Uttarakhand Ka Ram Mandir: अयोध्या और केरल के साथ उत्तराखंड में भी श्री राम की निशानी

Uttarakhand Ka Famous Ram Mandir: देवप्रयाग संगम के साथ रामायण से भी दुड़ा हुआ है। कैसे ये आर्टिकल को पूरा पढ़कर जानिए...

Written By :  Yachana Jaiswal
Update:2024-04-14 15:29 IST

Uttarakhand Ka Famous Ram Mandir 

Uttarakhand Ka Famous Ram Mandir: देवभूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड जहां एक ओर पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। वहीं दूसरी ओर अध्यात्म की दृष्टि से भी विश्व प्रसिद्ध है। यहां पंच प्रयाग देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग पंच प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये प्रमुख नदियों के संगम पर स्थित हैं। भारत में नदियों के संगम को बहुत पवित्र माना जाता है, खासकर इसलिए क्योंकि नदियों को देवी का रूप माना जाता है। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इस संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है।

समुद्र तल से 1500 फीट ऊंचाई पर है देवप्रयाग

यह समुद्र तल से 1500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ऋषिकेश से देवप्रयाग की सड़क दूरी 70 किलोमीटर है। गढ़वाल क्षेत्र में भागीरथी नदी को सास और अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। आपको बता दें कि भागीरथी के शोरगुल वाले आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर ही इन्हें सास-बहू का नाम मिला है। वैसे इन नदियों के उद्गम की बात करें तो देवप्रयाग भागीरथी नदी गंगोत्री पहाड़ी से हुआ है। वहीं अलकनंदा नदी सातुपन ग्लेशियर से हुआ है। इन दोनों नदियों के मिलन के क्षेत्र देवप्रयाग में शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर है, जो यहां के मुख्य आकर्षण हैं।


भगवान राम के पदचिह्न की खोज

यह सुंदर ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर ऋषिकेश से 73 किमी दूर स्थित है। रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर एक शांतिपूर्ण पवित्र स्थल है। जो भगवान राम को समर्पित है। आपको जानकर हैरानी होगी की केरल और अयोध्या के साथ भगवान राम को होने का असतित्व ये जगह भी बताती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर भगवान राम के पद्चिन्ह है। जो लोगों के आस्था के लिए जाने जाते है। देवप्रयाग संगम के पास राम भक्त प्रभु श्रीराम के पद्चिन्ह के भी दर्शन कर सकते है।


रामायण में देवप्रयाग की भूमिका पर एक नजर

आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में देवप्रयाग में स्थित रघुनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। बाद में गढ़वाल साम्राज्य द्वारा सका विस्तार किया गया है। यह मंदिर ऊपर की ओर अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है जो पवित्र गंगा नदी की शुरुआत का प्रतीक है। रघुनाथजी, भगवान राम के रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रावण को हराने के बाद लगे श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने यहां तपस्या की थी।

पद्चिन्ह का यहां मिलेगा दर्शन

संगम के विपरीत दिशा में रामकुंड स्नान घाट है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने ब्राहम्ण हत्या से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर तप करते थे। और अभी भी यहां पर राम जी के पैरों के निशान दिखते है। जो वहां के स्थानीय लोगों के बारे में कोई नहीं जानता होगा।


रघुनाथ मंदिर की किंवदंतियां

मंदिर की कथा श्री राम के जीवन से लेकर रामायण काल तक जुड़ी हुई है। भगवान राम ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए यहां वर्तमान मंदिर में तपस्या की थी। उनका क्षेत्र प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध है जो तपस्या के लिए सर्वोच्च स्थान का प्रतीक है। माना जाता है कि यहा पर स्थित वटका वृक्ष सभी आपदाओं का सामना कर सकता है। यह पेड़ सहनशक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा है, और कहा जाता है कि इसकी पत्तियों में भगवान विष्णु का वास है।

देवप्रयाग इतिहास और पौराणिक कथाओं से समृद्ध हैं। आप यहां पर नदियों के संगम के साक्षी बनें, मंदिर की शांति का अनुभव कर सकते है। उन प्राचीन कहानियों से जुड़ें जो इसकी दीवारों से गूंजती हैं। रघुनाथ मंदिर और प्रभु के पद्चिन्ह देवप्रयाग आपके आध्यात्मिकता, इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता की यात्रा के लिए एक अवश्य देखने योग्य गंतव्य बनाता है।

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