पाठ किया और पढ़ाया जाता है। यहाँ पर शिक्षक गाँव के बुजुर्ग है जिनकी निगरानी में छात्र अपने पांच वर्षीय पाठ्यक्रम में संस्कृत और वेदों की शिक्षा लेते हैं।

इस पाठशाला में छात्र पुराने ताड़ के पत्तों पर लिखे हुए संस्कृत लेखों से कंप्यूटर पर इस स्क्रिप्ट को लिखते हैं और सभी व्यक्तियों के लिए पब्लिश किया जाता है ताकी सभी लोग इसका लाभ ले सकें। यहाँ विदेश के कई छात्र भी रहते हैं जो भाषा सीखने के लिए पाठशाला में क्रैश कोर्स कर रहे होते हैं।

2. होस्केरे (कर्नाटक)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मत्तूर के पास स्थित होस्केरे गाँव भी संस्कृत बोलने के लिए प्रसिद्ध है। इन दोनों गाँवों में संस्कृत को दैनिक जीवन में पूरी तरह से अपनाया गया है। इस गांव के स्कूल में करीब 5 हजार लोगों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है। इनका उद्देश्य है इस अनमोल भाषा को खत्म होने से बचाना।

3. झिरी (मध्य प्रदेश)

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मध्य प्रदेश के झिरी गाँव के निवासी भी संस्कृत को प्राथमिक भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। यहाँ के स्कूलों और धार्मिक अनुष्ठानों में संस्कृत भाषा का प्रमुखता से उपयोग होता है। गांव के लोगों के लिए संस्कृत प्राइमरी लैंग्वेज है। स्कूलों में बच्चों को संस्कृत मीडियम में पढ़ाया जाता है। 976 आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं, किसान और मजदूर भी एक-दूसरे से संस्कृत में बात करते हैं। यहां संस्कृत सिखाने की शुरुआत 2002 में विमला तिवारी नाम की समाज सेविका ने की।

धीरे-धीरे गांव के लोगों में दुनिया की प्राचीन भाषा के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है। आपको जानकर हैरत होगी कि झिरी गांव के घरों के नाम भी संस्कृत में हैं। कई घरों के बाहर संस्कृत ग्राहम लिखा हुआ है।

4. गंजाम (ओडिशा)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ओडिशा का गंजाम गाँव संस्कृत भाषा के प्रति अपने समर्पण के लिए जाना जाता है।

5. बागुर (राजस्थान)

राजस्थान का बागुर गाँव भी उन स्थलों में से एक है जहाँ संस्कृत को संरक्षित रखा गया है।

6. सासन (ओडिशा)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ओडिशा के गुर्दा जिले में स्थित सासन संस्कृत गीतकार जयदेव का जन्म स्थल है. इस गांव में भी लोगों की मुख्य भाषा संस्कृत है और हर घर का व्यक्ति इसी भाषा में बातचीत करता है. इस गांव की आबादी कुछ 300 के आसपास है। इनमें से ज्यादातर ब्राह्मण हैं। यहां भी संस्कृत सीखना एक परंपरा है। ऐसी लोकप्रिय परंपरा, जिसका असर पड़ोस के गांव पर भी है। जहां कवि कालीदास के नाम पर एक मंदिर है।

7. बघुवार (मध्य प्रदेश)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में स्थित बघुवार में आज भी एक-दूसरे से संस्कृत भाषा में ही बातचीत होती है। कभी आप जाएंगे तो यहां हर व्यक्ति आपको संस्कृत में बात करता हुआ मिल जाएगा।

क्यों संस्कृत यहाँ बोली जाती है?

इन गाँवों में संस्कृत भाषा का संरक्षण और उपयोग कई कारणों से होता है:

संस्कृत की धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें: संस्कृत भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों की भाषा है। यह गाँव अक्सर धार्मिक गतिविधियों और वेदों के अध्ययन के केंद्र रहे हैं।

पारंपरिक शिक्षा: इन गाँवों में पारंपरिक गुरुकुल प्रणाली को संरक्षित किया गया है, जिसमें बच्चों को संस्कृत में शिक्षा दी जाती है।

भक्ति और आध्यात्मिकता: गाँवों में संस्कृत भाषा का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और भक्ति गतिविधियों में किया जाता है।

सरकारी और निजी प्रयास: भारत सरकार और कुछ निजी संगठनों द्वारा इन गाँवों में संस्कृत को प्रोत्साहित किया गया है।

वर्तमान में प्रभाव कम क्यों है?

आधुनिक शिक्षा प्रणाली: आज की शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं का महत्व बढ़ गया है, जिससे संस्कृत का प्रभाव सीमित हो गया है।

प्रवासन: गाँवों से शहरी क्षेत्रों में प्रवासन के कारण स्थानीय परंपराएँ और भाषाएँ कमजोर हो रही हैं।

वैश्वीकरण: वैश्वीकरण के कारण युवा पीढ़ी का रुझान आधुनिक भाषाओं और तकनीकी ज्ञान की ओर बढ़ रहा है।

संस्कृत के प्रति जागरूकता की कमी: संस्कृत के प्रति समाज में जागरूकता की कमी ने भी इसके उपयोग को सीमित किया है।

इन गाँवों के संरक्षण के प्रयास

शिक्षा और प्रशिक्षण: गुरुकुल प्रणाली और संस्कृत विद्यालयों के माध्यम से इस भाषा को जीवित रखा जा रहा है।

सरकारी योजनाएँ: भारत सरकार ने संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।

संस्कृत भारती जैसे संगठन: ये संगठन संस्कृत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन: इन गाँवों में धार्मिक आयोजन और संस्कृत प्रतियोगिताओं के माध्यम से भाषा को बढ़ावा दिया जाता है।

भारत के ये गाँव संस्कृत भाषा की समृद्ध धरोहर को जीवित रखने का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हालाँकि, आधुनिक युग में इसके प्रभाव में कमी आई है, लेकिन सरकारी और सामाजिक प्रयासों के माध्यम से इसे पुनर्जीवित किया जा सकता है। इन गाँवों की परंपराएँ और संस्कृत भाषा की उपस्थिति न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं, बल्कि विश्वभर में भारतीयता के प्रतिनिधि भी हैं।

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