Video: कोयले की खान से निकला हीरा,जेल के इस कैदी का हुनर है काबिल-ए-तारीफ

जेल में रहकर सजा काटने वाले कैदी अक्सर समाज की मुख्य धारा से अपने आप को अलग मानकर एक ऐसी गुमनामी की जिंदगी जीने को आदी हो जाते है.जिसमे न कोई रिश्ता मायने रखता है न कोई उम्मीद रहती है ,न कोई ख्वाहिशे बचती है और जीवन जीने का न कोई उद्देश्य बचता है.लेकिन जेल में पिछले 15 साल से बंद एक ऐसे कैदी ने इस बात को गलत साबित किया है जिसने जेल में 15 साल से सजा काटने के बाद भी खुद को समाज की मुख्य धारा में जोड़े रखा ।

Update: 2016-10-28 07:19 GMT

आगरा: जेल में रहकर सजा काटने वाले कैदी अक्सर समाज की मुख्य धारा से अपने आप को अलग मानकर एक ऐसी गुमनामी की जिंदगी जीने को आदी हो जाते है.जिसमे न कोई रिश्ता मायने रखता है न कोई उम्मीद रहती है ,न कोई ख्वाहिशे बचती है और जीवन जीने का न कोई उद्देश्य बचता है.लेकिन जेल में पिछले 15 साल से बंद एक ऐसे कैदी ने इस बात को गलत साबित किया है जिसने जेल में 15 साल से सजा काटने के बाद भी खुद को समाज की मुख्य धारा में जोड़े रखा ।

जहाँ देश भर में हिन्दू मुस्लिम को लेकर आए दिन कोई न कोई बहस जोरो पर है वही इस मुस्लिम कैदी ने हिंदू देवी देवताओं की अप्रितम मुर्तिया तैयार कर राष्ट्रवाद की नई परिभाषा लिखी है ।जी हां तस्वीर में आप जिस शख्स को हिन्दू देवी देवताओ की तस्वीर के साथ साथ तमाम तरह की आकर्षक मूर्तियां बनाता हुआ देख रहे है दरअसल इसका नाम फिरोज है जो 2001 में अपहरण के मामले में आगरा के जिला कारागार में बंद हुआ ।जेल में बंद रहते हुए उसने एक ऐसा हुनर हासिल किया जिसने एकता ,अखंडता ,भाईचारा इन सबकी एक अद्भुत मिसाल पेश की है.जिसकी तारीफ करने के लिए शब्द कम पड जाए ।

साबुन से हिन्दू देवी देवताओ की एक से बढ़कर एक सुन्दर मुर्तिया बनाने के साथ साथ भारत माता की एक ऐसी मूर्ति बनाई जिसको देखने के लिए शासन प्रशासन के बड़े अधिकारी देखने पहुचे । जिस हुनर को पाने के लिए लोग लाखो खर्च करते है फिरोज ने उसी हुनर को जेल के अंदर ही कुछ समय में ही सीख लिया । फिरोज ने सपा मुखिया की साइकिल के साथ भी प्रतिमा बनायी थी जो के ताज महोत्सव में रखी गई थी ।

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फिरोज ने बताया कि जब एक साथी ने जेल में दिए जाने बाले साबुन को नहाने के बाद जेल की दीवार पर चिपका दिया जो नवरात्रो में देवी की मूर्ति की तरह लगने लगा दीवार पर लगे सावुन की काल्पनिक देवी की मूर्ति को देखने के बाद फिरोज ने देवी माँ का व्रत रख माँ दुर्गे से खुद के हाथो में एक ऐसा हुनर माँगा जिसको देखने के बाद हर कोई हैरत में पड जाए ।जिला जेल से लेकर केंद्रीय कारागार में अपने हाथो के हुनर का लोहा मनबाने बाले कैदी फिरोज की बनाई हुई मूर्तियॉ को जिस किसी अधिकारी ने देखा उसने फिरोज की तारीफ करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हालाँकि जेल के अंदर जेल प्रशासन ने फिरोज की जमकर मदद की । वहीँ फिरोज हिन्दू मुस्लिम के बीच चल रही वैमनस्यता को ठुकराते हुए सिर्फ भाईचारे की बात करता है . और जेल में अन्य कैदियों को भी अपना हुनर सिखा रहा है।

किसी ने सच कहा है कि हुनर किसी का मोहताज नहीं होता।आज जेल में बंद होने के बावजूद भी फिरोज की प्रतिभा छुपी नहीं रही । आज फिरोज को एक कैदी के रूप में कम और एक कलाकार के रूप में ज्यादा जाना जाता है।

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