नई दिल्ली : आज हम आपको बताएंगे जर्मनी की खुफिया एजेंसी बीएनडी के बारे में। बीएनडी दुनिया की इकलौती एजेंसी है जिसकी मदद दुनिया भर की सभी एजेंसी लेती हैं। इंटरनेट के जरिए ये दुनिया के किसी भी व्यक्ति संस्था और विभाग की जानकारी मिनटों में निकाल लेती है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिका भी ऐसी सेफ्टी शील्ड नहीं बना सकी जिसे बीएनडी भेद न सके।
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कैसे अस्तित्व में आई बीएनडी
2 सितंबर 1945 को दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। जर्मनी तबाह हो चुका था। उसे सहयोग और सहायता की जरुरत थी। हिटलर के पतन के बाद देश में न तो सेना बची और न ही स्थानीय सुरक्षा तंत्र। जर्मनी एक ऐसे देश के तौर पर उभर रहा था जहां कोई भी अपनी जड़ें आसानी से जमा सकता था। ऐसे में सेना को मजबूत करने का जिम्मा मेजर जनरल रेंहार्ड गेहलन ने उठाया। रेंहार्ड सेना के साथ ही एक ऐसी ख़ुफ़िया एजेंसी चाहते थे जो न सिर्फ दुश्मनों बल्कि पूरी दुनिया पर नजर रख सके।
आखिरकार 1956 रेंहार्ड का सपना पूरा हुआ और एक एजेंसी बनकर तैयार हुई जिसे नाम दिया गया बंडेस्नआर्किटेंडीस्ट (बीएनडी) इसे फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस भी कहा जाता है। बीएनडी का मुख्यालय म्यूनिख के पास पुलाच में है।
रेंहार्ड ने एजेंसी को बना ली। लेकिन इसके लिए पैसों और संसाधनों की जरुरत थी जिसे पूरा किया अमेरिका ने। वर्षों अमेरिकी और जर्मन एजेंसियों ने मिलकर काम किया।
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काम करने का तरीका
बीएनडी के 4000 जासूसों का नेटवर्क दुनिया भर में फैला है। ये चौबीस घंटे काम करते हैं। इनके साथ ही मुख्यालय में तैनात एजेंट्स हफ्ते में लाखों मेल देखते हैं की कहीं कोई दूर बैठा आतंकी साजिश तो नहीं रच रहा। ये एजेंट्स इन मेल को डिकोड करते हैं। काम के मेल अपने सर्वर में जमा करते हैं और बाकी के वापस कर देते हैं।
बीएनडी को मिली हैं खास शक्तियां
जर्मनी ने बीएनडी को संसद से अधिक शक्तियां दे रखी हैं। ये किसी को कभी भी उठा सकती है। सवाल जवाब कर सकती है। फिर चाहे वो कितनी बड़ी हस्ती ही क्यों न हो। देश के अंदर ये सभी नागरिकों के फोन और मेल टेप करती है। इसे ऐसा करने के लिए कानूनी शक्ति मिली है। अपने मिशन के लिए इन्हें सिर्फ अपने चीफ के निर्देश चाहिए होते हैं। बाकी की जवाबदेही चीफ की होती है। इनका चीफ ही सिर्फ एजेंट्स से मिल सकता है, किसी राजनेता को ये अधिकार नहीं है। इसका वार्षिक 43 करोड़ यूरो तक का होता है।
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इंटरनेट को बनाया सबसे बड़ी ताकत
आज के समय में इंटरनेट हर जगह मौजूद है। चाहे वो आतंकी हों या फिर दुश्मन देश के सैन्य संस्थान। इसीलिए बीएनडी ने अपने पास सैकड़ों हैकर को नौकरी पर रखा हुआ है। ताकि उसकी नजर से कुछ भी बच न सके।
ये तो रही कुंडली अब बात करते हैं बीएनडी के उन बड़े कांड के बारे में जिन्होंने दुनिया को हिला कर रख दिया
मोहम्मद बिन सलमान और बीएनडी
2016 के आरंभ में बीएनडी ने दुनिया को आगाह कर दिया था कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान देश में बड़े बदलाव का मन बना रहे हैं। और ऐसा बाद में देखने को भी मिला। बीएनडी के एजेंट्स को सऊदी प्रिंस के कई मेल हाथ लग गए थे। जिन्हें डिकोड करने के बाद उसे ये जानकारी मिली थी। जिसे उसने दुनिया के सामने रख दिया। यमन और सीरिया में युद्ध के बारे में भी इस एजेंसी ने पहले ही सऊदी हाथ खोज लिया था। लेकिन इसके बाद सऊदी अरब के विरोध जताने के बाद जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने एजेंसी को फटकार भी लगाई।
जर्मनी की मदद से मारा गया था लादेन
अल कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन को अमेरिका काफी समय से खोज रहा था। लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी। ऐसे में उसे मदद मिली बीएनडी से। इस एजेंसी ने लगभग एक महीने में ही पता लगा लिया था की ओसामा पाकिस्तान में है और पाकिस्तान सरकार उससे पूरी मदद दे रही है। पहले तो अमेरिका को इस पर भरोसा नहीं हुआ लेकिन जब पुख्ता सबूत उसके सामने रखा गया तो उसने ओसामा को मौत के घाट उतार दिया।
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कैसे पूरी हुई ओसामा की खोज
बीएनडी ने उत्तरी पाकिस्तान के करीब सभी फोन कॉल और इमेल को हैक किया। उन्हें डिकोड किया और उसे पता चल गया कि ओसामा रावलपिंडी में छुपा बैठा है। उसे पाकिस्तानी सेना का संरक्षण मिला है।
हेनरिक हिम्मलर की बेटी
हेनरिक हिम्मलर जर्मन तानाशाह हिटलर का सबसे खास अधिकारी था। उसने ही जर्मनी में हुए यहूदी नरसंहार की योजना बनाई थी। हिम्मलर ने 1945 में पुलिस हिरासत में आत्महत्या कर ली थी। इसी हेनरिक की बेटी गुडरुन बुरविट्ज को 1960 में बीएनडी में एक एजेंट के तौर पर नौकरी पर रखा गया।
88 साल की उम्र में जब गुडरुन की मौत हुई तो पता चला कि वो एक एजेंट थी।
इराक युद्ध
2003 के इराक युद्ध में जर्मन सेना ने हिस्सा नहीं लिया। लेकिन बीएनडी ने इसमें अमेरिका को सद्दाम हुसैन की हर एक योजना के बारे में पहले से ही बता दिया था।
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किसी को नहीं छोड़ा
यूरोप के सभी देशों के साथ ही अमेरिका और खाड़ी देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सभी बीएनडी के निशाने पर होते हैं। फ्रांस और अमेरिका ने अपने राष्ट्रपतियों के फोन और मेल टैपिंग के लिए कई बार विरोध भी जताया। लेकिन सभी को पता है जब तक दुनिया में इंटरनेट रहेगा बीएनडी टैपिंग करती रहेगी।