अपनी नई पहचान से खुश वनटांगिया समुदाय, CM योगी की पहल पर नाम होगी 635 एकड़ जमीन
गोरखपुर: पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर और महराजगंज के जंगलों में निवास करने वाले 40 हजार वनटांगियों के लिए योगी सरकार एक वरदान बनकर आई है। योगी आदित्यनाथ के यूपी का सीएम बनने के बाद से अब सभी वनटांगियां गावों को राजस्व ग्राम का दर्जा मिलने लगा है और कल तक जो बड़े अधिकारी इनको नजरअंदाज किया करते थे, आज वह इनके गांव में कैंप लगाकर सुबह से लेकर शाम तक इनको राशन, पेंशन, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ आधार कार्ड और दूसरी सुविधाएं दे रहे हैं।
बता दें, कि गोरखपुर के कुसुम्ही जंगल में वनग्राम तिकोनिया नंबर-3 के रहने वाले सैंकड़ों लोग आज काफी खुश हैं। आज इनके गांव में जिले के अधिकारियों की पूरी टीम उतर कर इन लोगों के परिवार सहित गांव के सभी लोगों को राशन, पेंशन, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा कैंप लगाकर दी जा रही है। इस दिन के इंतजार में वनटांगिया मजदूरों की कई पुश्तें संघर्ष करते गुजर गईं पर सफलता मिली तो योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद।
तिकोनिया नंबर-3 में रहने वाले कई सौ परिवार वालों के लिए अब हर दिन किसी दीवाली से कम नहीं है। इनको यहां पर अंग्रेजों द्वारा जंगल में पेड़ लगाने के लिए लाया गया और जंगल के बीच इनको बसाया गया। आजादी के बाद अंग्रेज तो अपने देश चले गए पर यह वनटांगिया इन्ही जंगलों के बीच रह गए। गोरखपुर और महराजगंज के जंगलों में इन वनटांगियों के लगभग दस हजार से ज्यादा परिवार हैं जो कई दशकों से अपना आशियाना बनाकर रह रहे हैं। आजादी के बाद से ही इनको मुख्यधारा में लाने के तमाम दावे हुए, पर दावे अमलीजामा नहीं पहन सके। आजतक इनको भारतीय नागरिक होने के प्रमाण आधार या मतदाता पहचान पत्र भी नहीं मिल पाया था।
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कौन हैं वनटांगिया ?
इनके वर्तमान को समझने के लिए हमें इनके अतीत में जाना होगा। इन्हें वनटांगिया मजदूर इसीलिए कहा जाता है क्योंकि किसी वक्त में टांगिया पद्धति से जंगल उगाया करते थे। इसकी शुरुआत 1918 में हुई थी। भारत में रेलवे का विस्तार किया जा रहा था और पटरियां बिछाने के लिए साखू की लकड़ियों की बड़े पैमाने पर ज़रूरत पड़ने लगी। नतीजा ये हुआ कि साखू के जंगल साफ होने लगे। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत ने बड़े पैमाने पर साल या साखू के जंगल लगाने का फैसला किया और इसके लिए अंग्रेजों ने बर्मा की टांगिया पद्धति अपनाई।
उस वक्त वन विभाग के कुछ अधिकारी बर्मा गए और वहां जाकर खेती करने की टांगिया पद्धति सीखी। वापस भारत आकर उन्होंने गरीब और मजदूर तबके के लोगों को टांगिया पद्धति का प्रशिक्षण दिया और भारी तादाद में कामगारों को जंगल उगाने में लगा दिया। टांगिया पद्धति से वन उगाने वाले इन मजदूरों को नया नाम मिला वनटांगिया। आज़ादी के बाद देश के बाकी हिस्सों में वनटांगिया मजदूरी लगभग खत्म हो गई, लेकिन उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में ये सिलसिला 80 के दशक की शुरुआत तक चलता रहा। इस दौरान वन विभाग और वनटांगिया मजदूरों के बीच संघर्ष की शुरुआत हो गई।
वन विभाग चाहता था कि वनटांगिया जंगल से निकलकर बाहर चले जाएं, लेकिन दशकों से जंगलों में रहते आए वनटांगिया मजदूरों के लिए ये बात समझ से बाहर थी। अभी तक जंगल ही इनकी दुनिया थी और इन्होंने अपनी जिंदगी में कभी भी खेती के अलावा कुछ नहीं किया था। ऐसे में जंगल के बाहर की दुनिया इनकी समझ से परे थी। वन विभाग ने वनटांगिया मजदूरों से समझौते पर अंगूठे के निशान लेना शुरू कर दिया और इनको जंगल से निकालने का काम शुरू कर दिया पर काफी संघर्षो के बाद भी यह जंगल छोडकर जाने को तैयार नही हुए।
गोरखपुर और महाराजगंज से लगे सोहगीबरवां और कुसुम्ही जंगलों में रहने वाले वनटांगिया मजदूरों की आबादी करीब 40 हज़ार है। गोरखपुर में इनके 5 और महाराजगंज में 20 गांव हैं। ये लोग दशकों से यहीं बसे हुए हैं, लेकिन इनके गांवों को राजस्व गांव घोषित नहीं किया गया। सरकार इनके गांवों को गांव नहीं मानती थी, लिहाजा विकास के लिए जो भी सरकारी योजनाएं बनी, उससे वनटांगिया मजदूरों के गांव अछूते रह जाते। हालांकि वनटांगियों को वोट देने का अधिकार 2015 में मिला और इनके वनग्रामों के आसपास के राजस्व गांवो से इनको जोडकर इनको वोटर बना दिया गया पर सिवा पंचायत चुनाव के यह कहीं पर वोट नहीं दे पाए।
साल 2006 में वन अधिकार कानून (अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन अधिकारों की मान्यता कानून 2006) बनने के बाद दोनों जिलों के टांगिया परिवारों को उनकी खेती और आवास की ज़मीन पर मालिकाना हक देने की घोषणा की गई। जिसपर अमल 25 जुलाई 2011 को हुआ और तीन चरणों में कुल 4,300 परिवारों को उनकी जमीनों से संबंधित अधिकार पत्र सौंपा गया था। इसके तहत इन्हें अपने घर और खेती की जमीन पर मालिकाना हक तो मिल गया, लेकिन उनके गांवों को राजस्व गांव नहीं बनाया गया। जिससे उनके गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, पेयजल, आवास, पेंशन, मनरेगा सहित सभी सरकारी योजनाएं नहीं लागू हुई।
वनटांगिया समुदाय 2011 से ही गोरखपुर एवं महाराजगंज जिले के जिलाधिकारी, मंडलायुक्त गोरखपुर और राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव समाज कल्याण, वन राजस्व और मुख्य सचिव मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल से मिलकर कई बार ज्ञापन किया, परंतु किसी का असर नहीं हुआ। इनके इस संघर्ष में इनका साथ गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने भी दिया और कई बार प्रदेश सरकारों को इनके हक को दिलाने के लिए पत्र लिखा पर कार्यवाही नही हो पाई।
योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद से इनके दिन पलट गए और मात्र 10 दिन में योगी ने इनके गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलवा दिया और इनको हर वो सुविधा मिलना शुरू हो गई जिसकी इन्होंने अबतक सिर्फ कल्पना ही की थी। इनके और इन जैसे सभी वनटांगिया गांवों में पिछले सप्ताह से जिले के अधिकारी सुबह 10 बजे से शाम 04 बजे तक कैंप लगा रहे हैं और गांव के हर एक परिवार को सभी सुविधाएं देने का काम किया जा रहा है।
वन ग्रामों में स्कूल भी खोले जा रहे हैं और यहां के बच्चों को शिक्षा देने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं। गांव के लोगों का कहना है कि आजतक जो अधिकारी इनकी सुनते नहीं थे और इनको देखते ही बचकर निकल जाते थे आज वह खुद गांव के लोगों को खोजकर उनको सुविधाएं देने का काम कर रहे हैं। यह सभी योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद दे रहे हैं कि आज उनकी बदौलत ही इनको आजादी महसूस हो रही है। वन ग्राम में योगी आदित्यनाथ के आने जाने और इनके हक को उठाने का सिलसिला काफी सालों से जारी था। योगी पहले से ही वनग्राम के बच्चों को शिक्षित करने के लिए हर गांव में एक स्कूल चला रहे हैं। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि अब लगता है कि उनका जीवन बदल जाएगा।
योगी आदित्यनाथ ने इनकी पहचान को लेकर चल रहे आंदोलन में अगुवाई भी की थी और अब प्रदेश शासन की कमान हाथ में आते ही उन्हें आम जनजीवन की मुख्यधारा में जोड़ने के प्रयास भी शुरू हो चुके हैं। सीएम के निर्देश पर अब हर वनटांगिया गांव में आंगनबाड़ी केंद्र, पेयजल के लिए हैंडपंप, गरीब वनटंगियां का आवास, राशन कार्ड, वृद्धा पेंशन और समस्त पेंशन दिलाने का काम शुरू कर दिया गया है और अब उम्मीद जताई जा रही है कि आजादी के बाद से आजतक मुख्यधारा से कटे यह लोग भी खुद को अब भारत का नागरिक समझेंगे और देश के हर नागरिक की तरह इनको भी अब मूलभूत सुविधाएं मिलने लगेंगी।
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सीएम की पहल पर वनटांगियों के नाम होगी 635 एकड़ जमीन
गोरखपुर जिले के पांच गांवों के करीब 2,200 वनटांगियों को चंद दिनों के बाद उन्हें सामान्य नागरिक की तरह कानूनी अधिकार तो मिलेगा ही साथ ही घर बनाने और खेती करने के लिए जमीन पर अधिकार भी मिलेगा। यह जमीन पीढ़ीगत तो चलती रहेगी लेकिन यह न तो किसी को बेची जा सकेगी और न ही किसी को वसीयत। अब इनके पास खुद की जमीन होगी, खेती कर सकेंगे और स्कूल में बच्चे पढ़ सकेंगे। गोरखपुर जिला प्रशासन ने वनटांगियों के सभी पांच गांवों को राजस्व ग्राम में बदलने की तैयारी पूरी कर ली है। इन गांवों की 635 एकड़ जमीन जल्द ही 654 परिवारों के नाम होने वाली है। जमीन पर अपना घर बनाने के साथ ही वह खेती भी कर सकेंगे। वनटांगियों के पांचों गांवों को राजस्व ग्राम होते ही यहां सरकारी स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक भवन जैसी सुविधाएं मिल सकेंगी।
इन पांचों गांवों में आएगी रौनक
वनटांगियों को जमीन मिलने से पांच वनटांगिया गांवों में रौनक आ जाएगी। पूरा गांव बिजली से रोशन होगा, स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य लाभ मिलेगा और रसोई गैस भी मिलेगी। पेयजल की भी सुविधा होगी। इन गांवों में पक्की सड़कें तक नहीं है। राजस्व ग्राम होते ही यहां सड़कें भी बनेंगी। वनटांगियों को आवागमन आसान हो सकेगा।
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किस गांव में कितने परिवार
तिकोनिया 260
आमबाग 101
रजही खाले टोला 050
चिलबिलवा 065
रजही 078
क्या कहना है वनटांगिया सचिव का?
वनटांगिया सचिव बलराम राजभर का कहना है कि हम लोगों को सभी अधिकार मिलेंगे, इससे बढ़कर हम लोगों के लिए और क्या हो सकता है। खुद की जमीन होगी। खुद का मकान और बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल भी होगा। हम इसके लिए योगी आदित्यनाथ का धन्यवाद करते हैं।
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