British era church in Lucknow : लखनऊ में है अंग्रेजों के जमाने का चर्च, यहां जानें इसका इतिहास

British era church in Lucknow : भारत में एक नहीं बल्कि अनगिनत चर्च मौजूद है जो अपने-अपने इतिहास और खासियतों के चलते पहचाने जाते हैं। चलिए आज आपको लखनऊ के चर्च की जानकारी देते हैं।

Update:2023-12-24 13:30 IST

British era church in Lucknow (Photos - Social Media)

British era church in Lucknow : क्रिसमस का त्योहार जल्दी आने वाला है और हर कोई इस दिन को धूमधाम से मनाने की तैयारी में जुटा हुआ है। यह ईसाई धर्म का प्रमुख त्यौहार है और इसे मनाने के लिए चर्च को विशेष तौर पर सजाया जाता है और लोग अपने घरों में भी सजावट करते हैं। क्रिसमस का नजारा हर कहीं पर देखने लायक होता है। भारत में कई पुराने और ऐतिहासिक चर्च मौजूद है जो अपनी खासियतों के चलते पहचाने जाते हैं। आज हम आपको लखनऊ के एक चर्च के इतिहास के बारे में बताते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस अंग्रेजों ने बनाया था। सबसे खास बात यह है कि यह नाव के आकार का बना हुआ है और इसे 1860 में तैयार किया गया था। तो चलिए इसकी पूरी जानकारी आपको देते हैं।

क्यों बना चर्च

1857 की क्रांति से पहले यहां पर तीन चर्च हुआ करते थे लेकिन यह युद्ध में नष्ट हो चुके थे। अंग्रेजों के पास प्रार्थना करने के लिए कोई जगह नहीं बची थी इसलिए उन्होंने नए चर्च की स्थापना का निर्णय लिया और फिर इस चर्च का निर्माण किया गया। ईसाइयों ने 2 साल तक नियमित प्रार्थना की और फिर रॉयल इंजीनियर समूह ने इसके डिजाइन को तैयार किया। उसे समय इस चर्च को अंग्रेजों का शहर स्मारक के नाम से पहचाना जाता था। जब आप यहां जाएंगे तो आपको आज भी यहां पर अंग्रेज अफसर के नाम उनके जन्मदिन, सेवाएं, मृत्यु की तारीख लिखी हुई देखने को मिलेगी जो 1857 की क्रांति में मारे गए थे।

कैथेड्रल चर्च


प्रसिद्ध है कैथेड्रल चर्च

बता दे की शहर का पहला चर्च डालीगंज में बना था लेकिन जब वहां जगह कम पड़ने लगी तो 1807 में हजरतगंज की जमीन ली गई। कुछ समय यहां पर छोटे रूप में चर्च को चलाया गया लेकिन 1987 में इसे नया रूप देकर बड़ा बनाया गया।

नाव के आकार का है चर्च

इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह नाव के आकार का बना हुआ है जो भारत और इटालियन आर्किटेक्ट की सोच का बेहतरीन नमूना है। नाव के आकार में चर्च को बनाने के पीछे इसका स्वर्ग से जुड़ा हुआ कारण है। यहां का लोगों को संदेश देता है और बताता है की नाव में बैठकर ईश्वर का रास्ता तय किया जाएगा। यह नाव हमें स्वर्ग तक लेकर जाएगी।

नाव के आकार का है चर्च


सामाजिक कार्यों में भूमिका

यह चर्च सामाजिक कार्यों में अपनी भूमिका निभाने का काम भी। गरीब बच्चों के स्कूल फीस को माफ करवाना हो या फिर अनाथालय में सेवा देना यहां पर सब कुछ किया जाता है। क्रिसमस के मौके पर यहां जो रौनक देखने को मिलती है वह किसी की भी आंखों में बस सकती है। क्रिसमस पर रिहाना सिर्फ ईसाई धर्म बल्कि हर जाति और मजहब का व्यक्ति दिखाई देता है। क्रिसमस से शुरू हुआ यह जश्न नए साल तक चलता रहता है।

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