नेताजी हैं न! कैसे टूट सकता है देश का सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा
मुलायम सिंह यादव ने पार्टी को बचाने के लिए एक झटके में अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया। जयाप्रदा को बाहर कर दिया। परिवार में अमर सिंह के खिलाफ गुस्सा था। लेकिन नेता जी की नाराजगी देर तक नहीं रहती। छह साल का निष्कासन बीतते ही अमर सिंह को राज्यसभा भेज दिया।
नेताजी के नाम से लोकप्रिय समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का 22 नवंबर को जन्मदिन है। यह मुलायम सिंह की राजनीतिक सूझबूझ का ही नतीजा है कि न सिर्फ कई राजनीतिक झटकों और परिवार के सदस्यों की महत्वाकांक्षाओं को साधते हुए पार्टी को संभाले हुए हैं, बल्कि वह उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भी काबिज है। यहां हम बता रहे हैं, कि क्या हैं मुलायम सिंह की खूबियां ।
लखनऊ: देश का सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा जो समाजवादी परिवार कहा जाता है दो महीने पहले टूटने के कगार पर था। सीएम और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा राज्य के लोक निर्माण मंत्री के बीच ठन गई थी। तलवारें दोनों ओर खिंची हुई थीं। कोई किसी की बात मानने और सुनने को तैयार नहीं था।
घर और पार्टी की लड़ाई सड़कों पर लड़ी जा रही थी। अखिलेश और शिवपाल के समर्थक सड़कों पर थे।
जब छिड़ी घर में जंग
ऐसे वक्त में पार्टी के पितामह और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को आगे आना पड़ा। पहले उन्होंने अखिलेश से प्रदेश अध्यक्ष का पद लेकर शिवपाल सिंह यादव को दिया। सीएम के लिए अध्यक्ष पद संभालना मुश्किल था कयोंकि उन्हें दोहरी जिम्मेवारी निभानी पड़ रही थी। संगठन का काम भी पूरे दिन का काम होता है। कार्यकर्ताओं से मिलना ,उनकी समस्याएं सुनना ओर उसका निराकरण करना आसान नहीं होता। यदि सरकार पार्टी की हो तो कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षा वैसे भी बढ़ जाती है।
लेकिन शिवपाल ने पद संभालते ही सड़क पर आए अखिलेश के समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया। बदले में सीएम ने भी शिवपाल और उनके समर्थक मंत्रियों को बाहर कर दिया।
तो सामने आए पितामह
पितामह ये सब होते कैसे देख सकते थे। उन्होंनें सपा को अपनी मेहनत और पसीने से सींच कर इस हालत तक पहुंचाया था कि वो राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत तक पहुंचती दिखाई दे रही थी। वो पार्टी को टूटते या इस हालत में जाते नहीं देख सकते थे। उन्होंनें पहले छोटे भाई जिसे वो बेटे की तरह ही मानते हैं पुचकारा,समझाया और जरूरी हुआ तो डांटा भी। यही काम उन्होंने अपने बेटे अखिलेश के साथ किया। पार्टी के मंच पर ही उन्होंने सीएम को फटकार लगाई और यहां तक कहा कि तुम सिर्फ मेरे कारण सीएम बने हो। विधानसभा के 2012 के चुनाव में मतदाताओं ने वोट तुम्हें नहीं मुझे दिया था।
पितामह का प्रभाव
उनकी भावनात्मक अपील, डांट, पुचकार, का असर दिखा और दोनों अपने रास्ते पर आते दिखे। फैसले में कठोर और दिल से मुलायम उन्हें ऐसे ही नहीं कहा जाता। उनका दिल उनके नाम को सार्थक करता है। जो पार्टी टूट के कगार पर पहुंच गई थी, वहां धीरे धीरे सब कुछ सामान्य होता दिखा और अब दिखने में सब कुछ ठीक लग रहा है। भाई रामगोपाल यादव समेत जिस जिस को पार्टी से निकाला गया था, उन सब को मुलायम सिंह यादव के आदेश के बाद वापस ले लिया गया।
फैसले कठोर, दिल मुलायम
लगभग ऐसी ही हालत और स्थिति पहले 2010 में आई थी। ये वो दौर था जब पार्टी के महासचिव अमर सिंह की तूती बोलती थी। मुलायम सिंह के बाद वो सपा के सबसे ताकतवर नेता हुआ करते थे। सरकार और पार्टी के सभी फैसलों में उनका हस्तक्षेप साफ दिखता था। इसे लेकर सपा परिवार में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। हालत बिगड़ रहे थे। परिवार अलग होता दिख रहा था। ऐसे में फिर मुलायम सिंह यादव को सामने आना पड़ा। उन्होंने परिवार और पार्टी को बचाने के लिए एक झटके में अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया। साथ ही उनकी प्रिय साथी फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। वो जानते थे कि परिवार में अमर सिंह के खिलाफ जो गुस्सा और नाराजगी है वो बहुत सालों तक नहीं रहने वाली है। अमर सिंह का निष्कासन छह साल के लिए था। निष्कासन का समय बीतते ही अमर सिंह पार्टी में ले लिए गए और उन्हें राज्यसभा में भी भेज दिया।
मुलायम सिंह की सबसे बड़ी खासियत उनका माफ कर देने वाला दिल है। वो बहुत ज्यादा दिन तक किसी से नाराज नहीं रह सकते।