वाराणसीः काशी के नक्की घाट मुहल्ले की रहने वाली शबीना ने मुस्लिम महिलाओं के लिए मिशाल कायम की है। उन्होंने ना सिर्फ अपनी जिंदगी संवारी बल्कि समाज की दूसरी महिलाओं को भी सशक्त बनाने का काम किया। मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा से जोड़ने और उनको अपने पैरों पर खड़ा करने का जिम्मा भी वो बखूबी निभा रही हैं।
साक्षरता अभियान से जुड़ी
-वाराणसी के नक्की घाट इलाके में रहने वाली शबीना ने एम.ए. बीएड तक की पढ़ाई की हैं।
-पढ़ाई के समय इन्होंने देखा कि जहां इनके परिवार में शिक्षा पर जोर दिया जाता था।
-वहीं कई ऐसे मुस्लिम परिवार थे जो अपने बच्चों की शिक्षा पर ज्यादा महत्व नहीं देते थे।
ये भी पढ़ें...काशी की इन मालाओं के मुरीद हैं जुकरबर्ग, विदेशों में होती हैं EXPORT
-इसलिए वो समाज में दूसरों के मुकाबले पिछड़ रहे थे।
-पढ़ाई पूरी करने के बाद शबीना एक साक्षरता अभियान से जुड़ी।
-इस दौरान उनके साथ एक हादसा हुआ, किसी ने उन्हें जाहिलों की बस्ती का कहा था।
-इसके बाद शबीना ने अपने क्षेत्र की लड़कियों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया।
-11 साल से शबीना अपने क्षेत्र के लड़कियों को शिक्षा दे रही हैं।
घर-घर जाकर लगाई गुहार
-उस घटना के बाद शबीना ने साक्षरता अभियान को छोड़कर अपने घर में बच्चियों को पढ़ाने लगी।
-अक्सर मुश्लिम परिवार में ये देखा जाता हैं की लड़कियों को पढ़ाई से वंचित रहना पड़ता हैं।
-ऐसे में शबीना ने घर घर लोगों को जाकर लड़कियों को पढ़ाने की गुहार लगाईं।
-शुरुआत में तो शबीना की बातों को लोगों ने नजरअंदाज किया।
-शबीना ने अपने दम पर कुछ लड़कियों को अपने घर पर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया।
ये भी पढ़ें...डीनो मोरिया ने संवासिनियों से की मुलाकात, इन पर बनाएंगे डॉक्यूमेंट्री
घर पर चलाती हैं मदरसा
-शबीना द्वारा पढ़ाई गई लड़कियां पढ़-लिख कर अपना नाम रोशन करने लगीं।
-तब शबीना पर लोगों ने विश्वास किया फिर उन्होंने अपने घर में ही मदरसा खोला।
-आज शबीना के पास इस मदरसे में 300 से ज्यादा बच्चे हैं।
-शबीना फीस के रूप में मात्र 20 रुपए प्रतिमहीने लेती हैं।
-वह भी इसलिए की जो आवश्यक खर्च हैं उसे पूरा किया जा सके।
शबीना की मां ने दिया साथ
-शबीना के इस मुहीम में उनकी मां शहदादी बेगम ने ज्यादा साथ दिया।
-उनकी मां कहती हैं कि मैं नहीं पढ़ पाई लेकिन अपनी बेटी को पढ़ाने का मेरा सपना था।
-शबीना ने पढ़ाई तो की ही अब अपने समुदाय के बच्चों को पढा भी रही हैं।
-इससे हमें खुशी मिलती है और हम उसका हर तरह से साथ निभाते हैं।
-मदरसे में बच्चों को शबीना बड़े ही प्यार से तालीम देती हैं।
-अरबी, हिंदी, इंग्लिश और बाकी विषय शबीना इन्हें पढ़ाती हैं।
-शबीना के इस प्यार के कारण ही उनके स्टूडेंट्स उन्हें मैडम नहीं बल्कि अप्पी कहते हैं।
-वह बच्चे कहते हैं कि पहले ये स्कूल नहीं जाते थे।
-शबीना आपा घर आकर अम्मी अब्बू को समझाई तब हम स्कूल आने लगे।
ये भी पढ़ें...काशी की इस बेटी के IDEA पर चलेगी ई-बोट, PM मोदी करेंगे शुरुआत
मुफ्त में बांट रही ज्ञान
-शबीना 11 सालों से लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही हैं।
-शबीना ने इनके लिए अपने घर में मदरसा भी खोला।
-गरीब बुनकर परिवार के होने के बावजूद उन्हेंने मदरसे के लिए कोई मदद नहीं मांगी।
-11 सालों से शबीना मुफ्त में ही ज्ञान बांट रही हैं।
-शबीना कहती हैं की ज्ञान बांटने से घटता नहीं बल्कि बढ़ता हैं।
महिलाओं को बना रही स्वावलंबी
-शबीना ने लड़कियों को साक्षर बनाने का सपना देखा और उसे पूरा किया।
-अब शबीना नारी शक्ति को पहचान देने में लगी हैं।
-इसके लिए उन्होंने महिलाओं को स्वालम्बी बनाने का अभियान शुरू किया।
-वह उन्हें पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सिखाने में लगी हैं।
-अब शबीना अपने इसी हुनर को गांव की महिलाओं को सीखा रही हैं।
-गांव की महिलाओं के साथ सबने इस हुनर को अपनाया।
-200 से ज्यादा महिलाएं और लडकियां इस हुनर को सिख चुकी हैं।
-इसमें से कई कढ़ाई, सिलाई और बेकरी से व्यापार कर अपने घर का खर्च चला रही हैं।