Silk Route: 2 सौ साल पुराना ये मार्ग, अधूरा ही रहा इसका सफर

हज़ारों साल पहले धरती के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को आपस में मिलाने का एक ऐसा रास्ता बना था, रेशम मार्ग या सिल्क रूट।

Update: 2021-04-06 06:22 GMT

सोशल मीडिया से फोटो

जयपुर :  सृष्टि  की शुरूआत के बाद से ही मनुष्य अपनी जरुरतों के हिसाब से आविष्कार करता जा रहा है। सबसे पहले आग का आविष्कार, फिर ना जाने कितने अनगिनत चीजों को खोज निकाला । इसी क्रम वह सफर करता है और इस सफर को सुगम बनाने के लिए  उसने सड़क, गाड़ी का आविष्कार भी किया। मनुष्य ने अपनी जरूरतों के लिए हजारों मील का सफर तय करता रहा है। कभी वह व्यापार के लिए यात्राएं किया तो कभी स्थायी निवास खोजने व बेहतर जीवन की तलाश में।

पुराने समय में यात्रा के लिए पासपोर्ट और वीजा की जगह हौसले की जरूरत होती थी। कच्चे पक्के रास्ते, मौसम की अनिश्चितता,जंगली जानवरों और लुटेरों के खौफ का सामना करना पड़ता था। उस ऐसा ही एक मार्ग हुआ करता था रेशम मार्ग या सिल्क रूट, जो दुनिया को जोड़ रखा था।

रेशम मार्ग या सिल्क रूट

यह मार्ग ईसा से लगभग 2 सौ साल पहले से ईसा की दूसरी सदी तक बहुत फला फूला। उस समय चीन के हान वंश का शासन हुआ करता था। चीन से मध्य एशिया होते हुए यूरोप से यह मार्ग अफ्रिका तक जुडा हुआ था। हज़ारों साल पहले धरती के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को आपस में मिलाने का एक ऐसा रास्ता बना था जिसने शुरुआत तो कारोबार से की ,लेकिन आगे चल संसार में कई देशों के बनने और मिटने का जरिया भी बना।




कई संस्कृतियां पनपी

यह वह दौर था जब दुनिया में पहली बार चीन में रेशम का चलन शुरू हुआ था,तो चीन से व्यापारी रेशम को इस मार्ग से दुनिया के दूसरे कोनो तक पहुंचाने लगे। लगभग साढ़े छह हजार किलोमीटर में फैले हुए इस मार्ग के किनारे-किनारे कई संस्कृतियां विकसित हुईं तो कभी कभी इस रास्ते से लुटेरों के हमले भी हुए।

भारत भी जुड़ा था सिल्क रुट से

रेशम मार्ग से भारत भी जुड़ा हुआ था। भारत के ताम्रलिप्ती,लेह,जैसलमेर,मथुरा,बनारस जैसे शहर सिल्क रोड से जुड़े हुए थे।भारत से कालीमिर्च,हाथीदांत,कपडों का व्यापार होता था तो दूसरे देशों से सोना,चांदी,शराब चाय, भारत तक पहुंचती थी। ठंडे रेगिस्तान में फैले हुए इस मार्ग का सफर लोग उस वक्त ऊंटों या घोड़ों की सहायता से तय किया जाता था। ईरान,तुर्की,उज्बेकिस्तान,तजाकिस्तान,अफगानिस्तान,मंगोलिया,पाकिस्तान,भारत,बांग्लादेश, मिश्र,सीरिया जैसे देश इस मार्ग से जुडे हुए थे।




 इस मार्ग का सफर रहा अधूरा

 इस मार्ग पर बहुत कम व्यापारी थे जिन्होने पूरा रास्ता तय किया हो, वे अपना सामान दूसरे व्यापारियों को बेच देते और उनसे जरूरत का सामान खरीद लिया करते थे। मार्कोपोलो ने इसी रास्ते से सफर किया था। कहा जाता है चाय,चीनी और रेशम ही इस मार्ग से होते हुए दुनिया में नहीं फैला, बल्कि प्लेग जैसी महामारी भी इसी रेशम मार्ग से दुनिया में फैली।

एक देश या सरकार ने नहीं बनाया सिल्क रूट


चीन एक बार फिर अपने इस मार्ग को विकसित करने में लगा है।पुराने सिल्क रूट को ये नाम चीन के कारोबारियों से मिला था। तब ख़ास तरीके से बनाए अपने रेशम को बाक़ी दुनिया तक पहुंचाने के लिए चीन ने बड़ी मेहनत की थी। कहते हैं कि चीन की दीवार भी इन कारोबारियों की रक्षा के लिए ही बनी थी। समय के साथ इसका विस्तार कई दिशाओं में हुआ। ध्यान रखने की बात है कि इसे किसी एक देश या सरकार ने नहीं बनाया था।





पुराने सिल्क रूट में देशों की भौगोलिक सीमाएं बहुत निश्चित नहीं थीं, कबायली और घुमंतू इलाक़ों से होकर जो आज कजाक़िस्तान है, तुर्कमेनिस्तान है उससे होकर निकलता था, ईरान की ऊपरी सतह को छूता और अफ़गानिस्तान के पांव पखारता यह गुजरता था। बहुत सा हिस्सा तो ऐसा था जिस पर कोई आबादी ही नहीं थी। मनुष्य की चाहत नए नए मार्गों की तलाश और दुनिया के हर छोटे बड़े बाज़ार तक पहुंचने की उसकी अभिलाषा ही सिल्क रूट निर्माण की वजह  है।

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