ये है PM मोदी की काशी का वो अस्पताल जहां खुद आती थीं इंदिरा गांधी, आज पड़ा है बीमार

ये अस्पताल प्रशासनिक और राजनीतिक दुर्व्यवस्था का शिकार हो कर खुद बीमार हो चुका है और अब ये खुद वेंटिलेटर पर अंतिम सांसे गिन रहा है।

Update: 2017-03-26 14:52 GMT
ये है मोदी की काशी का वो अस्पताल जहां खुद आती थीं इंदिरा गांधी, आज पड़ा है बीमार

वाराणसी: वैसे तो लोग अस्पताल में मरीजों का इलाज कराने आते हैं, लेकिन अगर अस्पताल बदहाली के चलते खुद ही बीमार हो जाए तो इसे आप क्या क्या कहेंगे। बात तब और बढ़ जाती है जब ये अस्पताल देश के पीएम के संसदीय क्षेत्र में स्थित हो। हम बात कर रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (काशी) के ऐसे अस्पताल की जो अव्यवस्थाओं और आर्थिक तंगी के चलते आज खुद बीमार पड़ा है।

खुद बीमार है यह अस्पताल

इस अस्पताल का उद्घाटन पूर्व प्रेसिडेंट डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था । उस समय में यह अस्पताल एम्स जैसी सुविधाएं देने के लिए प्रसिद्ध था। यहां अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में इंदिरा गांधी खुद आती थीं। काशी के अस्सी घाटों के बीच में गंगा किनारे रामघाट पर स्थित वल्लभ राम शालिग्राम मेहता अस्पताल जिसकी इमारत को देख कर ये कहा जा सकता है कि इस अस्पताल में मरीजों का बेहतरीन इलाज होता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि ये अस्पताल प्रशासनिक और राजनीतिक दुर्व्यवस्था का शिकार हो कर खुद बीमार हो चुका है और अब ये खुद वेंटिलेटर पर अंतिम सांसे गिन रहा है। काशी की सकरी गलियों के मायाजाल में रहने वाले लाखों लोगों को जीवनदान देने वाला ये इकलौता अस्पताल था जो आज पिछले दस सालों बंद पड़ा हुआ है।

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धूल फांक रही हैं मशीने

अस्पताल के मैनेजर रमेश तिवारी बतातें है कि इसका शिलान्यास साल 1954 में गवर्नर माणिकलाल कन्हैया लाल मुंशी द्वारा किया गया था और दस साल बाद ये अस्पताल 1964 में बन कर तैयार हुआ। इस अस्पताल में उस जमाने में आईसीयू, स्पाइनल सर्जरी यूनिट के अलावा आधुनिक ओटी एक्सरे और अल्ट्रासाउंड की मशीने मौजूद थीं, जो आज धूल फांक रही है।

बंद हो गई सरकार की तरफ से मिलने वाली आर्थिक सहायता राशि

यह अस्पताल 18 हजार स्क्वायर फीट एरिया में फैला है। 80 बेड के इस अस्पताल में अब यहां ओपीडी में महज आठ से दस मरीज आते हैं। इस अस्पताल की इंडोर सुविधा को 2009 में बंद कर दिया गया। जिसके चलते यहां डाक्टरों ने भी आना बंद कर दिया। अब ये अस्पताल बदहाली की मार झेल रहा है। हालांकि मैनेजर रमेश बतातें है कि लंबे समय तक इस अस्पताल के रख-रखाव के लिए राज्य सरकार की ओर से सन 1976 से 90 हजार रुपए सालाना मिला करता था जोकि पिछले दो साल से वो भी मिलना बंद हो गया। जिसके चलते इसकी हालत बद से बदतर हो चुकी है। स्टाफ बतातें है कि ये अस्पताल यूपी के पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के सहयोग से काफी सालों तक चलता रहा, लेकिन उनके जाने के बाद अस्पताल के बुरे दिन शुरू हो गए।

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संसाधनों की कमी के चलते कोई भी डॉक्टर यहां आना नहीं चाहता

इस अस्पताल को शहर के लोग रामघाट अस्पताल के नाम से भी जानते है। ये अस्पताल घाट के ठीक उपर बनावाया गया था। इसका मकसद था कि पक्के लोगों को तत्काल सुविधा मिल सके क्योंकि इमरजेंसी की हालत में इन गलियों से मरीजों को लेकर बाहर जाना बहुत दुर्गम काम था और कई बार मरीज गली में ही दम तोड़ देता था। घाट किनारे होने के नाते लोग नाव से मरीज को लेकर आसानी से इस अस्पताल में पहुंच जाते थे। ये अस्पताल चेरिटेबल संस्था द्वारा चलाया जाता था। लिहाजा लोगों को बेहद कम खर्च में उच्च स्तरीय सुविधा मिलती थी। जिसके चलते बिहार तक के मरीज यहां आते थे। इस अस्पताल में मुफ्त सेवा देने वाले तमाम बड़े डॉक्टर आज इसी शहर में बड़े-बड़े अस्पताल चला रहे हैं, लेकिन यहां अब संसाधनों की कमी के चलते कोई भी डॉक्टर यहां आना नहीं चाहते हैं।

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बीजेपी विधायक व मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी से उम्मीद

अस्पताल के पास में ही रहने वाले एक बुजुर्ग बतातें है कि ये अस्पताल कई लाख लोगों के लिए जीवन दान था, लेकिन अब ये खुद मर चुका है। उन्हें पहली बार इस विधानसभा से चुनाव लड़ कर जीतने वाले युवा विधायक व मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी से उम्मीद है कि वे इस अस्पताल को फिर से जीवित करेंगे।

ये अस्पताल जब अर्स पर था तो उस जमाने में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन के अलावा मोरारजी देसाई और काशी नरेश विभूति नारायन सिंह हमेशा इस अस्पताल में आया करते थे, लेकिन आज ये अस्पताल अपनी बदहाली पर रो रहा है।

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अस्पताल की खासियत

-गंगा किनारे पांच तल का भवन।

-पहला अस्पताल जहां सबसे पहले लिफ्ट की सुविधा शुरू हुई थी।

-ओपीडी के 35 कमरे और 100 बेड का वाॅर्ड।

-10 सेंट्रलाइज एयरकंडीशन रूम।

-सभी रोगों के विशेषज्ञ देते थे नि:शुल्क सेवा।

-ग्राउंड फ्लोर पर डॉक्टरों का आवास।

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