Rajasthan Ka Famous Mandir: जाने राजस्थान का चमत्कारी मंदिर सवारिया सेठ का रहस्य
Rajasthan Shri Sanwariya Seth Temple: राजस्थान का सांवलिया सेठ मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। चलिए आज आपको इसके बारे में सारी जानकारी देते हैं।
Rajasthan Shri Sanwariya Seth Temple: सांवलिया सेठ मंदिर, जिसे श्री सांवलियाजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के राजस्थान राज्य के चित्तौड़गढ़ शहर में स्थित एक अत्यंत प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है, विशेष रूप से सांवलिया सेठ के रूप में, जिसका हिंदी में अनुवाद "डार्क लॉर्ड" होता है। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से 41 किमी और डबोक हवाई अड्डे से 65 किमी की दूरी पर है। प्रसिद्ध सांवलिया सेठ मंदिर अपनी सुंदरता और विशिष्टता के कारण हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। मंडफिया मंदिर को कृष्ण धाम के नाम से जाना जाता है।
मंडफिया मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के अंतर्गत आता है। समय के साथ सांवलिया सेठ मंदिर की प्रसिद्धि इतनी फैल गई कि उनके भक्तों ने वेतन से लेकर व्यवसाय तक में उन्हें अपना भागीदार बना लिया। ऐसा माना जाता है कि भक्त जितना धन राजकोष में देते हैं, सांवलिया सेठ उससे कई गुना अधिक धन भक्तों को वापस लौटाते हैं। बिजनेस जगत में उनकी प्रसिद्धि इतनी है कि लोग अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।
सांवलिया सेठ का चमत्कार
हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री सांवलिया सेठ का रिश्ता राजस्थान की मीरा बाई से है। माना जाता है कि श्री सांवलिया सेठ माँ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह प्रतिदिन पूजा करती थीं। उस समय मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ साधु-महात्माओं की टोली में घूमा करती थीं। दयाराम नामक संतों का एक ऐसा समूह था जिसके पास ये मूर्तियाँ थीं। ऐसा कहा जाता है कि जिस दौरान औरंगजेब की आर्मी देश के विभिन्न मंदिरों को तोड़ रही थी तो सेना को मेवाड़ पहुंचकर इन मूर्तियों के बारे में पता चल गया था।
मुगलों के हाथ पड़ने से पहले ही संत दयाराम ने भगवान की प्रेरणा से बागुंड-भादसौदा क्षेत्र में एक बरगद के पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर इन मूर्तियों को रख दिया। किवदंतियों के अनुसार बाद में वर्ष 1840 में मंडफिया गांव निवासी भोलाराम गुर्जर नामक चरवाहे को स्वप्न आया कि भादसोड़ा-बागुंड गांव की सीमा के छापर में भगवान की तीन मूर्तियां जमीन में दबी हुई हैं। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो सपना सच हो गया और वहां से तीन एक जैसी मूर्तियां निकलीं। सभी मूर्तियाँ बहुत सुन्दर थीं। कुछ ही देर में यह खबर हर तरफ फैल गई और आसपास के लोग मौके पर जुटने लगे।
'जितना अधिक चढ़ावा, उतना अधिक खजाना'
भगवान् श्री सांवलिया सेठ के बारे में ऐसी मान्यता है कि वे यहां आप जितना अधिक चढ़ावा चढ़ाएंगे, आपको सांवलिया सेठ की तरफ से उतना ही उनका खजाना भर देंगे। कई लोगों ने अपनी खेती, व्यापार और वेतन में सांवलिया सेठ का हिस्सा रखा है। ऐसे लोग हर महीने मंदिर में आते हैं और अपने हिस्से की रकम दान करते हैं। यह रकम 2 से 20 फीसदी तक होती है।
'हर माह में एक बार खुलता है भंडारा'
श्री सांवलिया जी मंदिर का भंडारा या दान पेटी महीने में एक बार खोली जाती है। यह चतुर्दशी को खुलता है और उसके बाद अमावस्या मेला शुरू होता है। इसे डेढ़ महीने बाद होली पर और दो महीने बाद दिवाली पर खोला जाता है। सांवलिया सेठ मंदिर में कई एनआरआई श्रद्धालु भी आते हैं। वे विदेश में अर्जित आय में से सांवलिया सेठ को हिस्सा देने की पेशकश करते हैं। इसलिए भंडारा से डॉलर, अमेरिकी डॉलर, पाउंड, दीनार, रियल आदि के साथ कई देशों की मुद्रा निकलती है।