जेलों में भीड़ पर कोर्ट सख्त, प्रमुख सचिव गृह से पूछा- क्यों नहीं बढ़ी जेलों की संख्या
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव गृह से प्रदेश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की स्थिति पर व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि 1950 के बाद कितने नये जेल बने और प्रदेश में कुल कितने जेल हैं तथा उनमें कितने लोग कैद हैं।
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव गृह से प्रदेश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की स्थिति पर व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है।
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कोर्ट ने पूछा है कि 1950 के बाद कितने नये जेल बने और प्रदेश में कुल कितने जेल हैं तथा उनमें कितने लोग कैद हैं। कोर्ट ने जानना चाहा है कि जनसंख्या बढ़ने के बाद कैदियों की बढ़ती संख्या के अनुपात में क्या सरकार जेलों के निर्माण की योजना पर विचार कर रही है।
कोर्ट ने 15 दिन में योजना तैयार कर कोर्ट में पेश करने को भी कहा है। याचिका की सुनवाई 15 मई को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार की खण्डपीठ ने सुशीला देवी व अन्य की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
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कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि 1950 के बाद कितने नये जेल बने हैं। कुल कितने जेल हैं और कैदियों की संख्या कितनी है। ए.जी.ए. मुर्तजा अली ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में 22 सेंट्रल जेल है।
प्रदेश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की कि सांसदों, मंत्रियों के लिए सरकार बड़े-बड़े बंगले देती है। आवश्यकता से अधिक सरकारी वकील नियुक्त किये हैं और कैदियों को जेलांं की क्षमता से डेढ़ गुना अधिक की संख्या में जेलों में बंद किया गया है।
सरकार कैदियों की स्थिति को लेकर गंभीर नहीं है। जेलों में जगह न होने के बावजूद कैदी भेजे जा रहे हैं और सरकार जेल मैनुअल के तहत सुविधाएं देने में नाकाम है। याचिका की सुनवाई 15 मई को होगी।
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