जगजीवन राम की 108वीं जयंती, मोदी ने ट्वीट कर दी श्रद्धांजलि

Update:2016-04-05 11:01 IST

लखनऊ: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की नीचे लिखी ये पंक्तियां शिखर पुरुष जगजीवन राम पर फिट बैठती है। 'तुल न सके धरती धन धाम, धन्य तुम्हारा पावन नाम, लेकर तुम सा लक्ष्य ललाम, सफल काम जगजीवन राम। वे भारतीय राजनीति में आजादी के बाद ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने अकेले केवल मंत्री के रूप में कई मंत्रालयों की चुनौतियों को स्वीकारा, साथ ही उन चुनौतियों को अंतिम अंजाम तक पहुंचाया। राजनीति के शिखर पुरुष रहे, जगजीवन राम को मंत्री के रूप में जो भी विभाग मिला, उन्होंने अपनी पूरी प्रशासनिक दक्षता से उसका सफल संचालन किया।

उनका ऐसा व्यक्तित्व था कि जो वो एक बार बार ठान लेते थे उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। उनमें संघर्ष की जबरदस्त क्षमता थी। चुनौतियों को स्वीकारना उन्हें अच्छा लगता था, वो हमेशा दलितों के लिए संघर्ष करते रहें। उनके व्यक्तित्व ने अन्याय से कभी समझौता नहीं किया।

मोदी ने जन्मदिन पर याद किया शिखर पुरुष को

बाबू जगजीवन राम ने गरीबों के उत्थान के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। वे गरीबों के दाता थे। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि, पीएम मोदी ने ने ट्वीट कर कहा।

बिहार की धरती से विश्व पटल पर छा गए

बिहार के एक दलित परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा गए। उनका जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था उन्हें बचपन से ही सब बाबूजी के नाम से संबोधित करते थे। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी। जगजीवन राम अध्ययन के लिए कोलकाता गए, वहीं से उन्होंने 1931 में स्नातक की डिग्री हासिल की। कोलकाता में रहकर उनका संपर्क नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुआ। इसके बाद भारतीय इतिहास और राजनीति में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका की कहानी शुरू हुई।

आजादी में योगदान

जगजीवन राम ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इसलिए भी वे बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए। उन्होंने सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

1936 से शुरू हुआ सफर पहुंचा केंद्रीय मंत्री तक

जगजीवन राम का वैधानिक जीवन तब शुरू हुआ था जब वे 1936 में बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित हुए। अगले साल वे बिहार विधानसभा के लिए चुन लिए गए और जल्द ही काबिलियत को देखते हुए उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया। 2 सितंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक काम-चलाऊ सरकार का गठन हुआ। नेहरू के मंत्रिमंडल में जगजीवन राम को अनुसूचित जातियों के अकेले नेता के रूप में शामिल किया गया। उस समय वो केंद्र में सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री थे और श्रमिक वर्ग के प्रति उनकी सद्भावना को देखते हुए उन्हें श्रम मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। यहीं से बाबू जगजीवन राम का संघीय सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में सफर शुरू हुआ।

कई विभागों का उत्तरदायित्व

वे एक ऐसे राजनेता रहे जो 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए। वे सबसे लंबे समय लगभग 30 साल तक देश के केंद्रीय मंत्री रहे। पहले नेहरू के मंत्रिमंडल में, फिर इंदिरा गांधी के कार्यकाल में और अंत में जनता सरकार में उप प्रधानमंत्री के रूप में केंद्र सरकार में अपने लंबे करियर के दौरान उन्होंने श्रम, कृषि संचार रेलवे और रक्षा जैसे अनेक चुनौतीपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा संभाला। उन्होंने श्रम के रूप में मजदूरों की स्थिति में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानून के प्रावधान किए जो आज भी हमारे देश की श्रम नीति का मूलाधार है।

दलितों हक लिए आजीवन संघर्ष किया

जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। वे स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में से एक थे जिन्होंने राजनीति के साथ ही दलित समाज के लिए नई दिशा प्रदान की। उन्होंने उन लाखों-करोड़ो दलितों के लिए आवाज उठाई जिन्हें स्वर्ण जातियों के साथ चलने की मनाही थी, जिनके खाने के बर्तन अलग थे, जिन्हें छूना पाप समझा जाता था और जो हमेशा दूसरों की दया के सहारे रहते थे। पांच दशक तक सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे जगजीवन राम ने अपना सारा जीवन देश की सेवा और दलितों के उत्थान के लिए अर्पित कर दिया। इस महान राजनीतिज्ञ का जुलाई, 1986 में 78 साल की उम्र में निधन हो गया।

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