लखनऊः पूरे विश्व में हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। डॉक्टर के अनुसार एक हजार बच्चों में से दो बच्चे ऑटिज्म का शिकार होते हैं। बहुत ही कम लोग इस बिमारी के बारे में जानते हैं कि ये बिमारी बच्चों में माता -पिता के जीन से होती है। इसी वजह से लोगों को जागरूक करने के लिए ये दिवस मनाया जाता है।
यहां करेंगे जागरूक
लखनऊ में निर्वाण सोशल वेलफेयर ऑर्गेनाइज़ेशन के चीफ फंक्शनरी सुरेश सिंह धपोला ने newztrack.com को बताया कि 2 अप्रैल को वो मुंशीपुलिया चौराहे पर एक प्रोग्राम के जरिए ऑटिज्म के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे। उन्होंने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे को नफरत की नजर से ना देखें। थोड़ी सी ट्रेनिंग और सही देखभाल से ये बेहद प्यारे बच्चे बन सकते है।
क्या है ये ऑटिज्म
-यह विकास से संबंधित गंभीर बिमारी होती है, जो बच्चों को शुरुआत के तीन सालों में होती है।
-ऑटिज्म को स्वलीनता, मानसिक रोग, स्वपरायणता के नाम से भी जाना जाता है।
-इसके लक्षण दो साल की उम्र में बहुत हल्के से दिखने लगते हैं।
-बिना मेडिकल जांच के इसे पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है।
-आमतौर पर देखा गया है कि यह दिमागी अंतर अनुवांशिक होता है।
-बच्चों को यह माता पिता की जीन से मिलता है।
ऑटिज्म के लक्षण
-इस बिमारी से व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।
-व्यक्ति एक ही क्रिया को बार बार दोहराता हैं जैसे हाथ हिलाना , शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाजें करना।
-ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति लोगों से घुलमिल नहीं पाते।
-बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है।
-व्यक्ति ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों पर सामान्य प्रतिक्रिया देता है।
-कभी-कभी किसी भी बात का जवाब नहीं देते या फिर बात को सुनकर अनसुना कर देते है।
-कई बार आवाज लगाने पर भी जवाब नहीं देते।
-किसी दूसरे व्यक्ति की आंखों में आंखे डालकर बात करने से घबराते है।
-अकेले रहना अधिक पसंद करते है, ऐसे में बच्चों के साथ ग्रुप में खेलना भी इन्हें पसंद नहीं होता।
-बात करते हुए अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं करते या फिर अंगुलियों से किसी तरह का कोई संकेत नहीं करते।
-बदलाव इन्हें पसंद नहीं होता’रोजाना एक जैसा काम करने में इन्हें मजा आता है।
-यदि कोई बात सामान्य तरीके से समझाते है तो इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते।
-बार-बार एक ही तरह के खेल खेलना इन्हें पसंद होता है
हुनर वाले होते हैं ये लोग
-ऑटिज्म ग्र्स्त बच्चे हमेशा एक ही खिलौने से खेलते हैं।
-वो हमेशा खिलौनों या आस पास की चीजों को लाइन में रखते हैं।
-ऑटिज्म लोगों को बहुत ही कम चीजें पसंद आती हैं लेकिन जो चीजें उन्हें अच्छी लगती है।
-उन्हें वो बारीकी से जान लेते है और उसमें कोई भी गलती या कमी हो उसे वो फ़ौरन भाप लेते है।
-ऑटिज्म में कमाल की एकाग्रता होती है।
-उन्हें कोई भी खेल ,फिल्म या व्यक्ति पसंद हो तो उसके बारे में उन्हें हर बात पता होती है।
मिलने लगी हैं नौकरियां
-जिन्हें लोग मंदबुद्धि कहते थे, धीरे -धीरे उनकी प्रतिभा का अंदाजा लोगों को होने लगा है।
-जर्मन की एक सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी में ऑटिज्म लोगों को नौकरी भी दी जाती है।
-कंपनी का मानना है कि डिटेल को लेकर उनमें गजब की एकाग्रता होती है।
-उनकी गजब की यादास्त होती है।
-एक ही काम वो बार बार भी कर सकते है, सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में भी वो काफी मदद करते हैं।
-बेंगलुरु में एएसपी के दफ्तर में कई ऐसे लोग काम करते हैं जो ऑटिज्म हैं।
ऑटिज्म पर बनी थी ये फिल्म
दिल्ली के पत्रकार एवं फिल्मकार दीपक पार्वतीयार की फिल्म ‘आई एम स्पेशल : माई वर्ल्ड इज डिफरेंट’ ने इटली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय लघु फिल्म समारोह ‘ऑटिज्ममूवी फिल्म फेस्टिवल’ में पहला पुरस्कार जीता था। ये फिल्म मात्र छह मिनट आठ सेकेण्ड की थी।
फिल्म ‘आई एम स्पेशल : माई वर्ल्ड इज डिफरेंट’ ऑटिज्म पीड़ित अहमदाबाद के सन्नी डिकोस्टा की कहानी है। जब सन्नी ढाई साल का था,उसके माता-पिता को महसूस हुआ कि वह उनकी बातों पर उचित प्रतिक्रिया नहीं देता है। चिकित्सकीय जांच में पता चला कि सन्नी को ऑटिज्म नामक बीमारी है, जिसके बारे में उसके माता-पिता ने पहले कभी नहीं सुना था।