31 जनवरी को पड़ रहा है चंद्रग्रहण, इस दिन ना करें ये काम

Update: 2018-01-17 04:48 GMT

जयपुर: चंद्र ग्रहण तब होता है, जब सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी इस प्रकार से आ जाती है कि पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है। इस स्थिति में पृथ्वी सूर्य की किरणों के चन्द्रमा तक पहुंचने में अवरोध लगा देती है तो पृथ्वी के उस हिस्से में चन्द्र ग्रहण नज़र आता है। इ

31 जनवरी को है माघ पूर्णिमा। माघी पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस माघ पूर्णिमा के दिन ही चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। यह साल 2018 का पहला चंद्र ग्रहण होगा। 31 जनवरी को चंद्रग्रहण है जो शाम 17:58:00 से 20:41:10 तक रहेगा। यह पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। चंद्र ग्रहण से कुछ घंटों पहले ही सूतक लग जाता हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से अमृत की वर्षा करते हैं।

पूर्णिमा की तिथि 30 जनवरी 2018, मंगलवार को रात 22:22 पर लग जाएगी और अगले दिन 31 जनवरी 2018, बुधवार 18:56 तक रहेगी। चंद्र ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लग जाते हैं जिसमें पूजा, स्नान दान नहीं किया जाता। इस दिन सुबह 10 बजकर 18 मिनट से सूतक लग रहे हैं। इसलिए सुबह 8 बजे पूजा के लिए शुभ रहेंगे।यह चंद्रग्रहण भारत के अलावा इन देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, कोरिया, रूस आदि में भी दिखेगा।

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इन राशियों के लिए सही रहेगा

यह सर्व ग्रास खग्रास संज्ञा का प्रतीक होगा तथा यह चंद्रग्रहण पुष्य आश्लेषा नक्षत्र एवं कर्क राशि पर चरितार्थ होगा अतः इन राशि वालों को ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिए एवं वृषभ, कन्या, तुला, कुंभ राशि हेतु दर्शन करना सुखद है तथा मेष कर्क सिंह धनु राशि हेतु अशोक दर्शन करना योग्य नहीं है मिथुन वृश्चिक मकर मीन राशि हेतु सामान्य मध्यम फलद।

इस दिन 12 घंटे तक भगवान के दर्शन करना अशुभ जाएगा, जिस कारण से मंदिरों के पट बंद रहेंगे इस दौरान किसी भी तरह की पूजा नहीं की जा सकती है। ये चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा जिस कारण से इसे धार्मिक सूतक की मान्यता दी जाएगी। चंद्र ग्रहण की अवधि करीब 2 घंटे 43 मिनट तक रहेगी। ऐसे में पूर्णिमा तिथि की पूजा और स्नान-दान का पुण्य और मंदिर में भगवान विष्णु और शिव की उपासना के लिए सुबह 8 बजकर 28 मिनट तक ही विशेष समय माना जा रहा है।

ज्योतिषों के अनुसार 31 जनवरी को खग्रास चंद्रग्रहण है जो पूरे भारत में दिखाई देगा। सूतक का काल सुबह 10 बजकर 18 मिनट से शुरु हो जाएगा। ग्रहण का समय चंद्रोदय के साथ ही शुरु होगा। बालक, वृद्ध और रोगियों के लिए सूतक काल नहीं माना जाएगा। ग्रहण के समय मूर्ति स्पर्श, भोजन और नदी स्नान वर्जित माना जाएगा। इसी के साथ मंत्रों का जाप कई गुणा फलदायक माना जाएगा। ऊं क्षीरपुत्राय विह्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चंद्रः

क्या करें, क्या न करें?

चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है। सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।

ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।

ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए। ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।

.ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।

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ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन - ये सब कार्य वर्जित हैं।

ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।

गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।

ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए।

 

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