वाराणसीः ‘बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ’ पीएम मोदी के इस नारे ने देश भर में महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव किया है और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए हिम्मत दी है। पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की ड्रेस डिजाइनर शिप्रा सांडिल्य ने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाया है। शिप्रा नरूत्तमपुर गांव की महिलाओं के हाथ से बनी जप मालाओं को विदेशों में एक्सपोर्ट करती हैं। महिलाएं अपनी मेहनत और परिश्रम से इन जप मालाओं को नया और खास रूप देती हैं। देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इन डिज़ाइनर जप मालाओं की पहचान है। इन जप मालाओं के कायल फेसबुक के मालिक मार्क जुगरबर्ग से लेकर एप्पल कंपनी के फाउंडर स्व. स्टीव जॉब्स भी रहे हैं।
जप मालाओं को लुप्त होने से बचाना है मकसद
बनारस की शिप्रा सांडिल्य जागरूक होने के साथ साथ आत्मनिर्भर भी हैं। वैसे तो पेशे से शिप्रा एक ड्रेस डिज़ाइनर हैं। बीते कुछ दिनों से शिप्रा बनारस की पहचान माने जाने वाले जप मालाओं को बेहतर और आकर्षक रूप देने में लगी हैं ताकि पहचान खोते इन मालाओं को भारतीय कला और संस्कृति के तौर पर विदेशों में इनकी मांग को बढ़ाया जा सके। इनमें कई किस्म की मालाएं हैं, जो बेहद दुर्लभ और बेशकीमती हैं। तुलसी से लेकर काले रुद्राक्ष की माला को और भी आकर्षक रूप देने के पीछे का मकसद इन्हें लुप्त होने से बचाना है।
ग्रामीण महिलाओं को मिला रोजगार
शिप्रा का मकसद तब और भी नेक हो जाता है जब वे अपने इस मुहीम में गांव की महिलाओं को जोड़ रही हैं। शिप्रा लुप्त होती मालाओं के व्यापार के साथ-साथ महिलाओं को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं। वह अपने इस मुहीम में शहर की पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी जोड़ सकती थी मगर इन्होंने ऐसा न करते हुए गांव की तरफ रुख किया ताकि गांव की महिलाओं को समय के साथ ढाल कर उन्हें स्वावलंबी बनाते हुए रोज़गार मुहैया कराया जा सके।
बनाई वेबसाइट
शिप्रा ने इसी कड़ी में माला इंडिया.com नाम की वेबसाइट बनाई है और इसी के माध्यम से मॉडर्न जप मालाओं को वे देश विदेश तक पहुंचा रही है। इस मुहीम में शिप्रा के कई मददगार भी है जिनमें उनके गुरु विश्वप्रसिद्ध नीम करोली बाबा का नाम सबसे ऊपर है। नीम करोली बाबा के बड़े और प्रसिद्ध चेलों में फेसबुक के फाउंडर मार्क ज़ुकरबर्ग और एप्पल कंपनी के फाउंडर स्व. स्टीव जॉब्स शुमार हैं। इन्होंने इन जप मालाओं में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी।
आत्मनिर्भर होती ग्रामीण महिलाएं
शिप्रा की पहल ने गांव की इन महिलाओं को सशक्त तो बनाया ही साथ ही रोज़गार मुहैया करवा कर इन महिलाओं के परिवार में इनके मान और सम्मान को भी बढ़ावा दिलाने में मदद की। आम तौर पर महिलाएं फूलों की खेती करती है और उसके बाद जो वक़्त बचता है उसमें माला गूथंने के काम में लग जाती हैं। इनकी मेहनत और परिश्रम से अब ये भी अपना परिवार चलाने में समर्थ हो गई हैं। गांव की महिलाएं रोज़गार मिलने से और भी मजबूत और सशक्त हो गई हैं। परिवार में बराबरी की भागीदारी कर ये महिलाएं बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रही हैं। समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने में जुटी शिप्रा भी महिला सशक्तिकरण की जीती जागती मिसाल हैं।