Uniform Civil Code: इलाहाबाद हाई कोर्ट- समान नागरिक संहिता देश की जरूरत, इसे लागू करने पर विचार किया जाए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड (Uniform Civil Code) देश में लागू करने पर विचार करने को कहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, 'अब ये देश की जरूरत बन गई है।'

Update: 2021-11-19 03:21 GMT

 इलाहाबाद हाईकोर्ट (फोटोः सोशल मीडिया)

Uniform Civil Code: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड (Uniform Civil Code) देश में लागू करने पर विचार करने को कहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, 'अब ये देश की जरूरत बन गई है।'

गौरतलब है कि भारतीय संविधान की धारा- 44 के तहत कहा गया है, कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा। चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता के तहत शादी, तलाक तथा जायदाद के बंटवारे आदि में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है। किसी खास धर्म को कोई विशेष वरीयता नहीं दी गई है।

'यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड' देश की जरूरत

दरअसल, एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court ) ने कहा, कि 'यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड (Uniform Civil Code) देश की जरूरत है। इसे अनिवार्य रूप से लाया जाना चाहिए।' हाई कोर्ट ने आगे कहा, 'इसे सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता। अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त आशंका और भय के मद्देनजर जैसा कि 75 साल पहले डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था।'

क्या था मामला?

उल्लेखनीय है, कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में विभिन्न धर्मों के दंपति ने मैरिज रजिस्ट्रेशन ((Marriage Registration) में सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की थी। इसी मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने ये बातें कही। उन्होंने कहा, कि यह समय की आवश्यकता है, कि संसद एक 'एकल परिवार कोड' के साथ आए। अंतरधार्मिक जोड़ों को 'अपराधियों के रूप में शिकार होने से बचाएं।'

वकील की क्या थी?

वहीं, राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा, कि याचिकाकर्ताओं के विवाह को जिला प्राधिकरण द्वारा जांच के बिना पंजीकृत नहीं किया जा सकता। क्योंकि, उन्हें इस उद्देश्य के लिए अपने साथी के धर्म में परिवर्तित होने से पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से अनिवार्य मंजूरी नहीं मिली थी। इस पर, याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोर देकर कहा, कि देश के नागरिकों को अपने साथी और धर्म को चुनने का अधिकार है। धर्म परिवर्तन अपनी इच्छा से हुआ

संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आगे कहा, 'हालात ऐसे बन गए हैं कि अब संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए। साथ ही, जांच करनी चाहिए कि क्या देश में विवाह और रजिस्ट्रेशन को लेकर अलग-अलग कानून होने चाहिए या फिर एक।' 

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