दिल्ली चुनाव: इन वजहों से भगवा ब्रिगेड फिर नहीं भेद पायी केजरीवाल का दुर्ग
दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बंपर जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की सीटों को दहाई के अंक में पहुंचने से रोक दिया तो वहीं..
मनीष श्रीवास्तव
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बंपर जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की सीटों को दहाई के अंक में पहुंचने से रोक दिया तो वहीं कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पायी है। आप को दिल्ली की सत्ता में आने से रोकने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन बावजूद इसके वह आप की सीटों के आकंड़े में भी ज्यादा फेरबदल नहीं कर पायी।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री व भाजपा के सांसदों की पूरी फौज भी केजरीवाल के दिल्ली दुर्ग को फतेह नहीं कर पाए। दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने वहीं चूक दोहराई जो उसने हाल ही में झारखंड में की थी।
नगर निगम में पूरी तरह से भाजपा का कब्जा है
बिजली, पानी, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूलभूत व स्थानीय मुद्दों की बजाए सीएए, एनआरसी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों और शाहीनबाग जैसे मसले को मुद्दा बनाने की कोशिश दिल्ली की जनता को रास नहीं आयी। इसके साथ ही दिल्ली नगर निगम में पूरी तरह से भाजपा का कब्जा है।
कूड़ा प्रबंधन, सड़क निर्माण समेत और कई स्थानीय व जनता से जुडे़ कार्यों का जिम्मेदारी नगर निगम के पास है, लेकिन दिल्ली में सड़कों की दुर्दशा और कूड़ा प्रबंधन में नगर निगम की ओर से कोई उल्लेखनीय कार्य तो दूर जनता को राहत पहुंचाने का भी काम नहीं किया।
मनोज तिवारी का नेतृत्व भाजपा को भारी पड़ा
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती अरविंद केजरीवाल के सामने किसी स्थानीय नेता का न होना भी रहा। हालांकि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं पेश किया था लेकिन हर्षवर्धन और विजय गोयल जैसे भाजपा के स्थानीय वरिष्ठ नेताओं को वरीयता न देकर मनोज तिवारी का नेतृत्व भाजपा को भारी पड़ गया।
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केजरीवाल के मुकाबले मनोज तिवारी का चेहरा दिल्ली की जनता के गले के नीचे नहीं उतरा। वैसे भी मनोज तिवारी का न तो दिल्ली से कोई रिश्ता है और न ही वह खांटी भाजपाई है। हालांकि भाजपा को चुनाव से कुछ दिन पहले ही अपनी इस गलती का अहसास हो गया और चुनाव की कमान अमित शाह ने अपने हाथ में ले ली लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
आदित्यनाथ और नितीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री नहीं कर पाए
इसके साथ ही भाजपा के वरिष्ठ स्थानीय नेताओं अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के भाषणों की भरपाई योगी आदित्यनाथ और नितीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री नहीं कर पाए। दिल्ली चुनाव में भाजपा ने रणनीति बनाई थी कि दिल्ली में देश के विभिन्न राज्यों के तमाम लोग बसते है और इन्हे साधने के लिए उनके राज्य के नेताओं का असर पडेगा लेकिन भाजपा की यह रणनीति भी काम नहीं आई।
पार्टी के लोकसभा व राज्यसभा के 400 से ज्यादा सांसद भी दिल्लीवासियों के दिल से स्थानीय केजरीवाल को नहीं निकाल पाए। दिल्ली विधानसभा चुनाव में ज्यादातर सांसद पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब नहीं हुए। जबकि दिल्ली के भाजपा सांसद हर्षबर्धन, गौतम गंभीर और हंसराज हंस चुनावी जंग में कही भी मुकाबला करते नहीं दिखे।