अंग्रेज़ों ने बनाया था भारत का यह स्टेशन, आज नहीं रूकती है कोई भी ट्रेन, यहाँ से पैदल जा सकते हैं दूसरे देश

Last station of India: सिंहाबाद नमक ये स्टेशन बांग्लादेश की सीमा से सटा भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन कहलाता है। जिसका अब इस्तेमाल मालगाडियों के ट्रांजिट के लिए ही किया जाता है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2022-07-05 12:06 IST

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Last station of India: क्या आप जानते हैं कि भारत का आखरी रेलवे स्टेशन कहाँ है ? और क्या है उससे जुडी रोचक जानकारियां। बता दें कि पूरे भारत में लगभग 7083 रेलवे स्टेशन मौजूद हैं। इनमें से कुछ रेलवे स्टेशन की अपनी अलग रोचक कहानियां है। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं भारत के आखिरी स्टेशन की। देश के इस आखिरी स्टेशन का नाम सिंहाबाद है। जी हाँ ये स्टेशन अंग्रेजों के ज़माने का है। और ख़ास बात यह है कि आज भी यहाँ कुछ नहीं बदला यानी सब कुछ वैसा ही है, जैसा अंग्रेज छोड़कर गए थे।

कहाँ है ये रेलवे स्टेशन ?

सिंहाबाद नमक ये स्टेशन बांग्लादेश की सीमा से सटा भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन कहलाता है। जिसका अब इस्तेमाल मालगाडियों के ट्रांजिट के लिए ही किया जाता है। बता दें कि ये स्टेशन पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में स्थित है। आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है कि सिंहाबाद स्टेशन से लोग बांग्लादेश पैदल घूमते हुए चले जाते हैं क्योंकि यहाँ से बांग्लादेश महज़ कुछ किमी दूरी पर स्थित है।

गौरतलब है कि सिंहाबाद के बाद भारत का कोई और अन्य रेलवे स्टेशन नहीं है। उल्लेखनीय है कि यह स्टेशन वास्तव में बेहद छोटा रेलवे स्टेशन है, जहां कोई भी चहल-पहल नहीं दिखाई नहीं देती।


अंग्रेज़ो के जाने के बाद से ही वीरान पड़ा था ये स्टेशन

बता दें कि काफी लंबे अर्से तक इस स्टेशन पर किसी भी प्रकार का कोई भी काम बंद था। देश की आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच हुए बंटवारे के बाद से ही यह स्टेशन पूरी तरह से वीरान हो गया था। लेकिन फिर साल 1978 में इस रूट पर मालगाड़ियों का आना शुरू हो हुआ। उल्लेखनीय है कि ये मालगाड़ियां भारत से बांग्लादेश आती-जाती थीं। इसके बाद काफी वर्षों बाद नवंबर 2011 में पुराने समझौते में संशोधन कर नेपाल को इसमें शामिल किया गया।

गौरतलब है कि उसके बाद सिंहाबाद से नेपाल जाने वाली ट्रेनें भी गुजरना शुरू हो गयीं। गौरतलब है कि नेपाल का बड़े पैमाने पर खाद्य निर्यात बांग्लादेश से ही होता है। इसलिए इन्हें लेकर जाने वाली मालगाड़ियों की खेप रोहनपुर -सिंहाबाद ट्रंजिट प्वाइंट से ही निकलती है। आपको बता दें कि रोहनपुर बांग्लादेश का पहला रेलवे स्टेशन है।

गांधी और सुभाष चंद बोस भी गुजरे इस रूट से

अगर सिंहाबाद की ऐतिहासिकता को देखें तो पहले ये स्टेशन कोलकाता से ढाका के बीच ट्रेन संपर्क के लिए इस्तेमाल होता था। चूंकि यह स्टेशन आजादी से पहले ही मौजूद था तो इसलिए इस रूट का इस्तेमाल कई बार राट्रापिता महात्मा गांधी और देशभक्त सुभाष चंद बोस ने ढाका जाने के लिए भी किया ही था । इसके अलावा बहुत पहले यहाँ से दार्जिलिंग मेल जैसी ट्रेनें भी गुजरा करती थीं, पर अब इस स्टेशन से सिर्फ मालगाडियां ही गुजरती हैं। 


आज भी यहाँ सबकुछ है अंग्रेजों के जमाने का :

यह स्टेशन भारत का भले ही आखरी रेलवे स्टेशन हो लेकिन आज़ादी के बाद से ही यहां किसी प्रकार का कोई विकास नहीं हुआ है। एक बारगी इस स्टेशन को देखने से अजीब सा महसूस होता है क्योंकि यहाँ आज भी सबकुछ वैसा ही है जैसा अंग्रेज छोड़ कर गए थे। बिलकुल भी कोई तरक्की या बदलाव यहाँ बिलकुल नहीं हुए हैं। आपको यकीं नहीं होगा कि आज तक यहां के सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े सभी उपकरण अंग्रेजो के ही ज़माने के हैं। इतना ही नहीं यहां अब भी वो कार्डबोड के टिकट रखे हुए हैं, जो शायद ही अब कहीं देखने को मिले। इसके अलावा यहां पर स्टेशन में रखा हुआ टेलिफोन भी इस स्टेशन की खस्ता हाल की कहानी बताता है । हद तो इसकी है कि यहाँ सिग्रलों के लिए भी हाथ के गियरों का ही इस्तेमाल किया जाता है। गौरतलब है कि इस स्टेशन में सिर्फ नाम मात्र के कर्मचारी मौजूद हैं।

सिर्फ बांग्लादेश जाने वाली ट्रेंने ही यहाँ सिग्नल का करती हैं इंतजार

हालांकि अभी तक इस स्टेशन पर कोई भी यात्री ट्रेन नहीं रूकती है । जिसके कारण यहाँ के टिकट काउंटर बंद कर दिए गए है। बता दें कि यहाँ केवल मालगाड़ी ही रूकती हैं, जिन्हें रोहनपुर के रास्ते बांग्लादेश जाना होता है। यहां ये गाडियां रूककर सिर्फ सिग्नल का ही इंतजार करती हैं।

कोई भी ट्रेन नहीं रूकती यहाँ , सिर्फ गुजरती है दो यात्री ट्रेनें

हालाँकि हर जगह की तरह यहाँ के भी रहने वाले लोग चाहते है कि सिंहाबाद में उनके लिए भी ट्रेन की सुविधा शुरू हो। जिसके फलस्वरूप समय-समय पर इसकी मांग उठाई भी जाती रही है। बता दें कि यहां से दो ट्रेनें मैत्री एक्सप्रेस और मैत्री एक्सप्रेस-1 गुजरती भी हैं। लेकिन रूकती नहीं हैं। गौरतलब है कि साल 2008 में कोलकाता से ढाका जाने के लिए 375 किमी का सफर तय करने वाली मैत्री एक्सप्रेस शुरूआत हुई थी। वहीं दूसरी ट्रेन भी कोलकाता से बांग्लादेश के एक शहर तक खुलने तक जाती है। इतने वर्षों बाद जर्जर हो चुकी यहाँ स्टेशन की हालत और नज़रअंदाज़ी का दंश झेल रहे इस रेलवे स्टेशन के लोगों को आज भी यहां से यात्री ट्रेनों के शुरू होने का इंतजार है। आज भी यहाँ के स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि उन्हें कभी न कभी कोई ट्रेन यहाँ रुकेगी तो उन्हें भी अपनी जगह से ट्रेन में चढ़ने का मौका मिलेगा।

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