जयपुर:गणेश भगवान की मूर्ति घरों, अॉफिसों, गाड़ियों में जरूर पाई जाती हैं। गणेश भगवान की मूर्ति स्थापना में कुछ वास्तु नियमों का भी पालन करना चाहिए। वास्तुदोषों का निवारण खुद भगवान गणपति की पूजा से ही होता है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्माजी ने वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ही वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। इसमें वास्तु उपाय और नियम दोनों हैं। यह नियम मानव कल्याण के लिए हैं जिससे नकारत्मकता इंसान से कोसों दूर रहे। वास्तु की अनदेखी करने से घर के सदस्यों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है अत: वास्तु देवता की संतुष्टि के लिए भगवान गणेश को पूजना बेहतर है। श्री गणेश की आराधना के बिना वास्तु देवता को प्रसन्न नहीं किया जा सकता।
सुख, समृद्धि व प्रगति यदि घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो हो सके तो दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेशजी की प्रतिमा इस प्रकार लगाएं कि दोनों गणेशजी की पीठ मिलती रहे। इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा का चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है। घर के जिस भाग में वास्तु दोष हो, उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
दक्षिण व नैऋत्य कोण घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में गणशे जी की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं लेकिन फिर भी मूर्ति लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखें जिससे नकारात्मक न पड़े।
सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अच्छी रहती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।